नई दिल्ली। कोमा या काला मोतिया भारत में दृष्टिहीनता का एक प्रमुख कारण है। इसको देखते हुए एक इंटरैक्टिव सत्र का आयोजन किया गया जहां लोगों को ग्लूकोमा से बचने और शुरुआती लक्षण एवं इलाज के बारे में बताया। ग्लूकोमा ऑप्टिक नर्व को प्रभावित करता है यानि दृष्टि के नर्व को जो कि आंखों से दिमाग को सिग्नल भेजती है। बड़े पैमाने पर जनता के बीच ग्लूकोमा होने की यह आम धारणा होती है कि यह बुढ़ापे की एक बीमारी है और इंट्राऑक्युलर दबाव 21 एमएमएचजी से अधिक होने वाले को होता है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइट के निदेशक डॉ महिपाल सिंह सचदेव के अनुसार ” ग्लूकोमा एक बहुघटकीय बीमारी है जोकि नवजात शिशु से लेकर युवा, स्वस्थ वयस्कों, एवं बुजुर्ग लोगों तक किसी को भी प्रभावित कर सकती है।”
यहां तक कि सामान्य मात्रा में इंट्राऑक्युलर दबाव वाले व्यक्ति को भी ग्लूकोमा हो सकता है। साथ ही जिन व्यक्तियों में मायोपिया, पहले कभी हुई आँखों में क्षति या सर्जरी, जीवन शैली से जुड़े रोग जैसे उच्च या निम्न रक्तचाप, मधुमेह, थायराइड विकार, माइग्रेन, लम्बे समय तक स्टेरॉयड दवाओं का सेवन और ग्लूकोमा के आनुवांशिक इतिहास वाले लोगों को इस बीमारी के होने का अधिक ख़तरा होता है। इसके लक्षण निम्न है जैसे कि रात के समय दिखाई देने में परेशानी, चश्मे का नंबर बार-बार बदलते रहना, बाहरी दृष्टि में हल्की-हल्की परेशानी, धुंधली नज़र, आँखों में कुछ भाग से दिखाई न देना, किसी रौशनी के चारों ओर सतरंगी छल्ले दिखाई देना, आँख में तेज़ दर्द, मिचली, उल्टी या चेहरे में दर्द होना, आँखों में लाली रहना।