बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी गई। इससे पूर्व करीब बीते महीने भर में शिलान्यासों का दौर चला। घोषणाओं के रथ पर सवार नीतीश कुमार और भाजपा की जुगलबंदी मानो यह संदेश देने की कोशिश में लगी रही कि हम हैं तो बिहार है। बिहार में विकास हमसे ही है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह वादे पूरे होंगे या केवल और केवल चुनावी वादें रह जाएंगे, क्योंकि अनुभव अच्छा नहीं रहा है बिहारवासियों का…
सुभाष चन्द्र
बिहार में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। चुनाव आयोग ने तीन चरणों में विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी। 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। 10 नवंबर की तारीख बेहद खास होगी, क्योंकि इसी दिन तय होगा कि इस बार की दीवाली किसकी मनेगी ? सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार और भाजपा गठबंधन बनी रहेगी या कोई और इस दीवाली आतिशबाजी करेगा ? हालंाकि, जिस प्रकार से कुछ संस्थाओं ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किया है, उसमें यह कहा गया कि एक बार और नीतीशे कुमार।
देखा जाए तो बिहार राजनीतिक रूप से उर्वर प्रदेश है। यहां के जनमानस में राजनीतिक समझ और प्रदेशों की अपेक्षा बेहतर मानी जाती है। बावजूद इसके यहां की सरकार ने विकास के कोई मानक नहीं गढे। यदि बिहार विकास के रास्ते चलता, तो सबसे अधिक पलायन इसी प्रदेश से नहीं होता। यानी हम कह सकते हैं कि बिहार की सरकारों ने वहां की जनता के विकास के लिए कुछ विशेष नहीं किया। हां, राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगी भाजपा नेता व राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जिस विकास को सडक और बिजली के माध्यम से दिखाते हैं, वह तो सही मायने में केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रतिफल है। राज्य के बुद्धिजीवी इसे समय सापेक्ष विकास भी मानते हैं।
इस बार बिहार में कुल 243 सीटों पर चुनाव होगा। बिहार में 3 चरणों में विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण यानी 28 अक्टूबर को 16 जिलों में 71 सीटों पर चुनाव व 31 हजार पोलिंग स्टेशन। वहीं, दूसरे चरण यानी 3 नवंबर को 17 जिलों की 94 सीटों पर चुनाव एवं 42 हजार पोलिंग स्टेशन और तीसरे चरण यानी 7 नवंबर को 78 सीटों पर चुनाव होगा व 33.5 हजार पोलिंग स्टेशन होंगे।बता दें, बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर, 2020 को समाप्त होने वाला है, इसी के चलते आज चुनाव तारीखों की घोषणा के बाद बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। वहीं, बीजेपी के साथ सरकार चला रहे नीतीश कुमार चौथी बार सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, ये चुनाव उनके लिए हर बार से कुछ ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं। एक बार फिर मुकाबला नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए बनाम तेजस्वी की अगुवाई में महागठबंधन के बीच है।
हम बीते एक महीना का समय देखें, तो केंद्र सरकार के कई मंत्रियों और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को लेकर कई घोषणाएं की। कई सौगात देने की बात की गई। यही स्थिति राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रही। उन्होंने पूरे मंत्रिमंडल को राज्य के तमाम क्षेत्र में भेज दिया और शिलापट्टों की घोषणा लग गई। इस पर जरा विचार कीजिए। इतने वर्षों तक सरकार शांत रही, लेकिन चुनाव से एक महीने पहले घोषणाओं की बरसात शुरू हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में 14 हजार 258 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दी। उन्होंने राज्य के 45 हजार 945 गांवों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने वाली सेवाओं का उद्घाटन कर राज्य में ग्रामीण डिजिटल क्रांति का भी आरंभ किया। इसके अलावा सड़कों और पुलों से जुड़ी नौ परियोजनाओं का भी शिलान्यास किया। पीएम मोदी ने हाल के दिनों में बिहार में रेल, इन्फ्रास्ट्रक्चर, सेतु, पीने का पानी और सिंचाई से संबंधित कई परियोजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन किया है। उन्होंने 10 सितंबर से अब तक के 12 दिनों में बिहार को 18695 करोड़ की योजनाओं का तोहफा दिया है। प्रधानमंत्री के ये कार्यक्रम सरकारी हैं, लेकिन इन्हें आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री ने पटना में गांधी सेतु भागलपुर में विक्रमशिला सेतु के समानांतर पुल तथा पटना में रिंग रोड का शिलान्यास किया। साथ ही ग्रामीण बिहार में ऑप्टिकल फाइबर से इंटरनेट सेवा का भी तोहफा दिया।प्रधानमंत्री ने कहा कि बिहार सभी शहरों में रेल, सड़क की कनेक्टिविटी बढ़ाई जा रही है। 86 साल बाद कोसी और मिथिलांचल को मिलन 18 सितंबर को हुआ। बड़े शहरों से हवाई सेवा की शुरुआत की जा रही है। भागलपुर से भी जल्द हवाई सेवा शुरू होगी। इस पर काम तेजी से चल रहा है। पीएम ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ की और कहा कि नीतीश जी कृषि, सड़क सहित अन्य क्षेत्रों में लगातार काम कर रहे हैं।
