कृष्णमोहन झा
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने नागपुर मुख्यालय में आयोजित किए जाने वाले एक गरिमामय समारोह में संघ के लगभग 800 स्वयंसेवकों को उदबोधन देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आमंत्रित किया है।संघ का यह आमंत्रण स्वीकार न करने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखे और फोन पर भी निवेदन भी किया। प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस के नेताओं के अनुरोध पर आमंत्रण पर पुनर्विचार करने का निवेदन अभी तक स्वीकार नहीं किया है। प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद से निवृत्त होने के बाद सक्रिय राजनीति से पूरी तरह दूर है। पद पर रहते हुए भी उन्होंने किसी दल विशेष अथवा किसी विचारधारा से जुड़ाव होने के कभी कोई संकेत नहीं दिए। राष्ट्रपति के रूप में उनके द्वारा लिए गए किसी फैसले पर कभी विवाद की स्थिति नहीं बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके संसदीय ज्ञान, राजनीतिक चातुर्य एवं विद्वता के लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। प्रणब मुखर्जी के इन्हीं गुणों के कारण वे अपने राजनीतिक विरोधियों के बीच भी सम्माननीय व्यक्ति रहे हंै। ऐसे निर्विवाद नेता यदि आरएसएस के स्वयसेवकों को संबोधित करने उनके कार्यक्रम में जाते हैं, तो कांग्रेस को इसे विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए।
कांग्रेस की बेचैनी का कारण प्रणब मुखर्जी की पूर्व में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की पहचान होना है। प्रणब कांग्रेस की विभिन्न सरकारों में वरिष्ठ मंत्री पद पर रह चुके है। कांग्रेस ने ही उन्हें संप्रग की ओर से राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया था। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी ने हर फैसला दलगत राजनीति से ऊपर उठकर किया है। पदमुक्त होने के बाद उन्होंने कांग्रेस अथवा किसी भी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ाव के संकेत नहीं दिए,इसलिए संघ यदि उनके निष्पक्ष विचार सुनना चाहता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। संघ के कार्यक्रमों में तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , जयप्रकाश नारायण, पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल करिअप्पा जैसे विशिष्ट व्यक्ति शिरकत कर उनकी सादगी पूर्ण जीवनशैली एवं अनुशासन की प्रशंसा कर चुके हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत चीन युद्ध के समय संघ के स्वयंसेवकों ने समर्पित भाव से सेवाएं प्रदान की थी, जिससे प्रभावित होकर तात्कालिन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में स्वयंसेवकों को भाग लेने का अवसर दिया था। और तो और, जब 1965 में भारत पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा, तो तात्कालिन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने जो सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, उसमें संघ के तात्कालीन सरसंघचालक को भी विचार विमर्श में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। देश के किसी भी हिस्से में जब प्राकृतिक आपदा आई अथवा कोई बड़ा हादसा हुआ हो, तब स्वयंसेवकों ने पीड़ितों को सहायता देने के लिए अपनी अथक सेवाएं प्रदान की। संघ की इस सेवाभावी गतिविधियों की हमेशा सराहना हुई है। अंत: ऐसी संस्था के आमंत्रण को स्वीकार करने के पूर्व राष्ट्रपति का फैसला किसी भी तरह का विवाद का विषय नहीं बनना चाहिए।
