अगर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी के भोपाल प्रवास के दौरान उनके साथ रहे होते तो निश्चित रूप से दीपक बावरिया उसे अपने नए दायित्व के शुभारंभ का संकेत मान सकते थे परंतु कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुपस्थिति तो उन्हें इस हकीकत का ही अहसास कराने के लिए काफी थी कि प्रदेश में 14 वर्षों से सत्ता सुख से वंचित उनकी पार्टी की संभावनाओं को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बलवती बना लेना हंसी खेल नहीं है।
कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश कांग्रेस के नव नियुक्त प्रभारी दीपक बावरिया हाल में ही जब भोपाल में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश कार्यालय में अपनी पहली पत्रकारवार्ता को संबोधित कर रहे थे तब उन्हें इस मौके पर प्रदेश के दो पार्टी सांसदों कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुपस्थिति के बारे में पूछे गए सवालों ने कितना असहज किया होगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। वैसे तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी उक्त पत्रकारवार्ता में दीपक बावरिया के साथ मौजूद नहीं थे परंतु नर्मदा परिक्रमा पर निकले पूर्व मुख्यमंत्री की अनुपस्थित का तो सभी को पहले ही अंदाजा लग चुका था इसलिए उनकी अनुपस्थिति पर विशेष गौर नहीं किया गया परंतु कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की गैर मौजूदगी जरूर चर्चा का विषय बन गई। अगर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी के भोपाल प्रवास के दौरान उनके साथ रहे होते तो निश्चित रूप से दीपक बावरिया उसे अपने नए दायित्व के शुभारंभ का संकेत मान सकते थे परंतु कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुपस्थिति तो उन्हें इस हकीकत का ही अहसास कराने के लिए काफी थी कि प्रदेश में 14 वर्षों से सत्ता सुख से वंचित उनकी पार्टी की संभावनाओं को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बलवती बना लेना हंसी खेल नहीं है। दीपक बावरिया को अपने पहले भोपाल प्रवास के दौरान और भी कई असहज कर देने वाले अनुभव हुए हों तो उस पर कोई आश्चर्य भी व्यक्त नहीं किया जा सकता लेकिन हा, आश्चर्य का विषय यह जरूर है कि अब जबकि राज्य विधानसभा चुनावों के लिए मात्र एक वर्ष ही शेष बचा है तब भी प्रदेश के वरिष्ठ पार्टी नेताओं को सत्ता में वापिसी की कोई अधीरता परेशान क्यों नहीं कर रही है।
गौरतलब है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी के पद पर दीपक बावरिया की नियुक्ति के पहले तक मोहनप्रकाश यह जिम्मेदारी संभाल रहे थे परंतु अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वे राज्य में वरिष्ठ पार्टी नेताओं के बीच वह एकजुटता कायम नहीं कर पाए जिसके बल पर राज्य में कांग्रेस पार्र्टी सत्ता से वनवास की समाप्ति का सुनहरा स्वप्र संजोने की स्थिति में आ सकती है। अंतत: पार्टी को अगले राज्य विधानसभा चुनावों में बेहतर स्थिति में लाने की जिम्मेदारी दीपक बावरिया को सौंपी गई है। दीपक बावरिया अपनी इस कठिन जिम्मेदारी के कुशलतापूर्व निर्वहन में कितने सफल होंगे यह तो आगे आने वाला वक्त बताएगा परंतु अपने पहले भोपाल प्रवास के दौरान ही इस हकीकत से अवश्य वाकिफ हो गए होंगे कि उनकी डगर बहुत कठिन है। दीपक बावरिया ने यह कहने में भी तनिक भी संकोच नहीं किया कि वे अभी लोगों से मिल रहे हैं फीड बैक ले रहे हैं और सब कुछ समझने के लिए कुछ वक्त की दरकार हैं। ऐसे में डर तो इसी बात का है कि वे फीड बैक लेने के बाद कही इस नतीजे पर न पहुंच जाएं कि उन्हें जो टास्क सौंपा गया है वह बेहद मुश्किल है।
