फोर्टिस ने किया पहली बार एक तरफ र्हाट और दूसरी तरफ ब्रेस्ट सर्जरी

नई दिल्ली। फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल अस्पताल, वसंत कुंज के ओंकोलाॅजिस्टों, कार्डियोलाॅजिस्टों, एनेस्थीसियोलाॅजिस्टों एवं क्रिटिकल केयर स्पेष्यलिस्टों की टीम ने गोपालगंज, बिहार की रहने वाली एक 55 वर्शीय मरीज़ रेणु श्रीवास्तव का एक ही वक्त में उनकी ओपन-हार्ट सर्जरी और सेगमेंटेल मैस्टक्टमी को अंजाम दिया। मरीज़ का इलाज करने वाली डाॅक्टरों की टीम में हैड, नैक एवं ब्रैस्ट ओंकोलाॅजी विभागों डाॅ मंदीप मलहोत्रा, कार्डियक सर्जन डाॅ संजय गुप्ता, कार्डियक विभाग के डाॅ तपन घोस और डाॅ दीपक झा षामिल थे। इस तरह की दोहरी सर्जरी न सिर्फ दुर्लभ है बल्कि अपनी तरह की पहली घटना भी है।

मरीज़ को जब अस्पताल में भर्ती किया गया तो वे दाएं स्तन में कैंसर से पीड़ित थीं। उनके सीने के सीटी स्कैन से पता चला कि उनका फेफड़ा बिल्कुल ठीक था लेकिन उनके स्तन में कैंसर था जबकि हृदय (बाएं एट्रियम) में कुछ दिखायी दे रहा था हालांकि उसकी वजह से कोई लक्षण मरीज़ में नहीं थे। कार्डियोलाॅजी टीम ने 2डी इकोकार्डियोग्राफ, एंजियोग्राफी तथा ट्रांस-इसोफेगल इकोकार्डियोग्राफी जांच की जिससे पता चला कि मरीज़ के दिल में जो दिखायी दे रहा था वह एट्रियल मायक्सोमा यानी एक बिनाइन कार्डियाक ट्यूमर था। अब दो अलग-अलग प्रकार के ट्यूमर की पुश्टि हो चुकी थी – एक स्तन में और दूसरा हृदय में, लिहाज़ा इलाज के विकल्पों पर विचार करना आसान था। टीम ने पूरी स्थिति का आकलन करने के बाद यह तय किया कि ब्रैस्ट में मौजूद मैलिग्नैंट ट्यूमर का तत्काल इलाज करना जरूरी है और इसके लिए सर्जरी, कीमोथेरेपी, टारगेटेड इम्युनोथेरेपी, रेडिएषन तथा हारमोनल थेरेपी की आवष्यकता थी।

डाॅ संजय गुप्ता ने बताया, ’’इस मामले में एक और चुनौती यह थी कि इम्युनोथेरेपी और कई कीमोथेरेपी दवाएं भी कई बार हृदय को कमज़ोर बनाती हैं, लिहाज़ा हृदय की कार्यप्रणालियों को इतना मज़बूत बनाना जरूरी था कि वे इलाज प्रक्रियाओं को सहन कर सकें। एट्रियल मायक्सोमा की वजह से थ्रोम्बस, रप्चर हो सकता है और यह आंतरिक अंगों में फंसकर स्ट्रोक का कारण भी बन सकता है। साथ ही, इसके आकार में बढ़ोतरी होने से हृदय की कार्यप्रणाली भी प्रभावित हो सकती है। षरीर में ट्यूमर की वजह से स्ट्रोक की आषंका पहले ही बढ़ चुकी थी और उस पर मायक्सोमा ने इस जोखिम को और भी जटिल बना दिया था। कैंसर अपने में थ्रोम्बोजेनिक होता है और स्ट्रोक की आषंका बढ़ जाती है। अगर हम स्तन से पहले हृदय की सर्जरी करते तो मरीज़ को ओपन हार्ट सर्जरी के बाद स्वास्थ्यलाभ करने के लिए 4 से 5 सप्ताह का समय लग सकता था जो कि स्टेज 3 कैंसर के फैलकर स्टेज 4 में बदलने के लिए काफी होता। लेकिन हृदय के ट्यूमर से पहले ब्रैस्ट कैंसर का इलाज षुरू करने से एक मुष्किल यह हो सकती थी कि इलाज की दवाओं से दिल पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की वजह से बीच में ही इस उपचार को छोड़ना पड़ सकता था, और उस स्थिति में भी मरीज़ के जीवन पर असर पड़ता।

