कृष्णमोहन झा
18 वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा नीत एनडीए को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार गठित करने का जो जनादेश मिला है वह एन डी ए की मुखिया भाजपा की उम्मीदों के अनुरूप नहीं है। चुनावों की घोषणा के बाद से ही भाजपा यह दावा कर रही थी कि वह लोकसभा की 350 से अधिक सीटें जीतने में सफल होगी और उसके नेतृत्व में एनडीए 400 से अधिक सीटें जीत कर इतिहास रचने में कामयाब होगा इसीलिए उसने इन चुनावों में अबकी बार 400 पार का नारा दिया था। परंतु अभी तक जो परिणाम सामने आए हैं उसके अनुसार इन चुनावों में भाजपा की अपनी सीटों की संख्या भी, उसे 2014 के लोकसभा चुनावों में अर्जित सीटों से भी कम है। भाजपा के कुछ दिग्गज नेताओं को भी इन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को भले ही बहुमत हासिल करने में सफलता न मिली हो परन्तु इन चुनावों में उसकी ताकत में आश्चर्यजनक रूप से इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि मतदान का आखिरी चरण संपन्न होने के पश्चात् उसने लोकसभा की 295 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया था।इन चुनाव परिणामों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इंडिया गठबंधन ने इन चुनावों में अपनी जो एकजुटता प्रदर्शित की उसकी वास्तविकता का ठीक ठीक अनुमान लगाने में भाजपा से चूक हो गई।उल्लेखनीय है कि लोकसभा के चुनाव हेतु मतदान का आखिरी चरण संपन्न होने के बाद जब अधिकांश न्यूज चैनलों अपने अपने एक्जिट पोल के नतीजों में प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत एनडीए सरकार के गठन की भविष्यवाणी की तो विरोधी दलों के इंडिया गठबंधन ने उसे न केवल सिरे से खारिज कर दिया बल्कि केंद्र में आसान बहुमत के साथ इंडिया गठबंधन की सरकार बनने का दावा भी कर डाला था परंतु भाजपा की भाजपा की प्रचंड जीत की भविष्यवाणी करने वाले ये एक्जिट पोल इस बार गलत साबित हुए। यह पहला मौका नहीं है जब एक्जिट पोल के अनुमान ग़लत साबित हुए परंतु चूंकि एक्जिट पोल के अनुमान भाजपा की उम्मीदों के अनुरूप थे इसलिए उन पर सबसे ज्यादा भरोसा भी भाजपा ने ही किया। इसमें भी दो राय नहीं हो सकती कि भाजपा तो मतदान के हर चरण के बाद अपनी प्रचंड बहुमत के साथ विजय के प्रति आश्वस्त होती जा रही थी। निःसंदेह यह और भी आश्चर्य की बात है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में बह रहे अंडर करंट का उसे तनिक भी अहसास नहीं हुआ।2019 और 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत में सबसे बड़ा योगदान करने वाले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा को जो शिकस्त दी है उसने भाजपा को हक्का बक्का कर दिया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में अमेठी लोकसभा चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस के दूसरे नंबर के नेता राहुल गांधी को पराजित करने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का इस बार कांग्रेस के स्थानीय नेता किशोरी लाल शर्मा से से हार जाना भी भाजपा के लिए बड़ा झटका है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के 6 मंत्रियों को लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। उधर पश्चिम बंगाल में भी भाजपा के ऊपर इस बार सत्ता रूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने जिस तरह बढ़त बनाई है उससे यही साबित होता है कि वह वहां भी जमीनी हकीकत का अनुमान लगाने में भूल कर बैठी।
पिछले साल के अंत में संपन्न मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के चुनावों में भाजपा की शानदार जीत के पश्चात् उक्त तीनों राज्यों में एकदम नये चेहरों को मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी थी। मध्यप्रदेश में सहज सरल व्यक्तित्व के धनी डा मोहन यादव को मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया जिनके लिए यह लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व कौशल की पहली परीक्षा था और वह अपनी इस पहली परीक्षा में पूरी तरह सफल रहे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर भी भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में मोहन यादव की रणनीतिक सूझ-बूझ , मतदाताओं के साथ उनकी गहरी आत्मीयता ने क्षेत्रीय मतदाताओं का कांग्रेस के साथ मोहभंग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।। मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के बाहर जिन
राज्यों में भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में चुनावी रैलियों को संबोधित किया वहां वे मतदाताओं के मन पर अपनी अलग छाप छोड़ कर लौटे।गत विधानसभा चुनावों के बाद मध्य प्रदेश की भांति छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन का जो प्रयोग भाजपा हाईकमान ने किया उसके सकारात्मक परिणाम इन लोकसभा चुनावों में सामने आए और वहां भी इन लोकसभा चुनावों में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की लेकिन राजस्थान में भजनलाल शर्मा भाजपा हाईकमान की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके और वहां पार्टी 2019 का प्रदर्शन दोहराने में असफल रही।
लोकसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए आत्ममंथन का संदेश लेकर आए हैं।उसे अब इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या कांग्रेस मुक्त भारत का आह्वान करना एक बड़ी भूल था। कांग्रेस ने इन चुनावों में अपनी ताकत में जो इजाफा किया है वह भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है।इसी तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ताकत में भी जो आश्चर्यजनक इजाफा हुआ है उसे भी हल्के में लेना भाजपा के लिए उचित नहीं होगा। भ्रष्टाचार के विरुद्ध हर निष्पक्ष कार्रवाई स्वागतेय है परन्तु उसके पीछे अगर विरोधी नेताओं पर दबाव बनाने की मंशा हो तो उससे चुनावों में मनचाही सफलता का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जो राजग सरकार बनने जा रही है उसे अगले पांच साल तक निश्चित रूप से सीधे कदमों के साथ आगे बढ़ना होगा।