प्रदेशाध्यक्ष की कमान अगस्त 2014 से नंदकुमार चौहान के हाथों में रही है। नंदकुमार अपने कार्यकाल में अध्यक्ष के रूप में अलग छवि बनाने में विफल रहे है। शुरुआती दिनों में प्रदेश में संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन ने संगठन की पूरी बागडोर अपने हाथों में रखी थी। सारे चुनावों उपचुनावों में जोड़ तोड़ से लेकर संगठन को बेहतर बनाने सारे दायित्व मेनन को बखूबी निभाया। मेनन ने कार्यकर्ताओं को साधने के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज के लिये ढाल की भूमिका का निर्वहन किया। मेनन की 2016 में संगठन महामंत्री पद से विदाई के बाद से ही प्रदेश में भाजपा संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया है।
कृष्णमोहन झा
भोपाल। चित्रकूट, कोलारस और मुंगावली में हार की हेट्रिक बना चुकी भाजपा के अंदर खाने में खलबली मची हुई है। सत्ता और संगठन का पूरा दारोमदार अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कंधों पर है। 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद नरेन्द्र सिंह तोमर के केन्द्र में मंत्री बनकर जाने के बाद से प्रदेशाध्यक्ष की कमान अगस्त 2014 से नंदकुमार चौहान के हाथों में रही है। नंदकुमार अपने कार्यकाल में अध्यक्ष के रूप में अलग छवि बनाने में विफल रहे है। शुरुआती दिनों में प्रदेश में संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन ने संगठन की पूरी बागडोर अपने हाथों में रखी थी। सारे चुनावों उपचुनावों में जोड़ तोड़ से लेकर संगठन को बेहतर बनाने सारे दायित्व मेनन को बखूबी निभाया। मेनन ने कार्यकर्ताओं को साधने के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज के लिये ढाल की भूमिका का निर्वहन किया। मेनन की 2016 में संगठन महामंत्री पद से विदाई के बाद से ही प्रदेश में भाजपा संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया है। इतना ही नहीं नंदकुमार चौहान ने एक तरफ जहां कार्यकर्ताओं को पार्टी से दूर किया है वहीं अपने बड़बोले पन की वजह से मुख्यमंत्री और संगठन को मुसिबत में डाला है। भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह ने पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में स्पष्ट कहा कि प्रदेश में संगठन कमजोर हुआ है। यदि यही रवैया रहा तो सरकार बनाना इतना सरल नहीं होगा। आखिर इस बात के क्या मायने है? इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश में प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री की भूमिका पर अविश्वास की स्थिति निर्मित हो गई है। कोलारस, मुंगावली उपचुनाव के बाद से ही प्रदेश नेतृत्व में बदलाव की आवाज उठने लगी थी, सोशल मीडिया और मीडिया मेेंं भी अटकलों का दौर प्रारंभ हो गया था लेकिन प्रदेशाध्यक्ष के रूप में कौन खरा उतरेगा उसकों भी लेकर कयासों का दौर जारी है। जिन नामों की चर्चा है उनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और केन्द्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का प्रमुखता से लिया जा रहा है इसके पीछे का तर्क है कि 2008 और 2013 में तोमर ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है लेकिन क्या आज वे प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभालेंगे? केन्द्र में मोदी मंत्रीमंडल में 5वीं, 6वींं जगह बनाकर काम करने वाले तोमर क्या अपने आप को केवल एक राज्य में केन्द्रित करेंगे? तोमर के अत्यंत निकट से जुड़े शुभचिंतक का कहना है कि यह खबरे केवल मीडिया की उपज है। तोमर जी अब केन्द्र की राजनीति पर ही फोकस कर रहे है उनके सामने मिशन 2019 की महत्वपूर्ण जवाबदारी है। ऐसे में मध्यप्रदेश वापसी की खबर केवल शिगुफा है।
प्रदेशा के रूप में जिन अन्य लोगों के नाम है उनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटैल, प्रदेश के पूर्व मंत्री कैलश विजयवर्गीय और वर्तमान में प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्र के साथ भाजपा के प्रदेश महामंत्री बीडी शर्मा और अजय प्रताप सिंह के नाम प्रमुख है। इन नामों के साथ प्लस और माइनस दोनों जुड़ा है। नरोत्तम और कैलाश को एक बार फिर विधानसभा में अपना भाग्य आजमाना है वहीं कुलस्ते और प्रहलाद पटैल की महत्वाकांक्षा को स्वीकार करना शिवराज सिंह चौहान के लिए सरल नहीं है। अभाविप के संगठन मंत्री और झारखंड में चुनावी कार्य देखने के बाद प्रदेश में भाजपा के महामंत्री बने बीडी शर्मा के समर्थक उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते है। इसके पीछे की वजह उनका पूर्व क्षेत्र प्रचारक अरूण जैन और संगठन महामंत्री सुहास भगत का आर्शीवाद होना बताया जाता है वहीं प्रदेश के राजनैतिक पंडितों का मानना है कि लंबे समय तक छात्र राजनीति करने वाले व्यक्ति को प्रदेश की आवश्यकता है। संघ में भी भारी फेरबदल हुआ है। वर्तमान अधिकारियों द्वारा चुनाव के समय में कोई भी जोखिम मोल लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता। बीडी शर्मा शिवराज सिंह चौहान के भी निकट है लेकिन शिवराज उन्हें नंदू भैया का उत्तराधिकारी स्वीकारें यह भी संभव नहीं है। जो नाम सबसे आखरी में लिया जा रहा है वह है अजय प्रताप सिंह जी का। अध्यक्ष पद के सारे दावेदारों में सबसे कम अनुभवी होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन दीनदयाल विचार प्रकाशन के उपाध्यक्ष और प्रदेश महामंत्री तौर पर सिंह ने राष्ट्रीय और प्रांतीय नेतृत्व का दिल जीता है उसका ही परिणाम है कि राज्यसभा में भाजपा ने बड़े-बड़े कद्दावर नेताओं को किनारे करके उन्हे भेजा। राज्यसभा में जाने के बाद अब उन्हें कोई चुनाव भी नहीं लडऩा है ऐसे में वे पूरा समय संगठन को देंगे। इतना ही नहीं सिंहस्थ और विषम राजनैतिक परिस्थतियों में उन्होंने राजनैतिक कौशल का परिचय दिया है उससे उनके प्रदेश संगठन प्रमुख बनने से इंकार नहीं किया जा सकता। अजय प्रताप सिंह केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विश्वासपात्र नेताओं में से एक है। प्रदेश में प्रदेशाध्यक्ष पर अंतिम मुहर इन दो प्रमुख नेताओं की स्वीकृति के बाद ही संभव है। अजय प्रताप सिंह का संघ से भी निकट संबंध रहा है और आज तक इनको लेकर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं हुआ है। ऐसे में राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा अजय प्रताप सिंह के रूप में मध्यम मार्ग अपनाने की संभावना प्रबल दिखाई देती है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)