उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्त उम्र 65 साल करने की मांग

नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ा कर 65 वर्ष करने का अनुरोध किया है। सीजेआई गोगोई ने प्रधानमंत्री से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की क्रमश: (संविधान के) अनुच्छेद 128 और 224 ए के तहत सावधिक नियुक्ति करने का भी अनुरोध किया है, ताकि बरसों से लंबित पड़े मुकदमों का निपटारा किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि शीर्ष न्यायालय में 58,669 मामले लंबित हैं और नये मामले दर्ज होने के चलते इस संख्या में वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की कमी के चलते कानून के सवाल से जुड़े अहम मामलों पर फैसला करने के लिए जरूरी संख्या में संविधान पीठें गठित नहीं की जा रही हैं। उन्होंने लिखा है, ‘‘आप याद करें कि करीब तीन दशक पहले 1998 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की मंजूर संख्या 18 से बढ़ा कर 26 की गई थी और फिर दो दशक बाद 2009 में इसे बढ़ा कर प्रधान न्यायाधीश सहित 31 किया गया, ताकि मामलों के निपटारे में तेजी लाई जा सके।’’

गोगोई ने लिखा है, ‘‘मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया इस पर शीर्ष प्राथमिकता के साथ विचार करें, ताकि उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ सके और यह अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सके क्योंकि समय पर न्याय मुहैया करने के अपने अंतिम लक्ष्य को पाने में इसे लंबा सफर तय करना है…’’

प्रधान न्यायाधीश ने अब तक तीन पत्र लिखे हैं। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के कैडर का आकार अतीत में बढ़ा है, फिर भी शीर्ष न्यायालय में इसके अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्ध नहीं हुई है। सीजेआई ने दूसरे पत्र में मोदी से एक संविधान संशोधन विधेयक लाने पर विचार करने को कहा है, ताकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ा कर 62 से 65 साल की जा सके। गोगोई ने लिखा है कि मामलों के लंबित होने के बढ़ने को रोक पाने में सक्षम नहीं होने की एक मुख्य वजह उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों का अभाव है। फिलहाल, 399 पद या न्यायाधीशों की मंजूर संख्या का 37 प्रतिशत रिक्त हैं। मौजूदा रिक्तियों को फौरन भरे जाने की जरूरत है। हालांकि, सभी हितधारकों के सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद न्यायाधीशों की मंजूर संख्या के नजदीक न्यायाधीशों की कार्यरत संख्या को लाने के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति संभव नहीं रही है।

सीजेआई ने यह भी लिखा है कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र तीन साल बढ़ा कर 65 साल की जानी चाहिए। इससे लंबित पड़े मामलों की संख्या घटाने में मदद मिलेगी। यह संसद की स्थायी समितियों की सिफारिशों के अनुरूप भी होगा। गोगोई ने यह भी कहा कि एक न्यायाधीश को विकसित होने में वक्त लगता है और तब जाकर वह प्रैक्टिस के समृद्ध अनुभव के आधार पर नवोन्मेषी विचारों को प्रस्तुत कर पाने की स्थिति में होता है। इस स्थिति को टाला जा सकता है, बशर्ते कि सेवानिवृत्ति की उम्र एक उपयुक्त स्तर तक बढ़ा दी जाए ताकि उनके (न्यायाधीशों के) गहरे अनुभव और विशेषज्ञता का उपयोग लंबी अवधि के लिए किया जा सके। उन्होंने लिखा है, ‘‘मेरे विचार से भी, यदि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को 62 साल से अधिक उम्र में अधिकरणों में नियुक्त करने के लिए योग्य माना जाता है तो वे लोग उच्च न्यायालयों में भी 65 साल की आयु तक सेवा दे सकते हैं। इससे लंबे समय कहीं अधिक अनुभवी न्यायाधीशों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।’’

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