भारत में कर्ण कायस्थ समाज को एक सजग एवं बुद्धिजीवी समाज होने का गौरव प्राप्त है, किंतु हाल के वर्षों में ऐसी भावना का विकास होता जा रहा है जिससे हम अपनी अस्मिता खोते जा रहे हैं। हम सबको मिलकर अपनी अनमोल धरोहर को अक्षुण्ण रखने का प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में मैथिल कर्ण कायस्थ अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। जो हमारे पास संरक्षित है उसमें महिलाओं का काफी योगदान है।
अजय कुमार कर्ण
नई दिल्ली। ”किसी समाज के विकास के लिए उसके लोगों में एकात्मता होना जरूरी है। वर्तमान समय में कर्ण कायस्थ समाज के लोगों के बीच भी एकात्मता की नितांत आवश्यकता महसूस हो रही है।” उक्त बातें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवयित्री डॉ. शेफालिका वर्मा ने रविवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान सभागार, नई दिल्ली में आयोजित ‘कर्ण कायस्थ महासभा’ में विशिष्ट अतिथि के नाते कहीं।
डॉ. वर्मा ने कहा कि परंपरा का विकास होते रहना चाहिए और इस दिशा में इस महासभा का आयोजन एक शुभ संकेत है।
‘कर्ण कायस्थ महासभा’ के उद्देश्य के बारे में बताते हुए महासभा के संयोजक श्री बी. के. कर्ण ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में कर्ण कायस्थ समाज को एक सजग एवं बुद्धिजीवी समाज होने का गौरव प्राप्त है, किंतु हाल के वर्षों में ऐसी भावना का विकास होता जा रहा है जिससे हम अपनी अस्मिता खोते जा रहे हैं। हम सबको मिलकर अपनी अनमोल धरोहर को अक्षुण्ण रखने का प्रयास करते रहने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में इतिहासकार श्री भैरब लाल दास ने कहा कि कर्ण कायस्थ कर्नाटक के मूल निवासी हैं। उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि हमलोग अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति उदासीन हैं। जिस समाज का इतिहास नहीं होता है वह अपना अस्तित्व खो देता है। उन्होंने कहा कि कर्ण कायस्थ की पहचान तलवार से नहीं, बौद्धिकता से होती है, यह हमारी विशिष्ट पहचान है। उन्होंने पंजी प्रथा को अमूल्य धरोहर बताते हुए इसके डिजिटाईजेशन की जरूरत पर बल दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री वीरेंद्र मल्लिक ने कहा कि ये दुःखद है कि वर्तमान समय में मैथिल कर्ण कायस्थ अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। जो हमारे पास संरक्षित है उसमें महिलाओं का काफी योगदान है। श्री मल्लिक ने कहा कि दुनिया तेजी से बदल रही है। चांद तक लोग पहुंच गए हैं। हम भी बदलें लेकिन इसका ध्यान रखें कि हमारा एक पैर सदैव जमीन पर हो।
इस महासभा में कुल चार सत्रों में चर्चा हुई। ‘कर्ण कायस्थ का इतिहास और संस्कार’ विषयक सत्र को श्री भैरब लाल दास, श्री अंजनी कुमार, श्री आर. के. दास एवं श्री राजेश कर्ण ने संबोधित किया। ‘कर्ण कायस्थ में कौन बड़ा, कौन छोटा’ विषय पर श्री भैरब लाल दास, श्री प्रकाश कुमार दास, श्री अभय कुमार दास एवं श्री सी.के. चौधरी ने प्रकाश डाला। ‘कर्ण कायस्थ विवाह, रीति-रिवाज, परंपरा बनाम आधुनिकता’ विषयक सत्र में श्रीमती सरिता दास, श्रीमती बिनीता मल्लिक एवं श्रीमती नूतन कंठ ने अपने विचार प्रस्तुत किए। ‘कर्ण कायस्थ युवाओं का आचार-विचार और संस्कार’ विषयक सत्र को श्री के. के. चौधरी, श्री कमलेश कुमार दास, श्री मानबर्द्धन कंठ, श्री संजीव सिन्हा एवं श्री आनंद कुमार ‘पंकज’ ने संबोधित किया।
कार्यक्रम के अंत में कुल 18 महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव पारित किए गए, जिसमें दहेज प्रथा के विरोध में, बत्तीसगामा को अमान्य करने, कर्ण कायस्थ में कोई छोटा-बड़ा नहीं और सरनेम रखने के समर्थन में प्रस्ताव उल्लेखनीय हैं।
कार्यक्रम का शुभारम्भ चित्रगुप्त आरती से हुआ। कार्यक्रम कई मायनों में विशिष्ट रहा। अधिकांश वक्ताओं ने पीपीटी के जरिए अपने विचार रखे। सभी प्रतिनिधियों ने अपने लिखित सुझाव दिए। सभी वक्ताओं एवं प्रतिनिधियों को मानपत्र दिए गए। दोपहर में पारंपरिक भोजन हुआ, जिसमें चूड़ा, दही, चीनी और अचार परोसा गया। महासभा में दिल्ली सहित हैदराबाद, पटना, मुंबई, चेन्नई, बंगलुरु आदि जगहों से 138 प्रतिनिधियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का कुशल संचालन श्री मानबर्द्धन कंठ ने किया।