नई दिल्ली। मां दुर्गा की पूजा करना। उनके लिए उपवास रखने का मतलब यह नहीं है कि इससे Ma Durga प्रसन्न हो जाएंगी। मां की भक्ति को दिल में उतारना लाज़िमी है। इसके लिए घंटों के उपवास की कोई दरकार नहीं है। मन से Ma Durga के वचनों को कर्म में उतारें। ये है सही मायने Ma Durga की भक्ति। नौ दिन भूखे रहकर मां के लिए उपवास रखें। और लड़कियों के साथ बुरा सुलूक करें। ऐसे में मां दुर्गा कहां प्रसन्न होंगी। Ma Durga की आठ भुजाओं और उनमें सुशोभित अस्त्र-शस्त्रों की तुलना आज या पहले की स्त्री से करें। हम देखेंगे कि हमारे समाज में स्त्रियों पर बहुआयामी कर्तव्य और उत्तरदायित्व का बोझ रहा है और उन्होंने पूरी सफलता, सामर्थ्य और निष्ठा के साथ उनका निर्वहन भी किया है। स्पष्ट है कि स्त्री-अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक के रूप में देवी आराधना धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु सामाजिक दृष्टि से भी तर्कसंगत होगी।
माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी
सदइच्छाओं के महायोग से
अंतःचेतनाओं के अद्भुत संयोग से
आत्मशक्तियों के अनन्य प्रयोग से
सुप्त पड़े जाग उठे मैंमयी उद्योग से
प्रस्फुटित प्रचंड अकल्पय शक्तिशाली
कामनाओं के अभेद्य दुर्ग को ध्वस्त करने
निकल पड़ी कालजई उर्जा ही
माँ दुर्गा है
आसुरी प्रवृत्तियों पर
अनियंत्रित मनोवृत्तियों पर
अमानवीय आवृत्तियों पर
महिष आरोहित अनियंत्रित
तमसमुखी गतिविधियों पर
जाग उठी हाहाकारी विजय प्रवर्तनीप
प्रकाशमयी अंतःचेतना ही
महिषासुर मर्दिनी है
डॉ एम डी सिंह, पिछले पचास सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में होमियोपैथी की चिकत्सा कर रहे हैं ।