कृष्णमोहन झा
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सदियों पुराने अयोध्या विवाद पर सर्वसम्मति से जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, वह कई मामलों में अनूठा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह इतना संतुलित फैसला है कि इस विवाद से जुड़ा कोई भी पक्ष इसे अपनी हार या जीत के रूप में परिभाषित नहीं कर सकता। यही कारण है कि इस बहुप्रतीक्षित फैसले पर सभी पक्षों ने न केवल संतोष बल्कि हर्ष भी व्यक्त किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सारे देश की निगाहें टिकी हुई थी। केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने फैसले की घोषणा के बाद समाज के सभी वर्गों के बीच सद्भाव और सौहार्द्र बनाए रखने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से व्यापक प्रबंध किए थे, परंतु कहीं से भी किसी अप्रिय घटना के समाचार ना मिलना इस बात की गवाही दे रहा था कि समाज के हर वर्ग ने फैसले को सहजता के साथ स्वीकार करने का संकल्प ले रखा था।
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला भी ऐसा सुनाया, जो सभी पक्षों को सहज स्वीकार था। इसलिए इस ऐतिहासिक फैसले पर सारे देश की एक ही राय थी कि अयोध्या विवाद पर इससे अच्छा फैसला और कुछ नहीं हो सकता था। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने उन लोगों के मुंह पर ताला जड़ दिया है ,जो हमेशा यह आशंका व्यक्त करते हुए नहीं थकते थे कि अयोध्या विवाद का निपटारा अगले 50 सालों में भी होना संभव नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने इस विवाद को एक निश्चित समय सीमा के अंदर संतोषजनक तरीके से निपटाने के लिए जो इच्छाशक्ति दिखाई, उसके लिए आज सारे देश में न्यायपालिका की जय जयकार हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या विवाद का न्यायालय का फैसला आने के बाद चंद घंटों के अंदर राष्ट्र के नाम संदेश में इस बात को रेखांकित किया कि कठिन से कठिन मसले का हल भी संविधान के दायरे में कानूनी प्रक्रिया के जरिए निकाला जा सकता है, लेकिन इसके लिए हर हालत में धैर्य बनाए रखना होगा।
गौरतलब है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण जल्द से जल्द प्रारंभ किए जाने के लिए साधु संतों के जमावड़े ने सरकार से कई बात कानून बनाने अथवा अध्यादेश जारी करने की मांग की गई थी। तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कहा था कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है और सरकार न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद भी अपने रुख को दोहराया। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी भूरी -भूरी प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने देश की जनता, साधु संतों और राजनीतिक दलों को इस फैसले की धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में देशवासियों से कहा है कि अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद देश में सद्भाव और सौहार्द्र का जो माहौल बना है, उसे और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। उनकी इस राय का भी तहे दिल से स्वागत किया जाना चाहिए कि अब हमें किसी धार्मिक विवाद में न पढ़कर, नए राष्ट्र के निर्माण में जुटना चाहिए। प्रधानमंत्री की सलाह को विवाद से जुड़े सभी पक्षों एवं समाज के हर वर्ग के लोगों ने जिस तरह आत्मसात करके सद्भाव और सौहार्द्र की जो मिसाल कायम की है, वह निसंदेह अनूठी है। सारी दुनिया भी मान रही है और यह प्रेरणा भी ग्रहण कर रही है कि बड़े से बड़े विवाद का भी कानून के दायरे में सर्वसम्मति से हल निकाला जा सकता है। विवाद से जुड़े दो पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड और इकबाल अंसारी ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं और अब इस पर कोई भी पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के इच्छुक नहीं है, ताकि अब इस बात पर हमेशा के लिए विराम लग जाए। प्रधानमंत्री की भी यही राय है कि देश अब किसी भी पूजा स्थल पर विवाद के लिए तैयार नहीं है। यह विवादों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का समय है।