दरअसल, संघ के लिए भी ऐसे निर्विवादित व्यक्ति के विचार महत्पूर्ण है इसलिए उन्हें आमंत्रित किया है। प्रणब मुखर्जी कांग्रेस नित सरकारों में महत्वपूर्व विभागों के मंत्री रहे हैं। उन्होंने विभिन्न मौकों पर सरकार के संकट मोचक की भूमिका निभाई है। उनके राजनीतिक चातुर्य के लिए पार्टी में उन्हें चाणक्य के रूप में पहचान दिलाई है। विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने अपने विरोधियों के लिए कभी अमर्यादित शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। अपनी बात को नपे-तुले अंदाज में व्यक्त करने का अप्रितम गुण प्रणब मुखर्जी के अंदर मौजूद है। यह गुण विरले राजनेताओं के अंदर मौजूद होता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण प्रणब मुखर्जी ने प्रणब दा तक का सफर तय किया है।
प्रणब मुखर्जी को संप्रग सरकार ने राष्ट्रपति की आसंदी तक पहुचाया था। बाद में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनके बीच सौहाद्रपूर्ण संबंध बने रहे। दोनों के बीच मनमुटाव की खबरें कभी प्रकाश में नहीं आई। इसका कारण उनकी मर्यादित जीवनशैली एवं अप्रितम गुणों का होना रहा है। पीएम मोदी स्वयं उनकी प्रशंसा विभिन्न मौकों पर कर चुके हैं। ऐसे प्रणब दा को अगर कांग्रेस पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता यह सलाह देने में संकोच नहीं कर रहे हैं कि उन्हें किसका आमंत्रण स्वीकार करना चाहिए और किसका नहीं, तो यह बड़ा आश्चर्य का विषय है।
प्रणब दा द्वारा संघ के आमंत्रण को स्वीकार करने का फैसला कांग्रेस को पहले दिन से ही बेचैन कर रहा है। कांग्रेस की यह अपेक्षा थी कि वे संघ के आमंत्रण को स्वीकार न करे। उनका मानना है कि कांग्रेस के बुराड़ी अधिवेशन में प्रणब मुखर्जी ने स्वयं ही संघ के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया था,इसलिए उन्हें नैतिक आधार पर उनके कार्यक्रम में अतिथि बनने से परहेज करना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए तो कांग्रेस को यह मंथन करना चाहिए कि जब संघ ने उनके कटु आलोचक प्रणब दा को अतिथि बनाने से परहेज नहीं किया, तो उन्हें इसमें उन्हें परेशान होने की जरूरत क्या क्या है ? बल्कि उन्हें तो गर्व होना चाहिए कि उनके वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी, जिन्होंने कांग्रेसराज में विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी कुशलतापूर्वक संभाली हो उन्हें अपने कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। इस मामले में मुखर्जी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें कई कांग्रेसी नेताओं ने पत्र लिखे और फोन किया, लेकिन मैंने जवाब नहीं दिया। मुझे जो भी कहना है, नागपुर में ही कहूंगा।
गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने हाल में कहा था कि उन्हें संघ की ओर से मिले आमंत्रण को स्वीकार नहीं करना चाहिए। यदि वे वहां जाते हैं, तो उन्हें कार्यक्रम में संघ की गलतियां बताना चाहिए। इसी सिलसिले में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश एवं सीके जाफर शरीफ उन्हें अपना फैसला बदलने के लिए फोन किया, लेकिन प्रणब अपने फैसले पर अटल है। प्रणब दा संघ के कार्यक्रम में अतिथि के रूप में क्या बोलेंगे इसकी प्रतीक्षा बेसब्री से कांग्रेस कर रही है। कांग्रेस के एक अन्य नेता संदीप दीक्षित तो प्रणब दा के फैसले से इतने नाराज हो गए कि उन्होंने आरएसएस की सीमा से बाहर जाकर आलोचना कर डाली। इसके बाद वे स्वयं आलोचना के घेरे में आ गए।
अब उचित यही होगा कि कांग्रेस प्रणब मुखर्जी के परामर्शदाता की भूमिका को छोड़कर यह सोचे कि उसके आलोचक रहे संघ ने पहली बार किसी उसके एक वरिष्ठ नेता रहे व्यक्ति को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। कांग्रेस अनावश्यक रूप से यह आशंका भी न करे कि प्रणब संघ के कार्यक्रम में जाकर उनके अनुयायी न बन जाएंगे। कांग्रेस उनसे यह अपेक्षा भी न करे कि वे कार्यक्रम में अतिथि के रूप में वैसे आलोचक के रूप में पेश आए जैसे कि राहुल गांधी व अन्य कांग्रेसी बने हुए हैं। ऐसा सोचना कांग्रेस के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं होगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है)