महिलाओं को उनका हक दिलाना और उनके लिए लगातार संघर्ष करके उनको उनका समाजिक हक दिलाने का सपना मन में लिए एक अलख जगाने निकल पड़ी आशा दि्वेदी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से ताल्लुक रखते हुए राजनीति में सक्रियता के साथ-साथ समाज सेवा करना खासकर, महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना, उन्हें हर संभव मदद देना श्रीमती आशा द्विवेदी के जीवन का एक मात्र लक्ष्य है। अपनी इसी अलख को वर्ष 1997 में अलख फाउंडेशन का नाम देकर वह लगातार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए गरीब महिलाओं व बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने में लगीं हैं। कहना गलत न होगा कि आशा अपने लक्ष्य के प्रति तन-मन-धन से समर्पित हैं।
सबसे पहले, अपने शुरुआती सफर के बारे में कुछ बताएं, आपके सामाजिक सफर की शुरुआत कैसे हुई?
जब मैं पहली बार वर्ष 1980 में समाजवादी आंदोलन में शामिल हुई, तो उस वक्त सामाजवादी विचारधारा का दौर थी जिससे मैं काफी प्रभावित हुई। उसके बाद समाजवादी संगठन से जुडक़र मैंने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रहते हुए महिला उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग में सदस्य के रूप में कार्य करते हुए गरीब बच्चों व महिला उत्थान के लिए कार्य करती रही। मेरा मानना है कि राजनीति और समाजसेवा एक दूसरे के पूरक हैं। समाज सेवा की भावना शुरूसे ही मेरे व्यवहार में शामिल रहा है।
तो राजनीति से समाजसेवा क्षेत्र में आने का मन कैसे बना?
मेरी मानना है कि समाजसेवा और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और राजनीति में रहते हुए मुझे लगा कि मैं समाजसेविका बन ज्यादा भलीभांति काम कर सकती हूं। सच पूछिए तो बचपन से ही समाज सेवा का भाव मेरे व्यवहार में रहा है। दूसरी बात यह कि इस पुरुष प्रधान देश में आज भी महिलाओं को सबसे ज्यादा तकलीफें उठानी पड़ती हैं। वे अपने घर-परिवार और समाज से कहीं न कहीं पीडि़त हैं। शायद इसलिए मेरे मन में महिलाओं के प्रति काफी लगाव और उनके सुख-दुख का हमेशा ख्याल रहा है। जब मेरी संस्था नहीं थी, तब भी मैं दूसरी संस्थाओं के साथ मिलकर अनाथ बच्चों व महिलाओं के लिए कार्य करती थी। फिर मैं अपनी संस्था अलख फाउंडेशन के अंतर्गत अपने कई महिला मित्रों को जोड़कर गरीब बच्चों व लड़कियों को निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही हूं। इसके अलावा अनाथ लड़कियों की सामूहिक शादियों में मदद करने के साथ-साथ उन्हें लघु उद्योग कार्य के लिए प्रोत्साहित करती हूं।
आपकी संस्था अलख फाउंडेशन का गठन कब हुआ?
समाजसेवा की अलख ने मुझे अलख फाउंडेशन की नींव रखने की प्रेरणा दी। अलख फाउंडेशन का गठन वर्ष 1997 में हुआ। इस संस्था में मेरे साथ कई मेहनती महिलाओं का एक ग्रुप है, जिनके सहयोग से हम समय-समय पर महिलाओं की बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वस्थ्य समाज के लिए कार्य करती रहती हूं। गरीब बच्चों व लड़कियों की बेहतर शिक्षा के साथ-साथ उन्हें लघु उद्योग कार्य हेतु प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर जनजागरण, मीटिंग, सम्मेलन और सेमिनार का आयोजन करती हूं। बनारस चूंकि मेरा गृहजिला है इसलिए वहां के लिे ज्यादा सचेत रहती हूं। बनारस में दहेज प्रथा के विरोध में एक कार्यक्रम का आयोजन कर लोगों को घर की बेटीऔर बहू के प्रति बदलते भावना से अवगत कराया है।
महिला सशक्तिकरण को कैसे देखती हैं?
