नई दिल्ली। उद्योग संगठन एसोचैम का कहना है कि गुजरात के चुनाव समाप्त होने और अगले साल कई राज्यों में विधानसभा तथा 2019 में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अब सरकार के आर्थिक फैसलों पर राजनीतिक कारक हावी रहेंगे। संगठन ने एक नोट में कहा “2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वर्ष 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में चुनाव होने हैं। निश्चित रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अपनी नीतियों में मतदाताओं की भावनाओं का ध्यान रखेंगी। श्रम कानूनों में सुधार जैसे कठोर कानून आम लोगों की भावनाओं के खिलाफ होंगी और इसलिए इस संबंध में भारतीय कंपनियों की उम्मीदें फिलहाल परवान नहीं चढ़ पायेंगी।” मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक माहौल में एक उम्मीद की किरण यह है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को और सरल बनाया जायेगा तथा कर की दरों में कमी की जायेगी।
एसोचैम के नोट में कहा गया है “व्यापारियों के लिए जीएसटी सहज नहीं रहा है। राजनीतिक दलों के लिए व्यापारी एक बड़ा दबाव समूह हैं तथा गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान जीएसटी का मुद्दा फोकस बना रहा। इसके अलावा बजटीय प्रस्तावों से लघु तथा मध्यम उद्यमों के लिए बेहतरी की शुरुआत होगी। कम समय में रोजगार सृजन में उनकी भूमिका को महत्व दिया जा रहा है। अगले लोकसभा चुनाव से पहले रोजगार सृजन सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।”
एसोचैम की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “वर्ष 2018 और 2019 में ग्रामीण क्षेत्र में सरकार का ज्यादा ध्यान होगा। इसमें किसानों तथा ग्रामीण और कृषि संबंधी बुनियादी ढाँचों के लिए पहल की जायेगी। इससे सीधे कृषि से जुड़े उद्योगों के लाभांवित होने की उम्मीद है। सरकार का यह रुख आगामी बजट से ही शुरू हो जायेगा।” उद्योग संगठन ने कहा है कि मुद्रास्फीति एक महत्वपूर्ण कारक होगी। चुनावी वर्षों में सरकार की यह सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। इस दौरान सरकार का ध्यान विकास से ज्यादा महँगाई पर हो सकता है। इससे आने वाले समय में ब्याज दरें घटने की बजाय बढ़ने की संभावना ज्यादा है। उसने कहा है कि ग्रामीण माँग तय करने में अगले साल का मानसून महत्त्वपूर्ण कारक होगा क्योंकि बैंकों और कंपनियों के अपने बैलेंसशीट सुधारने में व्यस्त होने के कारण ऋण उठाव बढ़ने में अभी समय लगेगा।