सुभाष चंद्र
आजकल विकास पर कई तरह की बहस-मुहाबिसे हो रही हैं। लेकिन, जिस प्रकार से झारखंड के सिमडेगा में राशन नहीं मिलने से एक बच्चे की मौत हो गई, उसने पूरे देश का ध्यान सिमडेगा पर खींचा है। भूख से मौत, वह भी विकास का दावा करने वाले राज्य में। उस राज्य में जहां के मुख्यमंत्री दूसरे प्रदेशों में जाकर विकास का ढिंढोरा पीटते हैं। जहां के विकास का उदाहरण देश के प्रधानमंत्री अपने चुनावी भाषणों में देते हैं। उस राज्य में यदि बच्चे की मौत भूख से होती है, तो राज्य के मुख्यमंत्री के पास क्या जवाब है ? ऐसा नहीं है कि बच्चे की मौत पहली बार हुआ है। यूनिसेफ ने अपने हालिया रिपोर्ट में कहा है कि झारखंड में एक साल की उम्र वाले 25 हजार बच्चों की मौत हुई है। यह तमाम मौत कुपोषण से हुई है।
जरा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के भाषण को याद करें। जब उन्होंने कहा था कि मैं आपके यूपी का विकास करूंगा। यदि आपको विकास देखना है, तो अपने पडोसी राज्य झारखण्ड में जाकर देखें। इससे पहले प्रधानमंत्री ने झारखण्ड विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि पूरे देश ने गुजरात के विकास माॅडल का लोहा माना है। झारखण्ड के लोग भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनाएं, यहां गुजरात जैसा विकास होगा।
झारखण्ड की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा किया। प्रदेश में पहली बार भाजपा की बहुमत वाली सरकार बनीं। लेकिन, यह क्या ? यहां तो बच्चों की मौत हो रही है। वह भी सरकार के मुख्य सचिव के आदेश के कारण। विपक्षी दल सरकार के कामकाज पर सवाल खडे कर रहे हैं। जनता सरकार से सवाल कर रही है, फिर भी राज्य के मुखिया चुप हैं। आखिर क्यों ? जनता तो अब यह भी कह रही है कि यदि यही गुजरात का विकास माॅडल है, तो हमें नहीं चाहिए। इस माॅडल को क्या भाजपा नेता गुजरात विधानसभा चुनाव में भी ढिंढोरा पीटेंगे।
गौर करने योग्य यह भी है कि यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में जन्म के पहले साल के दौरान मरनेवाले साढ़े 25 हजार बच्चों में से 20 हजार की मौत जन्म के 28 दिनों के अंदर हो जाती है। इन नवजातों की मौत को कम करना समाज और सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
मौत के कई कारण हैं। इसके लिए अकेले स्वास्थ्य विभाग जिम्मेवार नहीं है। समाज कल्याण भी इन मौतों के लिए जिम्मेवार है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बच्चों की मौत के अलावा उसके कारण और कैसे इन मौतों को रोका जाए, इसके तरीके भी बताए हैं। यूनिसेफ का मानना है कि पांच साल से कम उम्र के 22 फीसदी बच्चों की मौत न्यूमोनिया और डायरिया से हो रही है। जबकि, स्वास्थ्य विभाग के मद में केंद्र और राज्य सरकार करोड़ों खर्च कर रही है।झारखंड में 61.9 फीसदी महिलाएं अस्पतालों में शिशु को जन्म देती हैं। अस्पतालों में 100 फीसदी महिलाएं बच्चों को जन्म देंगी तो मृत्यु दर में कमी आएगी। जबकि, इसके प्रमोशन के लिए सरकार फ्री में ममता वाहन व प्रोत्साहित राशि 1400 रुपए देती है। जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम भी सरकार चला रही है
जानकारों का कहना है कि शिशुओं की मृत्यु को रोकने में स्तनपान की भूमिका सर्वाधिक है। मां के दूध में बीमारी से लड़ने वाले पदार्थ मिलते हैं। इनमें आयरन, फैटी एसिड, कैल्सियम, जिंक, फोलिक एसिड और विटामिन हैं। ये सभी तत्व बच्चों के शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत बनाते हैं और बच्चों में डायरिया और सांस की तकलीफ नहीं होती है। डिब्बाबंद दूध से मां का दूध सर्वोत्तम है। जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने से एक महीने के दौरान होनेवाली मौतों को 22 फीसदी तक कम की जा सकती है। आंकड़ों को मानें तो राज्य में 33.2 फीसदी माताएं ही अपने बच्चों को जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान करातीं हैं। अगर बच्चों का नियमित टीकाकरण हो तो बच्चे नौ बीमारियों से बच सकते हैं। इनमें टीबी, डिप्थीरिया, कुकर खांसी, टेटनस, पोलियो, खसरा, हेपेटाइटिस-बी, निमोनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस जैसी गंभीर बीमारी शामिल हैं। अगर उक्त बीमारियों के टीके नियमित रूप से लेते हैं तो करीब सात फीसदी मौतों में कमी आएगी।