कमलेश भारतीय
लघुकथा एक ऐसी विधा-डिसने सन् नब्बे के बाद फिर रफ्तार पकडी है । अनेक नये पुराने रचनाकार इस विधा में सक्रिय हैं । लघुकथा समारोह हो रहे हैं और कुछ संकलित तो कुछ एकल संग्रह लगातार आ रहे हैं । इन्हीं संकलनों में एकल संकलन है रेखा मोहन का रिदिमा ।
लघुकथा सम्मेलन में कई वरिष्ठ आलोचक बहुत सारे नियम गिना डालते हैं और बहुत सारे दोषों से बचने की सलाह देते हैं । रिदिमा की लघुकथाओं को पढने के बाद यह लग रहा है कि रेखा मोहन ने इसके लघु आकार को पूरी तरह से ग्रहण किया है । ये लघु आकार में हैं लेकिन दूसरे गुणों को भी आत्मसात करना चाहिए था ।
लघुकथाओं में रेखा मोहन ने खासतौर पर सामाजिक मुद्दे उठाए हैं । जैसे बेटी बेटे में फर्क, वृद्धों की उपेक्षा, बहू बेटी में फर्क, नोटबंदी ,नेपाल त्रासदी, डाक्टर का निर्मम होना आदि । कहीं तो साक्षी मलिक की ही लघुकथा तो कहीं नारी को घूरती निगाहें । इस तरह विविध विषय हैं पर इस विविधता में उडान , गणित जिंदगी का , फर्क, अनाथ , बुनियाद , चेहरे के रंग , शक , नया बोध जैसी रचनाएं नयी ताजगी का अहसास करवाती हैं । उडान सर्वश्रेष्ठ लघुकथा है । नन्ही कोयल की उडान से अच्छा व पाजिटिव संदेश दिया है । घूरती निगाहें में कार्यालय में नारी को शोपीस मान लेने की ओर संकेत है । मौत का मोल आदर्शवादी रचना है । फर्क में बेटे की बजाय बेटी द्वारा चिंता किए जाने से फर्क सामने रखा है ।
आमदन में डाक्टर के व्यवसायी हो जाने का दुख है तो नवजीवन में नेत्रदान करने की प्रेरणा ।
इस सबके बावजूद प्रकाशक तीन लघुकथाओं को अनुकरमणिका में डालना ही भूल गया । कुल 81 लघुकथाएं अनुकरमणिका में हैं जबकि तीन इससे अलग हैं । पंजाबी शब्दों का उपयोग खुलकर किया है -जैसे तडफना जबकि तडपना होना चाहिए । नये रचनाकार की अनेक रचनाएं श्रेष्ठ होते हुए भी एक आग्रह है कि वे इस विधा में थोडा और तपें, थोडा और निखार लाएं और लघुकथाओं के शीर्षकों पर भी गौर करें । नया बोध की वजाय सिर्फ बोध भी चल सकता है और बुजुर्ग का दर्द की जगह सिर्फ बुजुर्ग से काम चल जाता ।
नयी रचनाकार का इससे पहले भी एक लघुकथा संग्रह आ चुका है । कवर मनमोहक है । तीसरा संग्रह बहुत गंभीरता से आएगा । यह मेरा विश्वास है ।
समीक्ष्य पुस्तक : रिदिमा लघुकथा संग्रह
रचनाकार : रेखा मोहन
प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन्ज , चंडीगढ
पृष्ठ :104 , मूल्य : 150 रुपए ।