सब्जी, दूध की आपूर्ति पर असर, छोटे स्वामीनाथन कहां हैं ?
कमलेश भारतीय
किसान अन्नदाता है । संसद की कैंटीन में खाना खाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विजिटर बुक में श्रद्धापूर्वक ऐसे ही अन्नदाता को प्रणाम किया था । खबरें कई जगह से आ रही थीं कि टमाटर सडकों पर फेंका जा रहा है । अब दूध भी फेंका जाने लगा । गांव बंद आंदोलन के दौरान । इसके विपरीत कुछ अच्छे तरीके भी विरोध के सामने आए हैं । यानी किसानों ने दूध सडक पर गिराया नहीं बल्कि दूध की छबील लगा दी । इसी प्रकार गरीबों को टमाटर बांट दिए मुफ्त में । यह सही विरोध हैं । अन्नदाता का । यूपी के कैराना में गन्ने की मार भी भाजपा की हार में शामिल हैं । यह एक कारण बताया जा रहा हैं । किसानों के गन्ने का आठ सौ करोड़ रुपये बकाया हैं और इसकी ओर ध्यान न देकर मुख्यमंत्री योगी दूसरे राज्यों में प्रचार पर निकले रहे ।
हरियाणा में कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड अपने आप को छोटे स्वामीनाथन कहलवाने में गर्व महसूस करते रहे । लेकिन अब स्वामीनाथन रिपोर्ट से भाग रहे हैं या बच कर निकल रहे हैं । यह सही है कि विपक्ष में आम आदमी की तकलीफ महसूस होती है । सत्ता में आते ही सब भूल जाती हैं । सत्ता और कान का पता नहीं क्या रिश्ता है ? कुछ सुनाई नहीं देता । प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज या अश्रुगैस आम बात हो गयी । रोज पंचकूला मे ऐसे फोटो अखबारों में देखे जा सकते है ।
आखिर किसान को सडक पर क्यों आना पडा ? किसान सरसों या गेहूं को लेकर कहां जाए ? गन्ने का मोल न मिलने से तो भूना की चीनी मिल बरसों पहले बंद हो गयी ।
आज सुबह हमारी गली में सब्जी की रेहडी लगाने वाला आया तो उस रेहडी पर सच कहता हूं कि सब्जी नाममात्र थी और उसका कहना था कि आज सब्जी मंडी की रौनक कम हो गयी । अगर किसान आंदोलन चलता रहा तो क्या होगा ? इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं । रेहडी वाले के शायद दर्शन दुर्लभ हो जाएं या वह अपने गांव या शहर लौट जाए । सब्जी मंडी की रौनक खत्म हो जाएं । यह क्या है ? पेट्रोल की एक पैसे कीमत कम पर पेट्रोल तो वहीं ऊंचाई पर है । डाॅ
ढुलाई से सब्जी की कीमत बढेगी । किसान को आत्महत्या करने से नाना पाटेकर अभियान चला रहे हैं पर यह अभियान ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं ।
अन्नदाता को बचाने कौन आगे आएगा ? प्रधानमंत्री बार बार कहते हैं किस्से देश का प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति सभी गरीबी से यहां तक आए हैं । बडे गौरव की बात हैंं पर गरीबी और किसान कीमत हालत तो बद से बदतर होती जा रही हैंं । जरा अन्नदाता की सुध लीजिए न ।