Delhi News : सीएम केजरीवाल की गारंटी पर कितना यकीन करेगी दिल्ली ?

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली में पूरा जोर लगा रही हैं। दिल्ली (Delhi) की सात सीटों में से 4 पर आम आदमी पार्टी (AAP) और 3 सीटों पर गठबंधन के तहत कांग्रेस (Congress) उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। जेल से अंतरिम जमानत मिलने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) लगातार जनता के बीच जा रहे हैं और मीडिया (Media) के माध्यम से अपनी गारंटी (Gurantee of Kejriwal) बता रहे हैं।

गारंटियों के सीज़न में आम आदमी पार्टी (‘आप’) के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने अपनी दस गारंटियां पेश की हैं। उन्हें इस बात श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने ये गारंटियां पार्टी की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए दीं। केंद्र में उनकी पार्टी की अपनी सरकार नहीं बनने वाली है, इसका उल्लेख उन्होंने किया। मगर दावा किया कि ये ऐसी गारंटियां हैं, जिन पर इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दलों को कोई एतराज नहीं होगा, और वे इन पर अमल के लिए बातचीत से सबको राजी कर लेंगे। पहली गारंटी वह है, जो ‘आप’ की खास पहचान बन चुकी है। यानी 200 यूनिट तक उपभोग वाले सभी व्यक्तियों को मुफ्त बिजली देना। बहरहाल, इसमें दो वादे ऐसे हैं, जो आज के आर्थिक वैचारिक कट्टरपंथ को तोड़ते नजर आते हैँ।

‘आप’ अकेली पार्टी है, जो हर गांव और हर मोहल्ले में बेहतरीन सरकारी स्कूल खोलने और उनमें सबको मुफ्त शिक्षा देने का वादा कर रही है। साथ ही हर मोहल्ले में मोहल्ला क्लीनिक बनाने का वादा भी उसने किया है। अगर इसके साथ किसानों को स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुरूप एमएसपी देने के उसके वादे को भी जोड़ दिया जाए, तो कहा जा सकता है कि ‘आप’ अर्थव्यवस्था में राज्य की ऐसी भूमिका बनाने की गारंटी दे रही है, जो मार्केट फंडामेंटलिज्म (बाजारवादी कट्टरपंथ) के विपरीत है।

वर्तमान बहस के बीच इसे ‘आप’ का खास योगदान समझा जाएगा। बाकी कुछ बातें हवाई हैं। मसलन, एक वर्ष में दो करोड़ रोजगार की व्यवस्था और चीन के कब्जे वाली जमीन को छुड़ाने के लिए सेना को खुला हाथ देने की बातें चुनावी माहौल में भावनाएं गरमाने के काम आ सकती हैं, लेकिन उनमें कोई अर्थव्यवस्था संबंधी या भू-राजनीतिक समझ की झलक नहीं मिलती। मगर केजरीवाल की एक विशेषता यह भी रही है कि वे भाजपा की खास पहचान वाले मुद्दों पर उससे अधिक उग्र दिखा कर उसे पछाड़ने की कोशिश करते हैँ। कई बार वे इसमें सफल भी होते दिखे हैं। जमानत पर रिहा होते ही उन्होंने जिस तरह नेताओं की उम्र सीमा संबंधी नियम का सवाल उठाकर भाजपा के अंदर बेचैनी पैदा की, यह उनके सियासी कौशल की ही मिसाल है।

 

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