नई दिल्ली । हौसला अगर बुलंद हो तो इंसान बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर सकता है और इसमें उम्र कोई बाधा नहीं बनती। हम बात कर रहे हैं झारखंड के गिरिडीह जिले में रहने वाली 13 साल की चंपा की। चंपा को झारखंड की राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने राजभवन में सम्मानित किया है। चंपा को सम्मानित करने का निर्णय राज्यपाल श्रीमती मुर्मू ने तब लिया है जब उसे हाल ही में यूनाइटेड किंगडम का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड मिला है। माना जा रहा है कि चंपा के सम्मान में आयोजित यह समारोह उसकी हौसला अफजाई के लिए है। गौरतलब है कि कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा झारखंड के गिरिडीह जिले में संचालित जामदार बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) की चंपा ने बाल पंचायत के सदस्यों के साथ मिलकर अपने गांव में 2 बाल विवाह को रुकवाने में सफलता प्राप्त की है।
चंपा बाल विवाहों को रुकवाने के अलावा बीएमजी के बच्चों के लिए शिक्षा, सुरक्षा और स्वच्छता का बंदोबस्त करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है। चम्पा के गांव में बाल विवाह एक रवायत-सी बन चुकी थी और इस सामाजिक बुराई पर रोक लगाने की हिमाकत आजतक वहां किसी ने नहीं की थी। इस दुस्साहसिक कार्य को अंजाम देने के लिए चम्पा को काफी मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाओं का भी सामना करना पड़ा।
चंपा के डायना अवार्ड और राज्यपाल द्वारा सम्मानित होने पर केएससीएफ (बीएमजी) की कार्यकारी निदेशक श्रीमती मालती ने कहा,‘’झारखंड राज्य बाल पंचायत के अध्यक्ष के नाते चंपा ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है। चंपा ने यह सुनिश्चित किया है कि उसके गांव और पड़ोसी गांवों में एक और जहां एक भी बाल मजदूर नहीं है, वहीं दूसरी ओर वहां बाल विवाह का भी कोई मामला अब देखने को नहीं मिलता है। यह हमारे बाल मित्र ग्राम के सामूहिक प्रयासों का ही नतीजा है कि बाल अधिकार और समुदाय का सशक्तिकरण सुनिश्चित हुआ है। चंपा सही मायने में बदलाव निर्माता है।‘’
युनाइटेड किंगडम (यूके) सरकार की ओर से दिया जाने वाला डायना अवार्ड वेल्स की राजकुमारी डायना की स्मृति को जिंदा रखने के लिए प्रत्येक साल दिया जाता है। इस सम्मान से 9 से 25 साल की उम्र के उन बच्चों और युवाओं को सम्मानित किया जाता है, जिन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए सामाजिक बदलाव लाने में असाधारण योगदान दिया हो। दुनिया बदलने की दिशा में उसने नई पीढ़ी को प्रेरित और गोलबंद किया हो और इस तरह से लोगों का विश्वास उसमें बढ़ा हो। चंपा इस साल भारत के उन 25 बच्चों में शामिल है जिसे इस गौरवशाली सम्मान से सम्मानित किया गया है।
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी ने जिस उद्देश्य को ध्यान में रखकर पिछड़े और बाल श्रम से अति प्रभावित देश के सुदूर इलाकों के लिए बीएमजी की अवधारणा पेश की और इसके निर्माण के लिए कार्यक्रम शुरू किए, देखा जाए तो इस मकसद में वे सफल हो रहे हैं। भारत के 540 से अधिक बीएमजी में से आज एक से एक युवा नेतृत्व को उभरते हुए देखा जा सकता है। हाशिए के समाज के ये बच्चे समुदाय में बदलाव की दिशा में पहलकदमी कर रहे हैं। बाल पंचायत के जरिए चुनकर विभिन्न पदों पर पहुंचे ये बच्चे भारतीय लोकतंत्र को जमीनी स्तर से मजबूत करने में जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि बीएमजी का संचालन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन द्वारा किया जाता है।
