क्या अमित शाह को अपना पद छोड़ना पड़ सकता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नंबर तीन दत्तात्रेय होसबोले को छोड़ दें तो उसके ज्यादातर नेताओं को अब भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत महसूस हो रही है. सियासी गलियारों में सवाल तैरने लगी है कि क्या कर्नाटक चुनाव के बाद अमित शाह को अपना पद छोड़ना पड़ सकता है?

नई दिल्ली। कर्नाटक का चुनाव अमित शाह के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है. अगर इस अग्निपरीक्षा में उन्हें मात मिली तो आगे का सियासी भविष्य मुश्किल हो सकता है. अमित शाह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि भाजपा अध्यक्ष को इतना नर्वस पहले कभी नहीं देखा. भाजपा का अपना आंतरिक सर्वे भी उन्हें जीत की गारंटी नहीं दे रहा. यहां तक 224 सीटों में से 100 सीट का आंकड़ा भी दूर दिखता है. सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि कर्नाटक की यह कठिन डगर भाजपा ने खुद ही तैयार की है. यह ऐसा चुनाव है जिसे अमित शाह अपनी शर्तों पर जीतना चाहते थे और संघ अपने अंदाज़ में चुनाव लड़ना चाहता था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में रसूख रखने वाले एक सूत्र बड़े रहस्यमय अंदाज़ में बताते हैं, ‘पिछले कुछ दिनों में अमित शाह और संघ के शीर्ष नेतृत्व के बीच तीन मुलाकातें हो चुकी हैं और तीनों ही मुलाकातों में अमित शाह को कुछ बातें सुननी पड़ी हैं. कर्नाटक में हुए फैसलों से संघ खुश नहीं है और अमित शाह को हर बार अपने हर फैसले के बारे में सफाई देनी पड़ी है.
भाजपा के एक बड़े नेता बताते हैं, ‘संघ शुरू से ही कर्नाटक को लेकर भाजपा को आगाह कर रहा था. उसके स्वयंसेवकों की रिपोर्ट थी कि कर्नाटक में सिद्धारमैया को कम आंकना बड़ी गलती होगी. लेकिन उस वक्त भाजपा अतिआत्मविश्वास में थी. दिल्ली वालों को कर्नाटक की ज़मीनी हकीकत का सही अंदाजा नहीं था और भाजपा के जिन नेताओं को असलियत पता थी वे सच बताकर पार्टी हाइकमान को नाराज़ नहीं करना चाहते थे. इसलिए जब भाजपा चुनावी समर में कूदी तो अचानक ज़मीन बदली हुई दिखी. संघ अब इसी बात से नाराज़ है’. आरएसएस के अंदर के लोगों से बात करें तो वे अपनी नाराजगी जायज बताते हैं. इनका मानना है कि ‘भाजपा से एक नहीं कई गलतियां हुई हैं. हर बार भाजपा नेताओं को लगता है कि वो चुनाव जीत जाएंगे तो उनकी गलतियां छिप जाएगी. लेकिन गोरखपुर, फूलपूर के बाद अगर कर्नाटक में भी हार हुई तो किसी को इसकी जिम्मेदारी भी तो लेनी होगी.’
सुनी-सुनाई है कि संघ शुरू से ही भाजपा को सलाह दे रहा था कि इस बार येदियुरप्पा का जादू खत्म हो चुका है और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े जैसे नए नेता को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना चाहिए. संघ की दलील थी कि सिद्धारमैया की पार्टी कांग्रेस है लेकिन उनकी सोच कांग्रेस से एकदम अलग है. इसलिए उन्हें हराने के लिए भाजपा को भी कुछ अलग सोचना होगा. लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने संघ के मनमुताबिक बदलाव नहीं किया. संघ मुख्यालय में पैठ रखने वाले एक नेता की मानें तो संघ की नाराजगी तब और बढ़ गई जब अमित शाह ने बेल्लारी के रेड्डी भाइयों को टिकट दे दिया और बेल्लारी का चुनाव जीतने की कमान भी उन्हें सौंप दी. संघ आज तक अमित शाह के इस फैसले को पचा नहीं पाया है. संघ को समझ नहीं आया कि बेल्लारी की कुछ सीटें जीतने के लिए उन्होंने कर्नाटक के सबसे बड़े चुनावी मुद्दे से समझौता कैसे कर लिया!
जब तक रेड्डी भाई चुनाव मैदान में नहीं उतरे थे तब तक भाजपा का सबसे बड़ा नारा था, सिद्धारमैया नहीं ‘सिद्धा-रुपैया’ हैं. लेकिन अब भ्रष्टाचार का हमला भी भाजपा को ही सहना पड़ रहा है. सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि अमित शाह और संघ नेतृत्व की पिछली मुलाकात तो सिर्फ इसी सिलसिले में थी. लेकिन वे अब तक अपने जवाबों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को संतुष्ट नहीं कर पाए कि आखिर रेड्डी भाइयों को टिकट देने की जरूरत क्यों पड़ी? जानकार सूत्र बताते है कि संघ इस कदर नाराज़ है कि कर्नाटक में हार हुई तो अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ सकता है. ऐसा हुआ तो इसके पीछे कुछ और कारण भी होंगे. संघ में नंबर तीन माने जाने वाले दत्तात्रेय होसबोले को छोड़ दें तो उसके बाकी ज्यादातर नेताओं को अब भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत महसूस हो रही है. अभी संघ में नंबर दो माने जाने वाले भैयाजी जोशी भी अमित शाह से खुश नहीं बताए जाते. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव है. संघ को लगता है कि इन दो राज्यों में भी पार्टी की हालत अच्छी नहीं है. इसलिए अगर 2019 का चुनाव जीतना है तो बदलाव 2018 में ही करने होंगे.
भाजपा अध्यक्ष के तौर पर संघ की पहले पसंद हमेशा से नितिन गडकरी रहे हैं. उसके कई नेताओं का मानना है कि मोदी सरकार में अगर किसी एक मंत्री की छवि सबसे अच्छी है, काम करने का रिकॉर्ड अच्छा है तो वे हैं नितिन गडकरी. इसके अलावा संघ हमेशा से सामूहिक नेतृत्व में भी यकीन करता है. इस वजह से उसे लगता है कि अब गुजरात के दो नेताओं के भरोसे नहीं, सबको साथ लेकर चलने का वक्त आ गया है. इसलिए अगर जरूरत पड़ी तो अमित शाह सरकार में मंत्री बनेंगे और गडकरी भाजपा अध्यक्ष. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि अमित शाह इस वक्त खुद को अकेला न महसूस करें इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने खुद बेल्लारी जाकर रैली की, रेड्डी भाई के साथ मंच साझा किया. संघ इससे भी खुश नहीं है.

 

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