डॉ सतपाल सिंह। केंद्रीय मानव संसाधन विकास व जल संसाधन गंगा पुनरुद्धार राज्य मंत्री। इनका कहना है कि आज भी देश में अंग्रेजों के बनाए शिक्षा नीति पर कार्य हो रहा है इसमें बदलाव की आवश्यकता है जिसपर यह सरकार कार्य कर रही है। जल्द ही देश को नई शिक्षा नीति मिलेगी। डॉ सत्यपाल सिंह से संवाददाता मानवेंद्र की खास बातचीत।
आप शिक्षा में सुधार के लिए लगातार लिखते रहे हैं। अब जब आपके पास यह मंत्रालय है क्या कुछ कर रहे हैं?
इस देश की सरकार और शिक्षाविद् भी मानते हैं कि देश में शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत है। आज देश में ऐसी शिक्षा नीति पर कार्य हुआ जो अंग्रेजों ने बनाई थी। अब ऐसी शिक्षा नीति की जरूरत है जो बच्चों को संस्कार दे सकें और बच्चों को रोजगार दे सकें। आज दोनों बातों की कमी नजर आती है। इसलिए देश में नई शिक्षा नीति लाने के लिए एक बहुत बड़ी लोकतांत्रिक कार्रवाई की गई है। जिसे हम एक्सरसाइज बोलते हैं। इसमें 2-2.50 लाख लोगों ने भाग लिया। अपने मत दिए सुझाव दिए। देश में जगह जगह वर्कशॉप हुई। मुझे लगता है कि जो नई कमेटी बनी है डॉ कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में। 31 मार्च तक उन्होंने समय मांगा है उसकी रिपोर्ट आ जाएगी फिर उस कार्य होगा। मुझे लगता है कि इस देश को जल्द ही एक नई शिक्षा नीति मिलेगी।
आखिर इस बार की शिक्षा नीति बन रही है इसमें क्या आधार बनाया गया है ?
इस शिक्षा नीति में मुख्य रूप से पांच आधार होंगे। यह शिक्षा किस प्रकार से सहज सुलभ हो। यह शिक्षा किस प्रकार से सामाजिक असमानता दूर हो। किस प्रकार से शिक्षा की गुणवत्ता लाई जाए। चाहे हमें लर्निंग आउटकम लाई जाए। शिक्षा की गुणवत्ता में खासकर चाहे वह आठवीं में पढ़ता है तो वह बच्चा कितना जानता है क्या वह पीछे के क्लास की पढ़ाई ठीक से किया है या नहीं। चाहे स्कूल की शिक्षा हो या उच्चतर शिक्षा हो। शिक्षा किस प्रकार से कम खर्चिली हो। या कह सकते हैं सस्ती हो। ताकि गरीब भी अपने बच्चों को पढ़ा सके। शिक्षा को चलाने वाले चाहे वह कर्मचारी हो, शिक्षक हो या अधिकारी हो सबपर जिम्मेदारी तय किया जाए। आज जो शिक्षा है उसमें कोई जिम्मेदार नहीं माना जाता है। इन सब पर शिक्षा नीति पर विचार किया जाए।
नई शिक्षा नीति का लक्ष्य क्या है ?
नई शिक्षा नीति का लक्ष्य देश में औपनिवेशिक प्रभाव वाली शिक्षा प्रणाली में संशोधन करना है। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश शिक्षा विशेषज्ञों ने ब्रिटिश और पश्चिमी विद्वानों का अनुसरण किया है और जानबूझकर भारतीय संस्कृति की उपेक्षा की है। शिक्षा प्रणाली और सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारतीय मानसिकता को किस प्रकार औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त किया जाए। सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है। यह पहली शिक्षा नीति है, जिसकी परत-दर-परत और सूक्ष्मता से परिचर्चा की गई है।
आज देश में अंग्रेजी का बोलबाला है। क्या मातृभाषा पर सरकार कुछ कर रही है?
मातृभाषा की महत्ता को समझा जाना चाहिए। आज छोटे छोटे गांवों में अंग्रेजी स्कूल खुलते जा रहे हैं। कोई भाषा गलत नहीं हो सकती है लेकिन हमें अपनी मातृभाषा नहीं भूलनी चाहिए। इस पर हमें जोर देने की जरूरत है।
निजी संस्थानों का आरोप है कि हमारे लिए मानदंड जो सरकार तय करती है वह काफी कड़ी होती है जबकि सरकारी संस्थानों के लिए मानदंड काफी ढीले होती है जिससे हमें काफी असुविधा होती है?
