आरएसएस के दबाव में अपनी हिंदू युवा वाहिनी को ख़त्म होने दे रहे हैं योगी आदित्यनाथ ?

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अपना एक संगठन है ‘हिंदू युवा वाहिनी.’ लेकिन इसे कुछ ही दिनों में ‘था’ कहा जा सकता है. यानी योगी आदित्यनाथ का एक संगठन हुआ करता था. प्रदेश के कई हिस्सों से यह संगठन तेजी से आधार खो रहा है या यूं कहें कि ख़त्म हो रहा है. या यूं भी कह सकते हैं कि इसे ख़त्म होने दिया जा रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश हिंदू युवा वाहिनी का पारंपरिक गढ़ माना जाता है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस संगठन ने योगी के मुख्यमंत्री के बनने के बाद अचानक ताक़त बढ़ाई थी. लेकिन इन दोनों ही इलाकों में इन दिनों बड़ी तादाद में संगठन के कार्यकर्ता इसे छोड़कर जा रहे हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों- बलरामपुर, मऊ और आज़मगढ़ में तो आलम यह है कि अब यहां इस संगठन के कार्यकर्ता गिनती के ही बचे हैं. जबकि बलरामपुर में एक समय इस संगठन का मज़बूत आधार होता था.
बीती एक फरवरी की ही बात है. बलरामपुर के हिंदू युवा वाहिनी के जिला अध्यक्ष रंजीत आज़ाद की अगुवाई में सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने संगठन छोड़ दिया. आज़ाद कहते हैं कि प्रदेश नेतृत्व उन्हें काम ही नहीं करने दे रहा. ऐसे ही लगभग इसी समय के आसपास संगठन की मऊ जिला इकाई भी निष्क्रिय हो गई. अखिलेश कुमार साही इस जिले संगठन मंत्री हुआ करते थे. वे बताते हैं, ‘प्रदेश नेतृत्व ने तीन फरवरी को जिला इकाई भंग कर दी. तब से हमारे सैकड़ों कार्यकर्ता संगठन छोड़ चुके हैं. इनमें से कुछ निष्क्रिय हो गए हैं तो कई समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं.’ आज़मगढ़ में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं के संगठन छोड़ने का सिलसिला तीन चरणों में चला. पहले आज़मगढ़ कस्बे में नौ जनवरी को. फिर बिलारीगंज विकासखंड में 11 जनवरी को. और फ़िर तहबरपुर में 19 को.

अधोगति की शुरूआत लखनऊ से

संगठन की अधोगति यानी सांगठनिक रूप से इसके नीचे जाने की शुरूआत वैसे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से हुई थी. इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इकाइयों का ढहना शुरू हुआ. अनुभव शुक्ला लखनऊ इकाई के प्रभारी होते थे. वे बताते हैं, ‘यह सब उस वक़्त शुरू हुआ जब भारतीय जनता पार्टी के दबाव में हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश महामंत्री पीके माल ने लखनऊ इकाई भंग करने का ऐलान किया. इससे संगठन में बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा हो गया. यह बीते आठ दिसंबर की बात है. उसी दिन कुछ घंटों बाद 2,500 से ज़्यादा कार्यकर्ताओं ने एक साथ संगठन से इस्तीफ़ा दे दिया.’
अनुभव शुक्ला आगे बताते हैं कि इसके नौ दिन बाद 17 दिसंबर को शामली जिले के 100 सदस्यों ने जिला इकाई के प्रमुख कुलदीप गौड़ के नेतृत्व में संगठन को अलविदा कह दिया जबकि इनमें से कई कार्यकर्ता तो योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही संगठन में शामिल हुए थे. गौड़ बताते हैं, ‘शामली के जिला संगठन मंत्री विकास सिंघल के नेतृत्व में बीती सात फरवरी को 100 से ज़्यादा कार्यकर्ता और संगठन छोड़ गए. हमें यह महसूस हो रहा था कि प्रदेश नेतृत्व हमारी उपेक्षा कर रहा है. इसीलिए हम संगठन छोड़ने पर मज़बूर हुए हैं.’
हालांकि हिंदू युवा वाहिनी के मीडिया प्रभारी रवींद्र प्रताप यह नहीं मानते कि कार्यकर्ता उपेक्षा की वज़ह से संगठन छोड़ रहे हैं. वे कहते हैं, ‘ये हमारा सांस्कृतिक संगठन है .लेकिन इसमें रहते हुए जिनके भीतर राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं पनप गई थीं और वे पूरी नहीं हो पाईं वही लोग अब संगठन छोड़ रहे हैं. जबकि जिन इकाइयों को भंग किया गया है वे ऐसी थीं जो महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) के मुख्यमंत्री बनने के बाद पैदा हुई परिस्थितियों को संभाल नहीं पा रही थीं.’

