डॉ. जीवन एस रजक
हे पिता!
मैं तुम्हारा श्राद्धकर्म नही करूँगा
पितृ-ऋण से मुक्ति के लिए
मेरा पूर्ण विश्वास है
पिता हाड़-माँस की देह मात्र नही है
आदि से अंत तक
सृष्टि की अटूट अभिव्यक्ति है
जिसमें बह्मांड का प्रत्येक कण समाहित है
हे पिता! तुम शाश्वत हो
तुम्हारा नाम आकाश से भी ऊँचा है
तुम्हारा अदम्य साहस मेरी अंतस ऊर्जा है
मेरे रक्त की हर बूंद, मेरी हर श्वास
तुम्हारी ऋणी है
मेरे हृदय के प्रत्येक स्पन्दन मे
सर्वदा तुम हो, सिर्फ तुम
मुझे नही पता पितृ-ऋण का उपबंध
क्यों किया गया है धर्म ग्रंथों में
मुझे लगता है कि मैं
सहस्त्रों जन्म लेकर भी
प्रत्येक जीवन का प्रत्येक क्षण
तुम्हारे स्मरण में गुजार दूँ
यद्यपि तब भी संभव न हो सकेगा
तुम्हारे ऋण से मुक्त हो पाना
डॉ. जीवन एस रजक, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं कवि