बिल्कीस बानो मामला: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, गुजरात को नोटिस जारी किए

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बिल्कीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक याचिका पर बृहस्पतिवार को केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका पर केंद्र एवं राज्य सरकार को नोटिस जारी किए और याचिकाकर्ताओं से, सजा में छूट पाने वालों को मामले में पक्षकार बनाने को कहा। न्यायालय ने मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत इस साल 15 अगस्त को गोधरा उप-कारावास से 11 दोषियों की रिहाई से जघन्य मामलों में इस तरह की राहत के मुद्दे पर बहस शुरू हो गयी है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और कार्यकर्ता रूपरेखा रानी ने उच्चतम न्यायालय में यह याचिका दायर की थी।

गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर हमले और 59 यात्रियों, मुख्य रूप से ‘कार सेवकों’ को जलाकर मारने के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान तीन मार्च, 2002 को दाहोद में भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी। मरने वालों में बिल्कीस बानो की तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी। घटना के समय बिल्कीस बानो गर्भवती थी और वह सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थी। इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी।

माफी नीति के तहत गुजरात सरकार ने इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था, जिसकी विपक्षी पार्टियों ने कड़ी निंदा की थी।

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 आरोपियों को बिल्कीस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।

इन दोषियों को उच्चतम न्यायालय के निर्देश के तहत विचार करने के बाद रिहा किया गया। शीर्ष अदालत ने सरकार से वर्ष 1992 की क्षमा नीति के तहत दोषियों को राहत देने की अर्जी पर विचार करने को कहा था।

इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कारावास की सजा काट ली थी जिसके बाद एक दोषी ने समयपूर्व रिहा करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस पर शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था।

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