दिल्ली के एक क्षेत्र में एक ही परिवार के ग्यारह सदस्यों द्वारा सामूहिक आत्महत्या किए जाने से दिल दिमाग सुन्न से हो गये । जैसे कि होता है पुलिस से पहले चैनल्स अपने ट्रायल में जुट कर इसे मोक्ष पाने के लिए की गयीं आत्महत्याएं साबित करने में जुट गये हैं । मोक्ष के इस तरीके को गले उतारना मुश्किल होता जा रहा हैं । कितना अंधविश्वास ? ग्यारह लोहे के पाइप । चार मुड़े , सात सीधे । धार्मिक अनुष्ठान के के निशान । यह कैसा अनुष्ठान और कैसा मोक्ष पाने का राह ?
अभी 17 जून को तो घर की बेटी की सगाई हुई और वह वीडियो बताता है कि परिवार कितना खुश था । फिर इतने कम दिनों में ऐसा क्या हो गया कि पूरा परिवार मोक्ष की ओर चल पडा ? दिल है कि मानता नहीं । ये अविश्वसनीय व अकल्पनीय है । परिवार की बेटी सुजाता भी कह रही है कि ये आत्महत्याएं नहीं बल्कि हत्याएं हैं । कौन इन्हें आत्महत्याएं मानेगा ? कभी वटवृक्ष की बात तो कभी कच्ची सूतली की बात । कभी रजिस्टर का जिक्र तो कभी बूढी मां को लेटे रहने की हिदायत । यह जरूर किसी लोभी तांत्रिक का काम हो सकता है और इतनी सफाई से किया गया कि किसी को जरा भी शक नहीं होने दिया । पूरे मोहल्ले में किसी को जरा भी भनक नहीं लगी । मीडिया को अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । पुलिस गौर से छानबीन कर रही है और मीडिया गुमराह न करे तो बेहतर । आज तक मीडिया ट्रायल के चलते आयुषी हत्याकांड की गुत्थी नहीं सुलझी । कहीं इसे भी उलझा न दे मीडिया । समाचार दो , तथ्यों को तोडा नहीं ।
ऐसे अनेक कांड सामने आए हैं । चंडीगढ का वर्षों पुराना कांड , जिसमें पत्नी अपने पति को कम से कम छह माह तक जीवित दिखाने का पाखंड करती रही और वेतन भी लेती रही । तांत्रिक का ही कमाल था यह । ऐसे तांत्रिकों से बचाना और सावधान करना मीडिया का काम हैं ।