डाॅ मंदीप मलहोत्रा ने कहा, ’’मरीज़ की हिस्टोपैथोलाॅजी से यह स्पश्ट हो गया था कि वह स्टेज 3 ब्रैस्ट कैंसर की षिकार थीं और एट्रियल मायक्सोमा से पीड़ित थीं। उनकी प्रोफाइलिंग से इस बात की भी पुश्टि हुई कि उन्हें ज्तं्रंजनेनेउंइ के रूप मे ंटारगेटेड थेरेपी दी जा सकती थी जिसकी वजह से अक्सर दिल कमज़ोर पड़ जाता है। यदि हमने ब्रैस्ट सर्जरी में देरी कर केवल हार्ट सर्जरी का विकल्प चुना होता तो इसकी वजह से कैंसर बढ़ सकता था जिससे मरीज़ को बचाना मुष्किल होता। लिहाज़ा, मरीज़ की जीवनरक्षा और समुचित उपचार जारी रखने के लिए उनके दिल को स्थिर रखना जरूरी था। इस स्थिति में ही ब्रैस्ट कैंसर का सही तरीके से और पूर्णता के साथ उपचार संभव था। लिहाज़ा, हमारे मेडिकल बोर्ड ने मरीज़ के साथ परामर्ष कर यह तय किया कि जनरल एनेस्थीसिया देकर दोनों आॅपरेषन एक साथ किए जा सकते हैं। पहले मरीज़ की ओपर हार्ट सर्जरी की गई और फिर उनके सीने को बंद करने के बाद जब मरीज़ की हालत स्थित हो गई तो कैंसर हटाने के लिए ब्रैस्ट सर्जरी की गई। उन्हें आॅपरेषनों के बाद 48 घंटों तक आईसीयू में रखा गया था और फिर वार्ड में भेजा गया। आॅपरेषन के बाद उनकी हालत स्थित थी और सर्जरी के 7वें दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।‘‘

फिलहाल ब्रैस्ट कैंसर की वजह से मरीज़ पर जो भार था वह नहीं रहा है और हृदय भी इतना स्थिर अवस्था में आ चुका है कि कीमोथेरेपी और टारगेटेड थेरेपी, जो कि ब्रैस्ट कैंसर की भविश्य में आषंका रोकने के लिए जरूरी है, को सहन कर सकता है।

डाॅ तपन घोश ने कहा, ’’हार्ट सर्जरी के दौरान मरीज़ को हार्ट-लंग मषीन पर रखा गया और उन्हें खून पतला करने वाली दवाएं दी गईं। ऐसे में दूसरी सर्जरी काफी सावधानीपूर्वक की जाने की जरूरत थी ताकि रक्तस्राव से बचा जा सके। टीम ने मरीज़ को दूसरी सर्जरी के लिए स्थिर रखने के वास्ते भरपूर सावधानी बरती और उनके हृदय को इतना मज़बूत बनाए रखा कि वह टारगेटेड थेरेपी तथा कीमोथेरेपी को वहन कर सके। मरीज़ अब ब्रैस्ट कैंसर के पूर्ण उपचार हेतु अगले कुछ महीनों तक आवष्यक थेरेपी लेने के लिए पूरी तरह मुक्त हैं।‘‘

 

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