केएससीएफ द्वारा संचालित बीएमजी के कई बच्चे बदलाव निर्माता के रूप में पहले भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं। इसमें मध्य प्रदेश के सुरजीत लोधी और कर्नाटक के सुरेंद्र अशोका यूथ वेंचर की ओर से यूथ फेलो बनाए जा चुके हैं। राष्ट्रीय महा बाल पंचायत की अध्यक्ष राजस्थान की रहने वाली ललिता दुहारिया को एक ओर जहां रिबॉक फिट टू फाइट अवार्ड से सम्मानित किया गया है, वहीं दूसरी ओर वह भी अशोका यूथ वेंचर की ओर से यूथ फेलो है। झारखंड के मनन अंसारी को 14 और 15 मार्च, 2019 को ‘चाइल्ड राइट्स चैम्पियनस् पैनल फॉर यूथ इन यूएन साउथ एशिया फोरम ऑन बिजनेस एंड ह्यूमन राइट्स’ को संचालित करने के लिए आमंत्रित किया गया। वहीं राजस्थान की पायल जांगिड़ को स्वीडिश काऊंसिल की ओर से दिया जाने वाला ‘वर्ल्डस चिल्ड्रेनस प्राइज’ का जूरी बनाया गया।
बीएमजी से अभिप्राय ऐसे गांवों से है जिसके 6-14 साल की उम्र के सभी बच्चे बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए हों और सारे बच्चे स्कूल जाते हों। वहां चुनी हुई बाल पंचायत हो और जिसे ग्राम पंचायत द्वारा मान्यता प्रदान की गई हो। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ उनमें नेतृत्व क्षमता के गुण भी विकसित किए जाते हों।
चम्पा कुमारी भी कभी बाल श्रमिक थी। उसके पिता को अभी भी 7 बच्चों वाले परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अभ्रक खदान में मजदूरी करनी पड़ती है। लेकिन चम्पा अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है और वह 9वीं की छात्रा है। झारखंड में गिरिडीह जिले के जामदार बीएमजी बाल पंचायत की वह अध्यक्ष है। वह राष्ट्रीय महा बाल पंचायत की उपाध्यक्ष भी है। चम्पा 2016 में बाल पंचायत की सदस्य बनी। अगले साल वह बाल पंचायत की मुखिया बनी और 2018 में विराटनगर के ‘बाल आश्रम’ में महा बाल पंचायत के हुए चुनाव में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनी। बाल आश्रम बाल श्रम से मुक्त बच्चों का दीर्घकालिक पुनर्वास केंद्र है।
अभ्रक खदान में काम करते हुए चम्पा को लगा कि यहां काम करना खतरनाक है। खदान के धंसने से कई बच्चे काल के गाम में समा चुके हैं। अभ्रक खदान में काम करने वालों के लिए बाल विवाह परंपरा का रूप ले चुका था। चम्पा इस बुराई पर रोक लगाना चाहती थी। लेकिन इस राह में कई दुश्वारियां भी थीं। चंपा का कोई साथ नहीं दे रहा था। चम्पा बाल पंचायत के सदस्यों के साथ मिलकर बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू करती हैं। चम्पा को कुछेक लोगों का साथ मिलने लगता है। जब समझाने के बाद भी 2 लोगों ने बाल विवाह नहीं रोका तो उसने स्थानीय पुलिस प्रशासन के सहयोग से बाल विवाह को रुकवाया। विवाह को रोकने में मुख्य भूमिका निभाने के लिए समुदाय के नेताओं द्वारा चम्पा को धमकियां मिलने लगीं। उसके माता-पिता के द्वारा उसे मारा-पीटा गया। लेकिन चंपा ने हिम्मत नहीं हारी। बाल विवाह, बाल श्रम और अशिक्षा के खिलाफ उसका यह अभियान अभी भी जारी है।
चम्पा के प्रयासों ने आस-पास के गांवों में भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि वहां भी बाल विवाह को अभिशाप समझकर लोगों ने इस पर रोक लगाना आरंभ कर दिया है। लोगों ने पढ़ाई बीच में छोड़ चुके बच्चों को फिर से स्कूल भेजना शुरू कर दिया है। यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि चम्पा भी कभी ड्रॉपआउट का शिकार हो चुकी थी, लेकिन सत्यार्थी आंदोलन के कार्यकर्ताओं के सहयोग और प्रोत्साहन से उसका फिर से स्कूल में दाखिला कराया गया। इलाके के स्कूल में नामांकन की दर भी बढ़ गई है। अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक बुराईयों को दूर करने की दिशा में भी लोग जागरूक हो रहे हैं। खास बात तो यह कि इलाके के लोग-बाग चंपा को अपनी नेता के रूप में देखने लगे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी को अपना आदर्श मानने वाली चम्पा का सपना है कि पूरा देश बाल मित्र ग्राम बने।
झारखंड में बाल विवाह को रोकने में सफलता प्राप्त कर चुकी चंपा के खाते में एक से एक उपलब्ध्यिां दर्ज हैं। वह राज्य के मुख्यमंत्री श्री रघुबर दास के साथ अभ्रक खदानों को बालश्रम मुक्त बनाने के लिए मंच साझा कर चुकी है। सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उसने ब्रिटिश उच्चायुक्त और सांसदों के सामने बच्चों के अधिकारों का घोषणापत्र भी पेश कर चुकी है।