रीना एन. सिंह
विश्व हिंदू महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत जी और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री योगी राजकुमार नाथ जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन मे विश्व हिंदू महासंघ न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए सामाजिक समरसता का प्रतीक बन रहा है द्य विश्व हिंदू महासंघ समाज के हर वर्ग को एक सूत्र में पिरोकर, समानता और सद्भावना का संदेश दे रहा है, इसकी कार्यप्रणाली और विचारधारा मानवता के कल्याण और विश्वशांति के लिए समर्पित है। विश्व हिंदू महासंघ एक अत्यंत प्रतिष्ठित सामाजिक संगठन है, जिसकी स्थापना ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ जी द्वारा की गई थी। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी गोरखपुर की गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर थे और वर्तमान मे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के गुरु थे। गोरक्षपीठ हमेशा से सर्वधर्म समभाव का प्रतीक रहा है एवं समाज में एकजुटता का सन्देश देता रहा है, सदियों से गोरक्षपीठ में नाथ योगियों एवं सूफी संतों की विचार धारा का भारत में एक साथ प्रचार-प्रसार हुआ, उस काल में ऐसा भी देखा गया की कुछ नाथ संतों ने सूफी धारा को अपना लिया तो कुछ सूफी संतों ने नाथ साधना पद्धति से प्रभावित होकर नाथ धारा को अपना लिया था;
कहने का तात्पर्य यह है कि वह ऐसा समय था जब जाति या धर्म का भेद नहीं होता था। योगी आदित्यनाथ जी के गुरु ब्रह्मलीन राष्ट्रीय संत महंत अवेद्यनाथ जी ने तमिल नाडु के मीनाक्षीपुरम से सामाजिक समरसता का सन्देश दिया था, उन्होने धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई तथा पिछड़ी जाति तथा अनुसूचित वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित करते हुए ऐसे जिवंत उदहारण प्रस्तुत किये जिससे गोरक्षनाथ पीठ का सम्मान और पहचान न केवल उत्तर भारत अपितु दक्षिण भारत मे भी है, यहाँ यह बताना जरुरी है कि महंत अवेद्यनाथ जी के तमिल नाडु पहुंचने के सदियों पहले से ही दक्षिण भारत मे श्री गोरखनाथ मठ की जड़ें विद्यमान थी। लोककथाओं में राजा भर्तृहरि बहुत प्रसिद्ध है, जो उज्जैन के राजा थे एवं महान राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। राजा भर्तृहरि संस्कृत के महान कवि थे, जो अपना राज्य अपने भाई को सौंप कर नाथ पंथी योगी बन गए, भर्तृहरि को गोरख वंश के महान योगी में गिना जाता है। इनकी कहानियाँ बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान में लोकप्रिय है। छतीसगढ़ राज्य में रामायण, महाभारत, श्रीमद् भागवत गीता की तरह ही भर्तृहरि चरित भी काफी प्रचलित है, यह कथा गांवों में बुजुर्गों के मुख से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती रही है। राजा भर्तृहरि तमिल नाडु के महान नाथ योगी पट्टीनाथ जिन्हे तमिल भाषा मे ’पट्टिनाथर’ कहा जाता है स्वेथरन्यार या पट्टीनाथु चेट्टियार, पूमपुहार, तमिलनाडु के इस संत का पूर्वाश्रम नाम है, के शिष्य बन गए और अंत मे कालाहस्ती मंदिर में मोक्ष को प्राप्त किया।
दक्षिण भारतीय भाषाओं मे गोरखनाथ पीठ को कोरक्का सिद्धार भी कहा जाता है (देवनागरीः गोरखखर) जो 18 सिद्धारों में से एक है और नवनाथर के बीच गोरखनाथ के नाम से भी जाना जाता है, श्री अगत्तियार उनके गुरु थे, जिनकी समाधि तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के वडुकुपोइगनल्लूर में है। एक वृत्तांत के अनुसार, उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पर्वत में बिताया। गोरखनाथ पीठ यानी कोराक्कर से संबंधित अन्य गर्भगृह पेरूर, तिरुचेंदूर और त्रिकोनमल्ली मे हैं। कोराक्कर के कुछ सिद्ध मंदिर तथा गुफाएँ चतुरगिरि और कोल्ली पहाड़ियों में पाई जाती हैं। अगर हम राजनीति की बात करे तो यहां यह बताना जरूरी है कि आने वाले समय में भाजपा तमिलनाडु में राजनीतिक रूप से तभी सफल हो सकती है, जब वे योगी आदित्यनाथ को सामने रखेंगे तथा गोरखनाथ एवं दक्षिण भारत खासकर तमिल नाडु के ऐतिहासिक संबंधों को वर्तमान पीढ़ी के सामने रखेंगें । तमिलनाडु एवं गोरखनाथ पीठ का सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिकता जुड़ाव को सामने लाने की जरुरत है। 