नई दिल्ली।आम आदमी पार्टी की आंतरिक लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ये लड़ाई खुलकर सामने आ रही है। मशहूर कवि और आप नेता कुमार विश्वास इस लड़ाई में थोड़े अलग-थलग से नजर आ रहे हैं। पार्टी की नैशनल काउंसिल मीटिंग में उनका नाम स्पीकर लिस्ट में नहीं था, लेकिन कुछ कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि कुमार क्यों नहीं बोलेंगे ? तब उन्हें बोलने के लिए बुलाया तो गया, लेकिन विश्वास कुछ नहीं बोले। हालांकि ट्विटर उन्होंने चार छोटी पंक्तियों में जो लिखा वह पूरी कहानी कह रही है।
सूत्रों के मुताबिक जब बैठक शुरू हुई तो कुछ कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि कुमार विश्वास का नाम बोलने वालों की लिस्ट में क्यों नहीं है। तब दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कार्यकर्ताओं से कहा कि कुमार भी बोलेंगे और कुमार से अपनी बात रखने को कहा गया, लेकिन कुमार ने इशारों में अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए कहा, ‘पार्टी ने जब तय किया था कि मैं नहीं बोलूंगा तो पार्टी के फैसले का सम्मान करते हुए मैं नहीं बोलूंगा।’
आप विधायक अमानतुल्ला खां को जबसे पार्टी ने वापस बुलाया है, तभी से ऐसी विश्वास की नाराजगी एक बार फिर उभर कर आई। विश्वास ने अमानतुल्ला खां के निलंबन वापस होने के बाद कहा था कि वह सिर्फ एक मुखौटा है, जड़ कोई और है। तो वहीं गुरुवार को खबर आई कि जब कुमार विश्वास नेशनल काउंसिल में पहुंचे तो अमानतुल्ला खां के समर्थकों ने उनकी गाड़ी रोकने की कोशिश की ऐसा ही विश्वास के समर्थकों ने अमानतुल्ला खां के साथ किया। पहले कुमार विश्वास का नाम वक्ताओं की लिस्ट में नहीं था, लेकिन जब वह कार्यक्रम में पहुंचे तो आप कार्यकर्ताओं ने इस पर आपत्ति जताई। तब जाकर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उन्हें संबोधन के लिए आमंत्रित किया, लेकिन विश्वास ने ही बोलने से इनकार कर दिया। कुमार विश्वास मंच पर तो नहीं बोले लेकिन, ट्विटर पर अपनी कुछ पंक्तियों से सबकुछ जता दिया. कुमार ने ट्वीट किया, ‘ ख़ुशियों के बेदर्द लुटेरो, ग़म बोले तो क्या होगा. ख़ामोशी से डरने वालों, ‘हम’ बोले तो क्या होगा..??
साल में कम से कम एक बार होने वाली इस बैठक का आयोजन बाहरी दिल्ली के अलीपुर में किया गया है। आप की राष्ट्रीय परिषद में लगभग 300 सदस्य हैं, जबकि इस बैठक में करीब 150 सदस्यों को विशेष आमंत्रण के द्वारा बुलाया गया । इससे पहले राष्ट्रीय परिषद की बैठक काफी हंगामेदार रही है। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को निष्काषित किया जाना उन्हीं हंगामों में से एक है। इस बार भी एजेंडे में कुमार विश्वास का नाम शामिल नहीं होने से कार्यकताओं में काफी हलचल है। फिलहाल अरविंद केजरीवाल टीम और कुमार विश्वास टीम के बीच चल रहे शीत युद्ध से कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्तिथि देखी जा सकती है। साथ ही सवाल यह भी उठता है कि 6 महीने पहले कुमार के समर्थन में खड़े रहने वाले विधायक क्या अब भी अपने फैसले पर कायम रहेंगे।