नई दिल्ली। इराक के मोसुल शहर में मारे गए भारतीयों के परिवारों के लिए सरकार ने 10-10 लाख रु की राहत राशि का ऐलान किया है. 2014 में इन लोगों की बंधक बनाए जाने के बाद हत्या कर दी गई थी. इन 39 भारतीयों में से 38 के पार्थिव अवशेष लेकर विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह दो अप्रैल को ही भारत लौटे हैं. इससे पहले इन भारतीयों की मौत पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को संसद से लेकर सड़क तक आलोचना झेलनी पड़ी थी. विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं ने उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सरकार लगातार इस मुद्दे पर झूठा आश्वासन देती रही और कहती रही कि ये भारतीय जिंदा हैं. मारे गए लोगों के परिजनों ने भी सुषमा स्वराज पर सवाल उठाया.
लेकिन क्या सच में गलती सुषमा स्वराज की थी? सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि विदेश मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों की राय इस मुद्दे पर पिछले कई महीनों से एकदम अलग-अलग थी. विदेश मंत्रालय ने हरसंभव कोशिश की थी, लेकिन 39 भारतीयों के ज़िंदा होने का सबूत नहीं मिल रहा था. उधर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल बार-बार सरकार को आश्वस्त कर रहे थे कि 39 भारतीयों के ज़िंदा होने के सबूत मिल रहे हैं. आखिर में यह बात गलत साबित हुई और ठीकरा सुषमा स्वराज पर फूटता दिखा.
बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर कई एजेंसियां एक साथ काम कर रही थीं. विदेश मंत्रालय इराक में मौजूद अपने परंपरागत सूत्रों के जरिए असलियत जानने की कोशिश कर रहा था. उधर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अपने सूत्रों और खुफिया एजेंसियों से बात कर रहे थे. सुनी-सुनाई है कि विदेश मंत्रालय और एनएसए के बीच एकराय नहीं बन पाई इसलिए सरकार इस मुद्दे पर आखिर तक फैसला नहीं कर पाई. मोसुल के आज़ाद होने के बाद जब विदेश मंत्रालय सीधे इराक सरकार से बात कर पाया तब उसे सही जानकारी मिल सकी.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब अजीत डोभाल द्वारा विदेश मंत्रालय के कामकाज में दखल देने की खबरें उड़ी हैं. विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, चीन, अमेरिका आदि जैसे बड़े देशों के लिए स्पेशल डेस्क होती हैं. इन देशों से राजनयिक संबंधों की बारीक बातों को सुलझाने के लिए पूरी टीम काम करती है. विदेश मंत्रालय में काम करने वाले एक अफसर बताते हैं कि उसके पाकिस्तान डेस्क पर विदेश मंत्री से ज्यादा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नज़र रहती है.
अभी बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे बातचीत शुरू हो चुकी है. इस बातचीत को शुरू करने का जरिया भी अजीत डोभाल ही बने थे. पहले विदेश में जाकर उन्होंने पाकिस्तान के एनएसए नासिर जंजुआ से बात की. करीब तीन बार अलग-अलग मुल्कों में दोनों की बातचीत हुई. उसके बाद विदेश मंत्रालय तस्वीर में आय़ा और कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारत के हाई कमिश्नर से सीधे बातचीत शुरू कर दी है.
अब सुनी-सुनाई इससे कुछ ज्यादा ही आगे की बात कहती है. अगर अजीत डोभाल के सूत्रों पर एक बार फिर भरोसा किया गया तो बहुत जल्द एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाकात हो सकती है. इस मुलाकात पर भी विदेश मंत्रालय की राय थोड़ी अलग है. एनएसए चाहते हैं कि बातचीत शुरू हो और विदेश मंत्रालय अभी तक यथास्थिति कायम रखने के पक्ष में है. उसकी दलील है कि एक तो ज़मीनी हकीकत नहीं बदली है और दूसरे, इस वक्त पाकिस्तान में एक कमजोर सरकार है, इसलिए नरेंद्र मोदी के खुद बात करने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा.
उधर, भाजपा की खबर रखने वाले पत्रकार बताते हैं कि 2019 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री एक और कोशिश करना चाहते हैं. यह कोशिश 2018 में ही होगी क्योंकि उसके बाद ऐसी कोशिश हुई तो उसका जोखिम बहुत ज्यादा होगा. इसलिए अगर पाकिस्तान को लेकर कोई बड़ा फैसला कुछ हफ्तों में हो तो यह समझना चाहिए कि अजीत डोभाल अपनी बात विदेश मंत्रालय से ज्यादा मजबूती से रखने में सफल रहे. उधर, चीन को लेकर भी भारत सरकार अभी तक साफ-साफ फैसला नहीं कर पाई है. पहले चीन मामले में अजीत डोभाल का सीधा दखल नहीं था, लेकिन डोकलाम मसले के बाद चीन डेस्क पर भी उनकी पैठ बढ़ी है. अब चीन मामले पर रिपोर्ट तैयार करने वाले अफसर उनको भी खबर देते हैं. चीन पर डोभाल के इनपुट को ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है. चीन पर भी विदेश मंत्रालय का रुख अजीत डोभाल के नज़रिए से थोड़ा अलग है, लेकिन फिलहाल सरकार उनके रुख पर ही आगे बढ़ रही है.
चीन में शी जिनपिंग के मजबूत होने के बाद अजीत डोभाल फिलहाल चीन से दोस्ती बढ़ाने के पक्ष में है. कहा जाता है कि इसी वजह से चीन के मंत्रियों का तेजी से आना-जाना शुरू हुआ है और चीन के अफसरों से संपर्क बढ़ाया जा रहा है. उसके जरिए पाकिस्तान पर दवाब डालने की कोशिश भी हो रही है. लेकिन विदेश मंत्रालय के पुराने अफसर मानते हैं कि यह कोशिश भी रंग नहीं लाएगी क्योंकि चीन कहेगा कुछ, पर करेगा वही जो वह करता आया है.
मोदी सरकार के एक मंत्री ने कुछ दिन पहले मीडिया के लोगों से बात की थी. उन्होंने इशारों में कहा था कि 2019 से पहले सरकार एक बड़ा धमाका करेगी. यह धमाका नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से बड़ा होगा. कोई सरकारी योजना बड़ा गेमचेंजर फॉर्मूला साबित होगी, इसकी संभावना बहुत कम है. इसलिए आने वाले समय में कुछ ऐसा हो सकता है जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका बड़ी अहम हो. लेकिन अगर बाज़ी उल्टी पड़ गई तो एक बार फिर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ही दुनिया के सवालों से निपटना होगा.