नई दिल्ली। परिवार में कुछ दुर्घटना हो जाए, तो लोग हताश हो जाते हैं। लेकिन, पिंकी बलहारा ने तमाम दुश्वारियों को पीछे छोड़ दिया। अपने पिता के सपने को पूरा करने का प्रण लिए पहुंची इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता। वहां 18वें एशियाई खेल में कुराश खेल में भारत को रजत पदक दिलाई। यह सब करना उसके लिए आसान नहीं था। स्वयं पिंकी बलहारा कहती है कि यह मेरे परिवार के लोगों खासकर पिता जी के आशीर्वाद का ही फल था कि मैंने वहां पदक हासिल किया। वरना परिवार में तीन लोगों के गुजर जाने के बाद हौसला कहां बचता है।
उस पल को याद करते हुए पिंकी बताती हैं कि गेम से कुछ दिन पहले मेरे पिताजी ने मुझसे एक ग्लास पानी मांगा था। लेकिन मैंने नहीं सुना। इसपर वह मजाक में बोले कि तुम अपने पिता की बात नहीं सुन रही हो, देख लेना तुम्हें गोल्ड नहीं मिलेगा, एशियाड में तुम सिल्वर ही जीतोगी।’ इस बात को याद करते हुए पिंकी की आंखों में आंसू थे और वह बोली, ‘वह बात मुझे अबतक याद हैं और देखिए मैंने सिल्वर ही जीता।’
एक सवाल के जवाब में पिंकी ने बताया कि मेरे कोच संजय ने हर मुसीबत की घड़ी में मुझे संभाला। हौसला अफजाई की।पिंकी ने बताया कि एशियन गेम्स में उनका सिलेक्शन होने के कुछ वक्त बाद ही उनके पिताजी की मौत हो गई थी। वह पिंकी के सिलेक्शन पर काफी खुश थे। फिर पिता की मौत के बाद पिंकी के लिए खुद को संभालना मुश्किल हो गया था। उस वक्त उनके एक चाचा समुंदर टोकस आए और सहारा दिया। टोकस जो खुद पहले जूडो खिलाड़ी रह चुके थे उन्होंने पिंकी को याद दिलाया कि उनके पिताजी चाहते थे कि वह एशियन गेम्स में अच्छा करें और वह अब ऐसे हार नहीं मान सकतीं। पिंकी जो खुद पहले जूडो ही खेलती थीं, उन्हें अपने अंकल की बात अच्छे से समझ आ गई।
जूडो और कुराश खेल में काफी समानता है, इसलिए पिंकी ने खेल बदला था। अपने पिता की अंतिम क्रिया के बाद नैशनल की तैयारी के लिए पिंकी पर सिर्फ 5 दिन का वक्त था। वह बताती हैं, ‘उस वक्त मेरा वजन 58 किलो था, मुझे जिम जाकर उसे 52 किलो तक लाना था। मैं रात को जिम जाया करती थी क्योंकि दिन में जिम जाने पर लोग मुझे ताना मारते कि अपने पिता की मौत के तुरंत बाद मैं जिम जाने लगी।’
19 साल की पिंकी बलहारा दिल्ली के नेब सराय इलाके में रहती हैं। हाल में उनके परिवार में तीन मौत हुई थीं, जिनमें से एक उनके पिता भी थे। वह खेलों के शुरू होने से सिर्फ तीन महीने पहले दुनिया छोड़कर चले गए थे। बावजूद इसके पिंकी ने खुद को लक्ष्य से भटकने नहीं दिया और महिलाओं की प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता। उन दिनों को याद करते हुए पिंकी ने कहा, ‘वह मेरे जीवन का सबसे कठिन और बुरा दौर था। सबसे पहले मैंने अपने चचेरे भाई को खोया। फिर मेरे पिता जी की हार्ट अटैक से मौत हो गई। फिर मेरे दादा जी भी दुनिया से चले गए। यह सब बहुत कम समय में हुआ था।’