सरकारी स्कूलों में बच्चों का जाना कम हो गया। आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया। आज कई जगह डिग्री केवल बांटे जाते हैं। जबकि हमारे यहां कई सरकारी संस्थानों ने विश्व में अपना नाम किया है। आज उनके यहां के छात्र काफी अच्छा कर रहे हैं। जैसे आईआईटी, आईआईएम, इंड़ियन इस्टीट्यूट ऑफ साइंस हैं। केवल यह कह देना की मानक इनके ढीले ठीक नहीं होगा। आज सरकारी संस्था ने देश भर ही नहीं विश्व में अपना नाम किया है।
शिक्षा नीति लागू करने में क्या प्रमुख चुनौतियां हैं ?
शिक्षा प्रणाली की कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं जिसमें प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, उच्च शिक्षा के खर्च में कमी लाना तथा इसे लोगों के लिए सुलभ बनाना। कौशल विकास सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है।
उच्च शिक्षा संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए। देश में उच्च शिक्षा तक पहुंच मात्र 25.6 प्रतिशत है, जबकि यह अमेरिका में 66 प्रतिशत, जर्मनी में 80 प्रतिशत और चीन में 60 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार होना चाहिए और इसे कम खर्चीला बनाया जाना चाहिए।
देश में शिक्षा का अधिकार भी लागू है फिर भी समस्या का समाधान नहीं मिल पाया है ?
शिक्षा का अधिकार अधिनियम में बदलाव की जरूरत है। अधिनियम में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था है। परंतु यदि माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं तो इसका क्या समाधान है ? इसलिए देश की प्राथमिक शिक्षा में विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों की आवश्यकता है।
आज भी कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी है। इसे कैसे भरेंगे ?
निश्चिततौर पर विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 50 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ही 4,000 हजार पद रिक्त हैं। शिक्षा के अधिकार कानून में भी बदलाव की जरूरत है क्योंकि इसमें कठोरता का अभाव है।
हम फिर से शिक्षा नीति के प्रश्न पर आते हैं आखिर कब तक रिपोर्ट सौंपेंगा मंत्रालय?
केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति पर काम कर रही है और इस विषय पर गठित सलाहकार समिति 31 मार्च तक रिपोर्ट सौंप देगी। रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद इस पर मंत्रालय में विचार विमर्श होगा और फिर समिति की सिफारिशों को कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा।
काफी गहन चिंतन के बाद रिपोर्ट आएगी ?
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ‘औपनिवेशिक’ सोच का अनुसरण करती है। नयी नीति में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने पर विचार किया गया है ताकि उसे बदलते समय के अनुकूल बनाया जा सके। नई शिक्षा नीति पर गहन चर्चा की गई है और यह अपने अंतिम चरण में है तथा समिति 31 मार्च तक रिपोर्ट सौंप देगी।
उम्मीद है अब आम लोगों को विश्व स्तरीय शिक्षा मिलेगी ?
देश की नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय असमानता और शिक्षा के बाजारू स्वरूप को खत्म किया जाएगा। नयी नीति में शिक्षा को सुलभ,सस्ता और लोगों की पहुंच के दायरे में लाने पर जोर दिया जाएगा, ताकि देश में ज्यादा से ज्यादा इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर पैदा किए जा सकें। इसके लिए विश्वस्तर की शिक्षा पद्धति तैयार की जाएगी।
आप लगातार लिखते रहे हैं। अब जब खुद आप उस पद पर है तो लागू कर रहे होंगे। आपको काफी कठिनाई भी महसूस हो रहा होगा?
किसी भी सिस्टम में बदलाव लाने के लिए कोई आसान कार्य नहीं होता है। जो काम आसान नहीं होता उसी को करने में मजा आता है। इसीलिए चैलेंजों को स्वीकार करना और राष्ट्र के हित में कार्य करना। यही अपना उद्देश्य होना चाहिए। जिसके लिए हम कार्य कर रहे हैं।
आपके पास गंगा पुर्नरुद्धार विभाग भी है। गंगा को साफ करने के लिए क्या आपके पास फंड हैं?
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने अलग से गंगा मंत्रालय बनाकर गंगा की पवित्रता व अविरलता को लेकर देश भर में एक जनांदोलन तैयार किया है। बजट की कहीं कोई कमी नहीं है। केवल जनसहभागिता की जरूरत है। कई तरीकों से गंगा को प्रदूषित किया जा रहा है।