हरियाणा की जनता को हुंकार से क्या मिला ?

( फोटो साभार: पीटीआई)

कमलेश भारतीय

लीजिए । जींद में हो गयी शाहरैली । सरकार भी और मुख्यमंत्री भी अब कुछ दिन घोडे बेच कर सो सकते हैं । जो हुआ , सो भला । कुर्सियां भरीं या खाली रहीं , इसकी चिंता छोडो । यह विपक्ष का काम हैं । हमेशा जो दल रैली करता हैं वह रैली को ऐतिहासिक कहता हैं और जो विपक्ष होता हैं वह फ्लाॅप कहता हैं । अब यह रैली हर रैली की तरह ऐतिहासिक भी हैं और फ्लाॅप भी । इससे अतिरिक्त कुछ नहीं । रैली निपट गयी । गंगा नहाने जैसा पुण्य कमा लिया । शाह जी की खुशी में सबकी खुशी ।
कभी सोनिया गांधी ने रोड शो काम प्रचलन राजनीति में शुरू किया था । हमने भी हिसार में कुछ किलोमीटर तक इस ऐतिहासिक रोड शो का आनंद लिया था । बस , हवा में हाथ लहराते जाओ । लेकिन रोड शो ने कांग्रेस की सारे देश में हवा बदल दी और दो बार सत्ता दिला दी । अब गुजरात चुनाव से बाइक रैली शो का नया फार्मूला आया है । हार्दिक पटेल ने तो एक मीडिया चैनल को मोटरसाइकिल चलाते हुए ही इंटरव्यू दी थी और समर्थक पीछे पीछे बाइक लेकर चल रहे थे।
अमित शाह को यह आइडिया हिट लगा और उन्होंने हरियाणा में बाइक रैली रख दी । एक लाख बाइक का टार्गेट दिया और रजिस्ट्रेशन हुए बाकायदा । अब फिर भी कुर्सियां खाली रह गयीं तो भई रजिस्ट्रेशन देख लो । खैर ।
शाह होते हैं जो हिसाब किताब रखते हैं । उन्होंने अपने हिसाब की बात की और दूसरों के हिसाब के जवाब में कहा कि मैं आपको हिसाब नहीं दूंगा । जनता जो चाहे पूछे । आप कौन ? वे हरियाणा में इस बार सात लोकसभा सीटों पर नहीं बल्कि दस की दस सीटों पर भाजपा की जीत चाहते हैं । धर्मवीर और राजकुमार सैनी लोकसभा चुनाव लडने के इच्छुक ही नहीं हैं । ढूंढिए इनकी जगह नये प्रत्याशी । राजकुमार सैनी तो रैली में भी नहीं आए ।
रैलियों में भाषा की मर्यादा धीरे धीरे धूमिल होती जा रही है । यह बहुत ही अफसोसनाक है । प्रो रामविलास शर्मा जी ने कांग्रेस प्रयोग चोट करते कहा कि एक घायल है और दूसरे की साइकिल पंक्चर हो गयी । यह कैसी भाषा है ? अशोक तंवर जींद में सांकेतिक विरोध ही कर पाए । इनेलो ने जगह जगह काले झंडे दिखाए । प्रो रामविलास शर्मा ने इस प्रयोग भी कहा कि चौ देवीलाल हरा झंडा देकर गये थे , ये काले चिथडे दिखा रहे हैं ।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि स्वयं मुख्यमंत्री बिना नम्बर का मोटरसाइकिल चलाना कर ट्रेफिक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और कार्यकर्ता इस बात से नाराज हैं कि उन्हें हेल्मेट की जगह प्लास्टिक की टोपियां ही मिलीं ।
इस सबके बावजूद हरियाणा सरकार के इस पंद्रह दिवसीय परेड के आम जनता को क्या हासिल हुआ ? सब एक दूसरे को शाबाशी देकर चलते बने । जनता की समस्याएं तो वहीं की वहीं हैं । क्या हिसार के सचिवालय के सामने धरना दे रहे किसान दिखाई दिए ? क्या अतिथि अध्यापक जो मुंडन करवा चुके हैं , उनकी समस्या समझ पाए ? क्या जाट आरक्षण संघर्ष समिति के साथ सदैव के लिए समस्या हल हो गयी ? क्या एसवाईएल की बात हुई ? बस ,
तुम्हारी भी जय जय
हमारी भी जय जय
न तुम हारे , न हम हारे ।
सफर बाइक पर
जितना हो सकता था
कर ही लिया है ।
अब तुम जानो ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

 

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