नई दिल्ली / टीम डिजिटल। कांग्रेस के युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दलबदल को देखते हुए एक कानून बनवाया जिससे राजनीति स्वस्थ और स्वच्छ हो सके । कुछ समय तक इसका असर भी रहा लेकिन अब एक दो नहीं बल्कि थोक में विधायक दलबदल करने लगे जिससे यह कानून बेअसर होने लगा है । गोवा में देखिए कांग्रेस के एक साथ दस विधायक भाजपा में चले गये । कर्नाटक के एक दर्जन विधायक भाग रहे हैं । यही क्यों आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी बारिश में भागते चूहों की तरह विधायक भागते दिखेंगे । पिछले समय में अरूणाचल में ही पेमा खांडू दो दो बार पूरी सरकार लेकर ही चौ भजनलाल की तरह दलबदल कर गये । म्हारे हरियाणा का रिकाॅर्ड ही तोड डाला । जैसे आजकल सचिन तेंदुलकर के रिकाॅर्ड टूटते जा रहे हैं ।
दलबदल का मतलब साफ है कि विधायक की कोई विचारधारा नहीं , पार्टी के प्रति कोई वफादारी नहीं , बस एक ही बात कि कुछ मिल जाए – पद या महत्त्व । आखिर कहां गयी विचारधारा ? कांग्रेस ने पिछले साल पश्चिमी बंगाल में एफिडेविट लेने शुरू किए थे विधायकों के । बताइए कि पार्टी क्या करे ? कैसे बांध कर रखे ? कैसा व्हिप जारी करे । सुप्रीम कोर्ट और कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर भी संकट में फंस गये कि करें तो क्या करें ? स्पीकर कहे जा रहे हैं कि आत्मा की आवाज पर काम करूंगा । अब ऐसे राजनीतिक माहौल में कितनी आत्मा जाग रही है , यह देखना बाकी है ।