बांग्लादेश के लिए घातक साबित होगा यह फैसला

 

नई दिल्ली। एक पखवाड़ा पहले बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करते हुए लालमोनिरहाट में चीनी एयरबेस बनाने का न्योता दिया। उन्हें शायद अंदाजा नहीं था कि उनका यह कदम भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित करेगा। इस भेंट के दौरान यूनुस ने न सिर्फ चीन को आमंत्रित किया, बल्कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को ‘लैंडलॉक्ड’ बताते हुए बांग्लादेश को उनका संरक्षक तक घोषित कर दिया। भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह अलर्ट का संकेत था। ‘सेवन सिस्टर्स’ और ‘चिकन नेक’ क्षेत्र को रणनीतिक रूप से भारत की कमजोर नस कहा जाता है। लालमोनिरहाट वही क्षेत्र है, जो सिलीगुड़ी कॉरिडोर से बेहद समीप है—वह संकरा रास्ता जो पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से जोड़ता है। यदि चीन बांग्लादेश के माध्यम से यहां अपनी पकड़ बनाता है, तो यह भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।

भारत का निर्णायक जवाब
मंगलवार आधी रात भारत ने बांग्लादेश के लिए दी गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा को अचानक समाप्त कर दिया। यह वही सुविधा थी, जो 29 जून 2020 को तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ हुए समझौते के तहत दी गई थी। इसके अंतर्गत बांग्लादेश को अपने माल को भारत के बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से तीसरे देशों—जैसे भूटान, नेपाल और म्यांमार—को भेजने की अनुमति थी। 8 अप्रैल को भारत के केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने इस सुविधा को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया। विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इससे भारतीय व्यापारिक ढांचे पर बोझ बढ़ रहा था, लागत में इजाफा हो रहा था और समय पर निर्यात में देरी हो रही थी।

रणनीतिक संदेश
भारत के इस फैसले को एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, विशेषकर मोहम्मद यूनुस की चीन-प्रेमी रणनीति को भारत ने करारा जवाब दिया है। यूनुस के बयान ऐसे समय आए हैं, जब बांग्लादेश गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है और चीन से निवेश की उम्मीद लगाए बैठा है। चीन ने मोंगला बंदरगाह के लिए 400 मिलियन डॉलर और चटगांव में आर्थिक ज़ोन के लिए 350 मिलियन डॉलर का वादा किया है। अब भारत से होकर माल भेजने का विकल्प बंद होने से बांग्लादेश को महंगे और लंबी दूरी के रास्तों का सहारा लेना पड़ेगा। इससे उसके व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा, खासकर नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे देशों के साथ।

बांग्लादेश का व्यापार प्रभावित
बांग्लादेश म्यांमार को मुख्य रूप से वस्त्र, दवाइयाँ और खाद्य उत्पाद निर्यात करता है, जबकि म्यांमार से लकड़ी और समुद्री उत्पाद आयात करता है। नेपाल और भूटान के साथ उसका व्यापार सीमित है, लेकिन वह तैयार वस्त्र, जूट उत्पाद और निर्माण सामग्री जैसे सामान वहां भेजता है। यह सब ट्रांसशिपमेंट व्यवस्था के अंतर्गत भारत के जरिए संभव था। अब यह व्यवस्था समाप्त होने से न केवल लागत बढ़ेगी, बल्कि समय भी अधिक लगेगा और व्यापारिक अनिश्चितता भी बढ़ेगी।

भारत को लाभ
भारत के इस फैसले से घरेलू निर्यात क्षेत्रों को भी फायदा मिलेगा। खासकर वस्त्र, जूते, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों को बांग्लादेश के विकल्प के रूप में उभरने का अवसर मिलेगा। बांग्लादेश वस्त्र निर्यात के क्षेत्र में भारत का प्रमुख प्रतिस्पर्धी रहा है। अब भारत की कंपनियों को वैश्विक बाजार में अधिक अवसर प्राप्त हो सकते हैं।

निष्कर्ष
भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के उस “दुःस्साहस” का करारा जवाब दिया है, जो उसकी सामरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकता था। यूनुस द्वारा चीन को दिए गए न्योते की प्रतिक्रिया में भारत का यह कूटनीतिक प्रहार बांग्लादेश के लिए न केवल आर्थिक रूप से घातक साबित होगा, बल्कि उसे यह भी याद दिलाएगा कि भारत की रणनीतिक सीमाओं के साथ खेलने का परिणाम कितना भारी पड़ सकता है। भारतीय दर्शन में इसे ही कहते हैं—”विनाश काले विपरीत बुद्धि”।

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