संभावनाएं भी व्यक्त की जा रही है कि अगर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का पार्टी में सम्मान बरकरार रहा तो अगले चुनावों में भी राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए पुन: खुद को प्रोजेक्ट करने से कोई परहेज नहीं करेंगे। बस शर्त यही है कि पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में उनकी राय को तरजीह दी जाए एवं प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू से उनका महत्व किसी भी सूरत में कम न आंका जाए।
कृष्णमोहन झा
इसी साल के अंत में देश के दो और राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं इनमें से एक राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के हाथों में सत्ता की बागडोर है और दूसरा राज्य गुजरात हैं जहां लगातार पिछले तीन चुनावों से भारतीय जनता पार्टी शानदार विजय हासिल कर इतिहास रच चुकी है और दिसंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी वह अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही है। गुजरात में भाजपा के हाथों में लगातार चौथी बार सत्ता की बागडोर आना तय माना जा रहा है यद्यपि पिछले तीन चुनावों की तरह इस बार भी प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्ता में वापिसी के दावों पर शंकाएं भी व्यक्त की जा रही है। हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के अंदर व्याप्त मतभेदों ने पार्टी की पुन: सत्ता में वापिसी की संभावनाओं पर पहले ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पहले भी सत्ता में रह चुकी है और उसे पूरी उम्मीद है कि वह इस बार के विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता से बाहर का दरवाजा दिखाने में सफल हो जाएगी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को जहां एक ओर भितरघात की आशंका सता रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी उसे बचाव की मुद्रा में ला दिया है। भाजपा इन आरोपों को लेकर सरकार और कांग्रेस पार्टी दोनों पर तीखे आक्रमण कर रही है और कांग्रेस इन आक्रमणों का जवाब देने में पसीना पसीना हुई जा रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश मेें आयोजित एक रैली में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर तंज कसते हुए कहा था कि यहां केवल मुख्यमंत्री ही नहीं पूरी पार्टी ही जमानत पर चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल प्रदेश के अपने इस प्रवास के दौरान भारी भरकम लागत वाले दो प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया तथा एक अन्य प्रोजेक्ट का लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री ने कांगड़ा में स्टील प्लांट का लोकार्पण करते हुए लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि इसमें 1000 लोगों को रोजगार मिल सकेगा। 70 करोड़ रुपए लागत वाले इस स्टील प्लांट की आधार शिला यद्यपि 2009 में संप्रग सरकार के कार्यकाल में रखी गई थी परंतु इसका काम अभी पूरा हो सका है। प्रधानमंत्री ने हिमाचल प्रदेश में बनने वाले एम्स का भी शिलान्यास किया जिसमें 4000 लोगों को रोजगार मिलने का भरोसा केन्द्र सरकार ने दिलाया है। गौरतलब है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने सन 2015 के बजट में 1350 करोड़ की लागत से यहां एक एम्स के निर्माण की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने सलीह में 110 करोड़ की लागत से बनने वाले ट्रिपल आईटी का भी शिलान्यास किया। राज्य विधानसभा चुनावों के पहले किए गए इन शिलान्यासों एवं लोकार्पण का अपना एक अलग ही महत्व है और भाजपा का इन विधानसभा चुनावों में उनसे अपने पक्ष में बड़ा जनसमर्थन जुटा लेने की उम्मीद करना स्वाभाविक है।
कांग्रेस के साथ दिक्कत यही है कि उसके पास वीरभद्र सिंह के कद का दूसरा नेता नहीं है। वह वीरभद्र सिंह को एकदम किनारे करके चुनाव लडऩे का जोखिम नहीं उठा सकती। वीरभद्र सिंह का प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू के साथ 36 का आंकड़ा जगजाहिर है और उन्होंने सुक्खू के हाथों से प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष पद की बागडोर छीनने के लिए कांग्रेस हाईकमान पर दबाव भी बनया था और उनके साथ ही कुछ जिलों में संगठनात्मक फेरबदल की वकालत की थी। उनकी मांग मानने के बदले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुशील कुमार शिन्दे को पार्टी का प्रदेश प्रभारी बनाकर सारे मतभेद सुलझाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाल दी गई थी परंतु अभी यह निश्चित तौर पर कह पाना मुश्किल है कि शिन्दे अपने मिशन में कामयाब हो गए हैं। सुशीलकुमार शिन्दे इस हकीकत से वाकिफ हैं कि 6 बार राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके वीरभद्र सिंह को नाराज करना पार्टी के लिए चुनावों में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। यूं तो वीरभद्र सिंह कई बार यह कह चुके है कि वे अब राजनीति से सन्यास लेने का मन बना चुके हैं परंतु 6 बार मुख्यमंत्री पद का सुख भोग चुके इस वयोवृद्ध नेता की बात पर एकाएक विश्वास भी नहीं होता। ऐसी संभावनाएं भी व्यक्त की जा रही है कि अगर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का पार्टी में सम्मान बरकरार रहा तो अगले चुनावों में भी राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए पुन: खुद को प्रोजेक्ट करने से कोई परहेज नहीं करेंगे। बस शर्त यही है कि पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में उनकी राय को तरजीह दी जाए एवं प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू से उनका महत्व किसी भी सूरत में कम न आंका जाए। संभावना तो यही है कि हिमाचल प्रदेश कांग्रेस पार्टी अपनी सत्ता बचाए रखने की खातिर वीरभद्र सिंह की शर्तें मानने से कोई गुरेज नहीं करेगी।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)