80 के दशक में सामाजिक समरसता के अग्रदूत महंत अवेद्यनाथ जी को मीनाक्षीपुरम, तमिलनाडु में घटित राष्ट्र विरोधी एवं गैर संवैधानिक सामूहिक धर्मांतरण ने विचलित कर दिया था तथा महंत अवेद्यनाथजी ने अपनी आपत्ति जताते हुए कहा की यह धर्मांतरण नहीं राष्ट्रानंतरण है। उनका कहना था कि हमे उस मूल कारण पर चोट करनी चाहिए जिसके कारण हमारे भाई बहन अपनी हज़ारो वर्षो पुरानी परंपरा धर्म और उपासना पद्धति को बदलने के लिए तैयार हो गए हैं, उन्होंने यह महसूस किया की समाज में उपेक्षित और तिरस्कृत जनों को कोई भी गुमराह कर धर्मान्तरण हेतु प्रेरित कर सकता है, ऐसे में उन्होंने गांव-गांव जा कर सामाजिक समरसता का अभियान चलाया। सामाजिक परिवर्तन की इस आंधी में बदलते हुए समाज को सबने देखा। 80 के दशक में धर्म ध्वजा रक्षक ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ जी देश में हिन्दू एकता की सबसे बड़ी कड़ी के रूप में उभरे, वर्ष 1994 में बनारस में डोमराजा जिन्हे सदियों तक चांडाल कहकर पुकारा जाता था उनके घर पर धर्म आचार्यों के साथ भोजन किया, जिससे विश्वभर में अवेद्यनाथजी द्वारा चलाये गए सामाजिक समरसता के अभियान से यह सन्देश दिया गया की हिन्दू धर्माचार्य समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने के लिए संकल्पबद्ध है।
महंत अवेद्यनाथजी ने श्री राम जन्म भूमि पर बनने वाले मंदिर का शिलान्यास किसी अछूत से करने का प्रस्ताव दिया था, यही नहीं बिहार में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में सत्ता में रहने के लिए जब जातिवाद राजनीति अपनी चरम सीमा पर थी, तब पटना में स्थित हनुमान जी के महावीर मंदिर में एक हरीजन को पुजारी नियुक्त कर देश में विखंडनकारी राजनीति को आइना दिखाया जो की देश की आज़ादी के बाद हिन्दू पुनः जागरण के शुभ आरम्भ का एक प्रयाय बना। जनवरी 2024 में राम मंदिर के शिलान्यास को हम सभी ने देखा, यहाँ यह जानना बहुत आवश्यक है कि श्री राम जन्म भूमि आंदोलन की सफलता का एक बड़ा कारण महंत अवेद्यनाथजी का नेतृत्व भी है जिसे सभी पंथो के धर्म आचार्यों ने सर्व स्वीकार किया था। राम जन्मभूमि के आंदोलन का दीप महंत अवेद्यनाथजी के गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने जलाया था जिसे महंत अवेद्यनाथ जी ने आगे बढ़ाया और जिसे आज योगी आदित्यनाथ जी पूर्णता की ओर ले जा चुके हैं। समय सिद्ध कर रहा है की आज राजनीति में सनातन धर्म की रक्षा के लिए भाजपा को तमिल नाडु मे मजबूत करने के लिए गोरखनाथ मठ ही सबसे बड़ी ताकत है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ जी को तमिलनाडु में ओबीसी, एससी-एसटी उत्थान विचारधारा को पुनर्जीवित करना चाहिए, जिसे उनके गुरु महंत अवेद्यनाथजी ने शुरू किया था, अगर ऐसा होता है तो योगी आदित्यनाथ भारत की राजनीति का पहला ऐसा चेहरा होंगे जिनकी सशक्त पहचान और पकड़ हिंदी भाषित राज्यों के साथ-साथ दक्षिण भारत मे भी होगी, इसमे कोई दो राय नहीं है कि भारत के भविष्य की राजनीति मे सनातन के रक्षक संत के रूप मे योगी आदित्यनाथ ही होंगे जो भारत को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक सूत्र मे पिरोने का महान कार्य करेंगे, जिसमे सामाजिक संगठन विश्व हिन्दू महासंघ के प्रत्येक कार्यकर्ता का भी अहम योगदान रहेगा क्यूंकि सनातन धर्म के हर एक अनुयायी के सहयोग के बिना, धर्म ध्वजा लहरायेगा कौन? मंगल दीप जलायेगा कौन? तुम जो रोकोगे अपने हस्त, तो विजय दिलायेगा कौन?
(लेखिका सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट हैं।)