पत्रकारवार्ता में दीपक बावरिया से जब सांसद द्वय कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनुपस्थिति का कारण पूछा तो उनका कहना था कि उनका भोपाल प्रवास पहले 4 अक्टूबर को होने वाला था और अगर वह उस तारीख को राजधानी आ जाते तो कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उनके साथ विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत करते परंतु उनके दौरे की तारीख 9 अक्टूबर हो जाने की वजह से सांसद द्वय का आना संभव नहीं हो सका। अब देखना यह है कि कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी के आगामी प्रवास के समय पार्टी के कितने वरिष्ठ नेता उनके साथ रहते हैं। दरअसल पार्टी अभी भी यह फैसला नहीं कर पाई है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसे भावी मुख्यमंत्री के रूप मेें प्रोजेक्ट किया जाए। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस बारे में अपनी अनिच्छा पहले ही व्यक्त कर चुके हैं परंतु इतना तो तय है कि जब भी पार्टी इस बारे में कोई फैसला करेगी तब पूर्व मुख्यमंत्री की राय भी अहम होगी।
मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी अगर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को कड़ी चुनौती पेश करना चाहती है तो उसे हर हालत में मुख्यमंत्री पद के लिए एक ऐसा लोकप्रिय चेहरा निकट भविष्य में ही तलाश लेना चाहिए जो पूरे प्रदेश में समान रूप से स्वीकार्य हो परंतु यह काम आसान नहीं है और कांगेस पार्टी ने अगले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए अपने किसी लोकप्रिय नेता को प्रोजेक्ट करने की जरूरत महसूस नहीं की तो अगले विधानसभा चुनावों में भी उसे पिछले तीन विधानसभा चुनावों जैसी निराशा हाथ लग सकती है। निश्चित रूप से कांग्रेस के नए मध्यप्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को अपने पहले भोपाल प्रवास में ही इस कड़वी हकीकत का अहसास हो गया होगा।
प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा माना जा रहा है। हाल में ही कमलनाथ ने इस आशय का बयान दिया था कि ज्योतिरादितय सिंधिया को पार्टी आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहिए परंतु कमलनाथ स्वयं जानते है कि उनके अपने समर्थक कार्यकर्ता इस राय पर सहमत नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में अंतिम फैसला तो सोनिया और राहुल को ही करना है। कांग्रेस के अनेक नेता एवं कार्यकर्ता यह चाहते हैं कि जिस पंजाब विधानसभा के हाल में संपन्न चुनावों में पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया था उसी तरह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी भावी मुख्यमंत्री का नाम प्रोजेक्ट करने का फैसला ले। देखना यह है कि पार्टी यह साहस दिखा पाती है अथवा नहीं। मध्यप्रदेश के लिए नव नियुक्त पार्टी प्रभारी दीपक बावरिया से पार्टी के विधायकों ने यह भी कहा है कि पार्टी जिन्हें अगले विधासभा चुनावों में उम्मीदवार बनाना चाहती है उन्हें 6 माह पहले इसकी जानकारी दे दे ताकि चुनावों की तैयारी के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल सके परंतु दीपक बावरिया का कहना है कि हर विधानसभा सीट के लिए स्थानीय परिस्थितयों का आंकलन करके उम्मीदवार तय किया जाता है अत: हर सीट के लिए एक जैसा पैमाना लागू नहीं किया सकता। पार्टी अच्छे परिणाम की उम्मीद में अंतिम क्षणों में उम्मीदवार तय करने की रणनीति अपनाती है और रणनीति कई बार कारगर सिद्ध होती है।
कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी की नियुक्ति आगामी विधानसभा चुनावों के एक साल पूर्व कर दी गई है अत: पार्टी को चुनावों के लिए कमर कस कर तैयार करने हेतु उनके पास पर्याप्त समय है। उन्हें प्रदेश के कांगे्रस नेतृत्व के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने की गुरू गंभीर जिम्मेदारी भी निभानी है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अंदर उस ऊर्जा और उत्साह का संचार भी करना है जिसके बिना कोई भी पार्टी अच्छी सफलता की कल्पना भी नहीं कर सकती। दीपक बावरिया ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी अगले राज्य विधानसभा चुनावों को सेमीफाइनल की तरह लड़ेगी। निश्चित रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव दीपक बावरिया की नजर में सेमी फाइनल जैसे होंगे परंतु सवाल यह उठता है कि आगामी राज्य विधानसभा चुनावों को पार्टी आखिर सेमीफाइनल मुकाबला कैसे मान सकती है जबकि 2003, 2008 एवं 2013 में उसे निराशाजनक हार का सामना करना पड़ा था।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)