जिस प्रकार से अचानक पूरे देश में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) चर्चा के केंद्र में आ गए। उससे तो यह कहने में दिक्कत नहीं है कि अरविंद केजरीवाल जनहित के मुद्दों को लेकर लोगों के बीच हीरो बन गए हों। माना कि सरकार की एक व्यवस्था होती है, लेकिन आंदोलन से निकले लोग बहुत अधिक दिनों तक एक सांचे में नहीं रह सकते। इसको ही अरविंद केजरीवाल ने साबित किया है। भले ही देश का सबसे मजबूत प्रधानमंत्री कार्यालय नाराज हो। भाजपा के (BJP) लोग इन्हें अराजक कहें। लेकिन, आम आदमी पार्टी (AAP) के कार्यकर्ताओं की नजर में अरविंद केजरीवाल का कद बढ गया। पूरी मीडिया में अचानक से अरविंद केजरीवाल टाॅप ट्ैंड करने लगे।
लोकतंत्र में पारदर्शिता होना चाहिए। जनता के प्रति जवाबदेही होनी चाहिए। लोक कल्याण ही सर्वोपरि चरित्र होना चाहिए। लेकिन, क्या ऐसा होता है ? क्या देश की सरकों ऐसा कर रही है ? क्या सरकार एक बंधे बंधाएं लीक पर ही चलना चाहती है, जिसे प्रोटोकाॅल का नाम दिया गया है ? जो बातें सरकार के अंदर प्रतिनिधियों के बीच होनी चाहिए। जिससे व्यवस्था आगे की रणनीति बनाती है, क्या उसको जनता को बताना चाहिए ? ऐसे ही कई सवाल केवल इसलिए अचानक से लोगों के बीच चर्चा में आ गए हैं, क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के बीच की बैठक की बातों को सार्वजनिक कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इस पर असहमति जताई गई।
असल में, 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) कोरोना संकट से निबटने के लिए कई राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ वीडियो के माध्यम से चर्चा कर रहे थे। यह पूरी मीटिंग प्रधानमंत्री कार्यालय की देखरेख में हो रहा था। कोरेाना के दौर में इस प्रकार की कई चर्चाएं पहले भी हो चुकी हैं। लेकिन, 23 अप्रैल की मीटिंग के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस लिंक को अपने सोशल मीडिया के मंच पर साझा कर दिया। कुछ ही देर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(PM Narndra nodi) को इसकी जानकारी लगी और उन्होंने बैठक में अरविंद केजरीवाल से कहा कि यह उचित नहीं है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने कोरोना के मुद्दे पर पीएम-सीएम कॉन्फ्रेंस के मंच का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया है। दरअसल, पीएम मोदी के साथ बैठक में जो विचार मुख्यमंत्रियों को रखने थे वे सार्वजनिक करने का अधिकार नहीं था। ये एक गोपनीय बैठक थी जिसमें कई ऐसी बातें मुख्यमंत्री ने की हैं जिनके सार्वजनिक होने से अराजकता फैल सकती है। केजरीवाल ने अपने संबोधन को लाइव करके बैठक का प्रोटोकॉल तोड़ा है जिससे प्रधानमंत्री कार्यालय नाराज है। हालांकि केजरीवाल ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है और कहा कि उन्हें नहीं पता था कि प्रोटोकॉल के तहत कोई भी भाषण सार्वजनिक नहीं कर सकता। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी गलती पर माफी भी मांग ली है।
इसके बाद चर्चा शुरू हो गया कि क्या अरविंद केजरीवाल ने बनी-बनाई व्यवस्था, जिसे प्रोटोकाॅल कहा जाता है, उसका उल्लंघन क्यों किया ? क्या वे एक बार फिर जनता का समर्थन हासिल करना चाहते हैं और साबित करना चाहते हैं कि केंद्र सरकार नकारा है ? दिल्ली सरकार काम करना चाहती है लेकिन केंद्र सरकार से उसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा है ? ऐसे बातों की बौछार होने लगी।
जो लोग अरविंद केजरीवाल को समझते हैं, उन्हें पता है कि वे समय देखकर बेहतरीन छक्का लगाते हैं। सूचन के अधिकार का आंदोलन हो या उसके बाद अन्ना अंादोलन (Anna Andolan) में उनकी सहभागिता। दिल्ली की सत्ता में आते ही जिस प्रकार से पानी-बिजली लोगों को निशुल्क दिया, उससे व्यापक जनाधार बना और आज भी कायम है। ऐसे मे ंयदि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक और बातों को सार्वजनिक करवाया है, तो यूं ही नहीं किया होगा। इस पर पूरा मंथन कर लिया होगा।
मंथन किस प्रकार का किया है, उसको समझना हो, जो आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के बयान पर गौर किया जा सकता है। संजय सिंह ने कहा कि 1.देश की प्रतिष्ठा को गिरवी रख कर नवाज़ का केक खाने के लिये प्रोटोकोल तोड़ना। 2.चुनावी रैली के लिये कोरोना प्रोटोकोल तोड़ना। 3.ऑक्सिजन की कमी बताकर जनता की जान बचाने के लिये प्रोटोकोल तोड़ना। मुझे लगता है जान बचाने के लिए हर प्रोटोकोल तोड़ देना चाहिये।
असल में, अरविंद केजरीवाल ने बहुत दूर की चाल चली है। कल होकर दिल्ली में कुछ भी अनहोनी होती है, तो वे जनता के सामने इस बात को पूरी तैयारी के साथ ले जाएंगे कि हमने तो देश के प्रधान के सामने ये बातें रखीं थी। दिल्ली का दर्द बयां किया था। फिर भी नहीं हुआ, तो दोषी कौन ? जैसे अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के साथ दिल्ली के उपराज्यपाल की नोंक झोंक को समय-समय पर जनता के बीच ले जाते हैं। वे और उनकी पार्टी के नेता जनता को समझाते हैं कि दिल्ली में जो काम नहीं हो रहा है, वह उपराज्यपाल के कारण। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि 23 अप्रैलख् 2021 की पीएम संग मीटिंग की बात आने वाले चुनावों में प्रचार का अहम हिस्सा होगा।