मिथिलांचल के लिए बेहद अहम दरभंगा में आम लोगों के लिए चिरप्रतिक्षित हवाई सेवा शुरुआत करने की बात स्वयं केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने हरदीप सिंह पुरी ने वहां पहुंच कर की। हवाई टिकट की बुकिंग हुई, तो इसे भी चुनाव से जोडकर देखा गया। बिहार का दूसरा एम्स दरभंगा में ही बनेगा, इसकी मंजूरी केंद्रीय कैबिनेट ने दी। राशि की घोषणा भी कर दी गई। हालंाकि, इसके साथ यह भी सवाल है कि साल 2014 के अंत में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भागलपुर और दरभंगा में आईटी पार्क घोषणा की बात कही थी, 6 साल बीत गए, उसका क्या हुआ, बताने वाला कोई नहीं है।
कोरोना संक्रमण के दौर में होने जा रहे इस सबसे बड़े चुनाव में लालू प्रसाद यादव औऱ नीतीश कुमार की सरकार के 15 साल दांव पर होंगे। इस बड़े दांव के संकेत बिहार की सड़कों पर शुरू हो चुके पोस्टर वॉर से भी मिल रहे हैं। हालांकि अगर आजाद भारत के विधानसभा चुनाव इतिहास पर नजर डालें तो पश्चिम बंगाल (34 साल वाम सरकार) को छोड़ दें तो किसी भी अन्य राज्य में तीन कार्यकाल के बाद चौथी बार सूबे की कमान संभालना निवर्तमान मुख्यमंत्री के लिए खासा मुश्किल होता। इसे राजनीतिक पंडित इनकम्बेंसी फैक्टर बोलते हैं।
हालिया 10-15 साल के दौरान हुए लोकसभा और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें, तो बेरोजगारी के मुद्दे को शायद ही किसी राजनीतिक दल ने तवज्जों दी हो। ज्यादातर चुनावों में नेताओं के ऊपर निजी हमले, सांप्रदायिक रंग, आरक्षण, विकास आदि की बातें मुद्दे बनते रहे हैं। लंबे समय बाद बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में है। दरअसल, कोरोना वायरस की वजह से लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से बिहार में करीब 26 लाख युवा लौटे हैं। इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। इसमें से ज्यादातर बेरोजगार 30 साल के हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं। दावा किया गया है कि आरजेडी सत्ता में आई तो इन बेरोजगारों को रोजगार दिया जाएगा।
कोरोना काल और बाढ़ के दौरान केंद्र सरकार के सहयोग से बिहार सरकार ने ग्रामीण इलाकों में मुफ्त अनाज बांटा है। इसके अलावा नकद राशि भी खाते में भेजी गई है, जबकि विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि इसमें धांधली हुई है। साथ ही आरजेडी नेता तेजस्वी यादव आरोप लगाते रहे हैं कि बाढ़ राहत के नाम पर सरकार ने कुछ नहीं किया। इतना ही नहीं एनडीए के घटक दल एलजेपी भी कोरोना और बाढ़ राहत में कमी को लेकर नीतीश सरकार पर सवाल उठाती रही है। एनडीए खेमा डबल ईंजन की सरकार को मुद्दा बनाती दिख रही है। हालांकि चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पीएम मोदी ने बिहार को कई हजार करोड़ रुपये की योजनाएं दी हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा भी बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है। एनडीए खेमा का चेहरा सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार हैं, वहीं विपक्ष में तेजस्वी यादव हैं। अनुभव के हिसाब से दोनों चेहरों में बड़ा अंतर है। इसके अलावा नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि है, वहीं तेजस्वी यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। खुद की परिवार से अलग छवि गढ़ने के लिए तेजस्वी यादव ने चुनाव पोस्टरों से पिता, मां, बहन सभी भी हटा दिया है। एनडीए खेमा इसी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। इस बार के विधानसभा चुनाव प्रचार में नेताओं की जुबान पर सुशांत सिंह राजपूत, हरिवंश, रघुवंश प्रसाद जैसे नाम दिखेंगे। एनडीए खेमा इसे जोरशोर से उठा रहा है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई जांच को एनडीए खेमा अपनी उपलब्धी बता रहा है। वहीं आरजेडी के वरिष्ठ नेता को लेकर तेज प्रताप यादव का एक लोटा पानी वाले बयान को भी एनडीए खेमा जोर शोर से प्रचारित कर रहा है।