राम जन्मभूमि आंदोलन को जन-जन तक ले जाने में जिन सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,उनमें राष्ट्रीय स्वयं संघ को अग्रणी स्थान पर रखा जा सकता है। संघ के वर्तमान प्रमुख डॉ मोहन भागवत का कहना है कि हमारा काम आंदोलन का नहीं है। हम तो इंसान का निर्माण करते हैं। संघ प्रमुख का भी मानना है कि अब सारे विवादों को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने का समय आ गया है। उनका कहना है कि राम जन्मभूमि आंदोलन से संघ किन्ही कारणों से अपवाद स्वरूप जुड़ा था, जिस पर फैसला आने के बाद विराम लग गया है। मोहन भागवत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस राय से सहमत हैं कि इस फैसले को हार या जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। भागवत कहते हैं कि न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले को पूरे समाज की सकारात्मकता और बंधुत्व के परिपोषण करने वाले निर्णय के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि संघ इस विवाद की जल्द परिणीति चाहता था और यह हर्ष का विषय है कि इस विवाद की सुखद परिणीति हो गई है।
गौरतलब है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए जब भी सरकार से कानून बनाने की अथवा अध्यादेश जारी करने की मांग की गई, तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री की इस राय का समर्थन किया कि अयोध्या विवाद पर हमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के लिए सभी न्यायाधीशों एवं अधिवक्ताओं का स्वागत करते हुए यह भी कहा कि उनके धैर्य पूर्वक मंथन से ही यह सत्य और न्याय सामने आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने विवाद की 40 दिनों तक सुनवाई की और सभी पक्षों को अपनी बात विस्तार से रखने के लिए पर्याप्त समय दिया। संविधान पीठ ने सभी पक्षों के विचारों को धैर्य पूर्वक सुना और एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें सदियों पुराने विवाद का सर्वस्वीकार्य समाधान करने की न्यायालय की इच्छा शक्ति समाहित थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उस रिपोर्ट के आधार पर फैसला दिया, जो उक्त विवादित स्थल के नीचे की भूमि की खुदाई के बाद तैयार की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इसी रिपोर्ट को आधार मानकर फैसला सुनाया था ,परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिए जाने के आदेश निरस्त कर दिया और केंद्र सरकार को यह आदेश दिया कि तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए गठित किए जाने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करें। सर्वोच्च न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि देने का आदेश भी केंद्र सरकार को दिया है।
आश्चर्य की बात है कि हमेशा ही विवादास्पद बयान देने के लिए जाने जाने वाले सांसद असदुद्दीन ओवैसी इस मामले में भी पूर्वाग्रह नहीं छोड़ पाए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मुसलमान इतना गया गुजरा या कमजोर नहीं है कि पांच एकड़ जमीन खरीदने के लिए धन न जुटा सकें। अलग बात है कि ओवैसी के बयान को मुस्लिम धर्मगुरुओं एवं वरिष्ठ नेताओं ने कोई तरजीह नही दी है। बहरहाल अब सर्वोच्च न्यायालय ने विवाद की सुखद परिणीति का मार्ग प्रशस्त करने वाला ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि फैसले के बाद जो सद्भाव और सौहार्द्र का माहौल सारे देश में निर्मित हुआ था, उसे और मजबूती प्रदान करने के लिए सक्रिय प्रयास जारी रखे जाएं। केंद्र अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द प्रारंभ करवाए। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार सुन्नी वक्फ बोर्ड को जो पांच एकड़ जमीन आवंटित की जाए, उस पर मस्जिद के निर्माण में भी कोई विलंब ना हो। इस संबंध में बाबा रामदेव का यह सुझाव स्वागत योग्य है कि मंदिर और मस्जिद के निर्माण में हिंदू और मुसलमान परस्पर एक दूसरे को सहयोग प्रदान करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का सभी पक्षों ने जिस तरह स्वागत किया है, उसे देखते हुए यह विश्वास व्यक्त किया जा सकता है कि अयोध्या में मंदिर मस्जिद के निर्माण में वहीं सद्भाव और सहयोग देखने को मिलेगा , जो फैसला आने के बाद सारे देश के साथ अयोध्या में भी देखने को मिला था। यस संतोष की बात है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने गत दिनों हिंदू एवं मुस्लिम धर्म गुरुओं की जो बैठक बुलाई थी ,उसमें भी सकारात्मक चर्चा हुई थी। सरकार को सभी धर्म गुरुओं ने यह भरोसा दिलाया कि कि देश में अमन-चैन का माहौल बनाए रखने के लिए वे सरकार का पूरा सहयोग करेंगे। अजीत डोभाल ने सरकार की ओर से यह भरोसा दिलाया कि देश के सभी समुदायों का भविष्य यहां सुरक्षित है। कुल मिलाकर सरकार के साथ- साथ देश की जनता भी यही चाहती है कि अयोध्या में मंदिर मस्जिद के निर्माण के साथ ही विकास के एक स्वर्णिम युग की शुरुआत हो सके।
( लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)