संगठन कब और क्यों बना था?

अब ज़रा इस संगठन के इतिहास के बारे में संक्षेप में जान लेते हैं. 1998 से गोरखपुर से लोक सभा के सांसद रहे योगी अदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना 2002 में की थी. जानकारों के मुताबिक इस संगठन को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया था कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए योगी की चुनावी ज़रूरतों को पूरा करता रहे. और यह इस संगठन ने किया भी. मिसाल के तौर पर योगी की जीत का अंतर 1999 में जहां 7,000 वोटों का था वहीं हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना के दो साल बाद यानी 2004 में ही यह बढ़कर 1.42 लाख हो गया. 2009 और 2014 के लोक सभा चुनावों में वे तीन लाख से ज़्यादा मतों से जीते.

और अब अगर ख़त्म किया जा रहा है तो क्यों?

संगठन की ओर से दलीलें चाहें जो आएं लेकिन सूत्र बताते हैं कि भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) ने योगी आदित्यनाथ को निर्देश दिया है कि हिंदू युवा वाहिनी को भंग कर दिया जाए. बताते हैं कि मुख्यमंत्री का पद संभालते ही योगी को बहुत साफ़ शब्दों में यह निर्देश मिल गया था. और यह निर्देश इस आशंका के मद्देनज़र दिया गया कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका संगठन पूरे प्रदेश में तेजी से समानांतर हिंदू संगठन के तौर पर विस्तार पा सकता है. जबकि यह संगठन अब तक संघ परिवार के दायरे से बाहर है.
इसीलिए दूसरा डर यह भी था कि ज़्यादा विस्तार पा जाने पर यह कहीं भाजपा के लिए ही चुनौती न बन जाए. क्योंकि लगातार नए जुड़ रहे कार्यकर्ताओं में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी ठांठें मार ही रहीं थीं. यानी उनकी ये महत्वाकांक्षाएं भाजपा के साथ ही संघर्ष का कारण बन सकती थीं. यह सहसंघर्ष महाराष्ट्र की प्रतिकृति हो सकता था जहां संघ परिवार से बाहर पनपा और बढ़ा शिवसेना जैसा एक हिंदू संगठन अब राजनीतिक दल के रूप में भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है. और हिंदू मतों के लिए भाजपा को इससे प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है.
यही वज़ह है कि हिंदू युवा वाहिनी अब धीरे-धीरे शांति की तरफ बढ़ रही है. अभी दो मार्च को ही इसका एक और प्रमाण सामने आया. उस वक़्त योगी आदित्यनाथ की ओर से पीके माल ने घोषणा की कि आने वाले छह महीनों या शायद साल भर तक के लिए हिंदू युवा वाहिनी में किसी को भी नई सदस्यता नहीं दी जाएगी. उनके मुताबिक सदस्यता अभियान अभी के लिए ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है.
हालांकि कहा जा रहा है कि आरएसएस इस घोषणा से भी संतुष्ट नहीं है. और वह चाहता है कि सदस्यता अभियान नहीं बल्कि पूरा संगठन ही पूरी तरह ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया जाए. और आरएसएस के इस दबाव का नतीज़ा ही है कि अब एक-एक कर हिंदू युवा वाहिनी की इकाइयां भंग की जा रही हैं.
(साभार: सत्याग्रह )

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