सच मानिए तो महिला तो हर कदम पर अपने अस्तित्व को लिए लड़ना होता है। इस पुरुष प्रधान समाज में कहीं न कहीं एक भय जरूर है कि महिलाएं उनसे आगे आएंगी तो उनके अस्तित्व का क्या होगा? पर इस भय पर महिलाओं ने जीत दर्ज की है। आज देखें तो लगभग हर क्षेत्र में महिलाएं काम कर रही हैं, उनके मन में यह बदलाव आया कि हम कुछ भी कर सकते हैं, जिसका एहसास इस समाज को भी हो रहा है।
क्या सच में सामाजिक स्तर पर महिलाओं के उत्थान की जरूरत एब भी है?
हम आप बड़े शहरों में रहते हैं, यहां की महिलाओं की प्रगति देखते हैं तो हमको लगता है कि महिलाओं को अब उत्थान की जरूरत नहीं है। पर कभी छोटे शहर और गांव में महिलाओं की हालत देखिए। आज भी देश में कई ऐसी जगहों पर महिलाएं हैं, जहां उन्हें बहुत कष्ट में जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। उनके बेहतर जीवन के लिए पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर व्यापक कार्य करने की जरूरत है। जो संपन्न लोग हैं उन्हें इस काम के लिए आगे आकर सहयोग की जरूरत है क्योंकि वे भी हमारे देश, समाज और परिवार से जुड़े हैं। मेरी यही कोशिश है कि जरूरतमंद को हर संभव मदद मिल सके।
आज राजनीति और समाज सेवा एक दूसरे के विपरीत चल रहा है, क्या कहना चाहेंगी?
जैसा मैने पहले ही कहा कि मेरे लिए दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मेरा मानना है कि राजनीति भी एक तरह से समाज सेवा है। क्योंकि राजनीति करना ही जनता की सेवा है। जनता के लिए ही नेता पैदा होता है।
दिनभर की भागदौड़, समाज सेवा और राजनीति, इन सब के साथ आप अपनी परिवारिक जीवन में कैसे सामंजस्य बनाएं रखती हैं?
मेरा मानना है जबतक आप अपना परिवार ठीक से संङाल नहीं सकती तबतक आप बाहर कुछ भी नहीं कर सकती हैं।पहले परिवार बाद में समाज। घर-परिवार, समाज और राजनीति इन तीनों को एक साथ लेकर चलना थोड़ा मुश्किल काम है, पर परिवार का साथ और ईश्वर की कृपा रही है कि मुझे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों निर्वाहन करते हुए सामाजिक कार्यों को किया जिसे करके मुझे काफी खुशी मिलती है। मैंने वक्त बदलते देखा है, लोगों के चेहरे पर खुशियां देखी है। मैं कह सकती हूं कि मेरा प्यार मेरी फैमिली है, समाज सेवा मेरा कर्म और आदत है ।
आपको अपने परिवार से कितना सहयोग मिला?
परिवार नहीं तो मैं नहीं। मुझे मेरे बच्चों से काफी सहयोग मिलता रहा है। मेरी रफ्तार में जरा सा कमी होने पर मेरे बच्चे बेचैन हो जाते हैं। उनका प्यार व स्नेह मुझे हमेशा आगे बढ़ने की ताकत देता है। मुझे अपने महिला मित्रों का भी काफी सहारा मिलता रहा है, जो मेरी संस्था से जुडक़र समाज सेवाकार्य को आगे बढ़ा रही हैं।
कहते हैं एक सफल इंसान के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है, आपकी सफलता के पीछे किसका हाथ रहा है?
मैं अपने नाम के अनुरूप बहुत ही आशावादी हूं। जब किसी भी मजलूम को देखती तो उसके लिए कुछ करने की इच्छा बलवती होती। लोगों की तकलीफ को मिटाना मेरा मकसद बन गया और इसी प्रेरणा से मैंने राजनीति और समाज सेवा की तरफ कदम आगे बढ़ाया।
ईश्वर में आप कितना विश्वास रखती हैं?
सौ प्रतिशत। ईश्वर सर्वव्यापी है। बहुत कुछ ऐसा है, जो हमारे आपको हाथ में नहीं है, पर ऐसा कोई है, जो करता है, वही ईश्वर है।
आप अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि किस चीज को मानती हैं?
मुझसे जुड़े हर चेहरे पर मुस्कान लाना मेरे जीवन का मसकद है। समाज के प्रति जो सेवा भाव मेरे मन निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है, यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। खास बात इस जीवन में बहुत बड़ी संख्या में न सही बल्कि दो चार घरों के आंसू पोंछकर उनके चेहरे पर मुस्कान ला दिया तो शायद मेरे लिए इससे बड़ी खुशी की और क्या बात होगी।