पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का राज हो, इसके लिए कई दशकों से पार्टी के नेता लगातार काम करते रहे। संघ (RSS) के प्रचारकों का तप भुलाया नहीं जा सकता है। बीते कुछ वर्षों से पूर्वोत्तर में कमल खिला। पूर्वोत्तर का द्वार कहे जाने वाले असम में जब लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनना तय हुआ, तो पार्टी को अपना मुख्यमंत्री बदलना पडा। सर्वानंद सोनेवाल (Sarvanand Sonewal) की जगह हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Vishwa Sarma) । अब, असम के नए मुख्यमंत्री केे रूप में हिमंत बिस्वा सरमा का नाम चलेगा।
अब सवाल है कि भाजपा जब असम विधानसभा चुनाव में अपने पोस्टर पर मुख्यमंत्री सर्वांनद सोनेवाल की तस्वीर प्रमुखता से छाप चुकी, तो अचानक ये निर्णय क्यों ? पहले दिल्ली में सर्वांनद सोनेवाल के साथ हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Vishwa Sarma) आते हैं। पार्टी अध्यक्ष जेपी नडडा और दूसरे वरिष्ठ नेताओं से विमर्श हुआ। अगले दिन भाजपा ने केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) और पार्टी महासचिव व केंद्रीय कार्यालय प्रभारी अरूण सिंह (Arun Singh) को गुवाहाटी भेजा। विधायक दल की बैठक हुई और हिमंत बिस्वा सरमा के नाम की घोषणा हुई।
इससे पहले निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने रविवार को ही राज्यपाल जगदीश मुखी (Jagdish Muskhi)को अपना इस्तीफा सौंपा था। बता दें कि दिल्ली में हुई बैठक के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि असम की कमान हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपी जा सकती है तो वहीं सोनोवाल को वापस दिल्ली बुलाया जा सकता है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने आवास पर गृह मंत्री अमित शाह और संगठन महासचिव बीएल संतोष की मौजूदगी में दोनों नेताओं से मुलाकात की। पहले राज्य के मौजूदा स्वास्थ्य व वित्त मंत्री हिमंत पहुंचे। उनसे बातचीत के बाद पहुंचे सोनोवाल के साथ भी केंद्रीय नेताओं ने अकेले में बात की। इसके बाद तीसरे दौर की बातचीत में दोनों को एकसाथ बैठाकर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया गया। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों को अलग-अलग केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। लेकिन दोनों नेताओं ने इस प्रस्ताव पर अपनी असहमति जाहिर की।
असल में, हिमंत बिस्वा सरमा लगातार मुख्यमंत्री बनने के लिए पार्टी के आला नेताओं पर दबाव बना रहे थे। चुनाव के दौरान कई बार ऐसी स्थिति आई कि अपने समर्थकों के साथ वे अलग राह अपना सकते हैं। पार्टी के केंद्रीय नेताओं को इसकी भनक थी। हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Vishwa Sarma) का जनाधार असम ही नहीं, पूवोत्तर के सभी आठ राज्यों में हैं। जिस प्रकार से उन्होंने अपने पूर्ववर्ती राजनीतिक कांग्रेस को क्षति पहुंचाई थी, उसकी याद आज भी भाजपा नेताओं को है।
असम में बीते छह दिनों से नए मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा नेतृत्व में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी। इसका हल निकालने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने शनिवार को निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री एवं मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हेमंत बिस्वा सरमा (Himanta Vishwa Sarma), को दिल्ली बुलाकर उनसे व्यापक चर्चा की है। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के आवास पर लगभग तीन घंटे तक मुलाकातों का यह दौर चला। इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बी एल संतोष भी मौजूद रहे। संकेत है कि पार्टी ऐसे कोई संकेत नहीं देना चाहती है जिससे कि पार्टी में मतभेद या केंद्रीय नेतृत्व पर दबाब सामने आए। बता दें कि एक सप्ताह पहले स्पष्ट बहुमत के साथ राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत गठबंधन ने जीत हासिल की थी। राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 75 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में जब 8 मई को हिमंत बिस्वा सरमा और सर्वानंद सोनेवाल आए, तब भी हिमंत बिस्वा सरमा के तेवर नरम नहीं थे। उन्होंने अपने मुख्यमंत्री बनने की जिद बता दी। पार्टी रणनीतिकारों को लगा कि यदि जरा भी चूक हुई, तो असम की सत्ता हाथ से निकल सकती है। विधायकों का एक बडा समूह हिमंत बिस्वा सरमा के साथ बताया जाता है। कुछ नेताओं ने भले ही दबे स्वर में कहा हो कि हिमंत बिस्वा सरमा तो कांग्रेस से आए हुए हैं, तो उसका जवाब यह भी दिया गया कि सर्वानंद सोनेवाल भी तो असम गण परिषद के कार्यकर्ता और नेता थे। असम में, भाजपा का इन दोनों नेताओं के अलावा कोई और तीसरा जनाधार वाला नेता अब तक सामने नहीं आया है।
दिल्ली में जब हिमंत आए थे, तो भाजपा के पर्याय बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narenda Modi ) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के लिए भी मुश्किल थी। वे एक झटके में सबकुछ तय करने की स्थिति में नहीं थे। उन पर राजनीतिक दबाव था। इसलिए ही पार्टी के सधे हुए रणनीतिकार नरेंद्र सिंह तोमर और अरूण सिंह को गुवाहाटी जाने का आदेश दिया गया। इससे पहले की स्थिति कितनी सहज थी, यह मोदी-शाह के चंद फैसलों से आप समझ सकते हैं। इससे पहले दोनों ने जिसको चाह उसको कमान दी। झारखंड में रघुवर दास से लेकर हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर से लेकर उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला दोनों नेताओं ने चुटकियों में किया और पार्टी में किसी तरह से चूं कि आवाज नहीं आई। पहली बार दोनों को तब दिक्कत आई जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलना पड़ा। पार्टी के विधायकों के दबाव में दोनों को अपने चुने हुए मुख्यमंत्री को हटाना पड़ा।
अब असम में भी सर्वानंद को साइड करना पडा। केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ही नहीं, बल्कि संघ को भी असम सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हिमंता बिस्वा सरमा की ताकत का अंदाजा है और दोनों उनकी उपयोगिता भी जानते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि उनकी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ या भाजपा वाली नहीं है। वे कांग्रेस पार्टी में थे और छह साल पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं। ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की नीति में फिट नहीं बैठता था। तभी कहा जा रहा है कि दोनों सोनोवाल को ही मुख्यमंत्री बनाए रखना चाहते हैं लेकिन हिमंता को नाराज भी नहीं करना चाहते हैं क्योंकि समूचे पूर्वोत्तर में वे भाजपा के लिए बहुत उपयोगी साबित हुए हैं। उत्तराखंड के बाद अब असम और त्रिपुरा की राजनीति भी मोदी और शाह के एकछत्र राज के कमजोर पड़ने का संकेत है।