इस सच को कोई झुठला नहीं सकता कि गुरु साहिब तो ज्ञान हैं, आलोक हैं, मार्गदर्शन हैं, ज्ञानचक्षु हैं, माता-पिता हैं,परमेश्वर हैं और आज भी “श्री गुरु ग्रन्थसाहिब” के रूप में हरपल, हरक्षण हमारे समीप हैं।
दीप्ति अंगरीश
सदगुरु नानक परगटया, मिट धुंध जग चानन होया। यानी सिख इतिहास के अनुसार, गुरू नानक देव जी (प्रथम नानक, सिख धर्म के संस्थापक) का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को सम्वत 1526 (अंग्रेजी वर्ष 1469) को राय-भोए-दी तलवण्डी वर्तमान में शेखुपुरा (पाकिस्तान) ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध स्थान पर हुआ था। गुरू नानक साहिब जी का जन्मदिन प्रतिवर्ष 15वीं कार्तिक पूर्णिमा यानी कार्तिक माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इनके जन्म दिवस को प्रकाश उत्सव (प्रकाशोत्सव ) भी कहते हैं, जो कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को सिख श्रद्धालु गुरु नानक जी के प्रकटोत्सव के रूप में धूम-धाम से मनाते हैं।
गुरुनानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्मसुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति और क्रिया-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। गुरु नानकदेव एक समन्वयवादी संत थे। गुरु ग्रंथ साहब में सभी संतों एवं धर्मो की उक्तियों को सम्मिलित कर उन्होंने समन्वयवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया। वह आजीवन परोपकार एवं दीन-दुखियों की सेवा में लगे रहे। इन्होंने लगभग 974 शब्द और 19 राग लिखे हैं।
समाज में समानता का नारा देने के लिए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब ही उसके बच्चे हैं। पिता की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं होता। वही हमें पैदा करता है और वही हमारा पेट भरने के लिए अन्न भेजता है।
गुरु नानक देव जी ने कहा कि तुम मनुष्य की जाति पूछते हो, लेकिन जब व्यक्ति ईश्वर के दरबार में जाएगा तो वहां जाति नहीं पूछी जाएगी। सिर्फ उसके कर्म देखे जाएंगे। इसलिए आप सभी जाति की तरफ ध्यान न देकर अपने कर्मों को दूसरों की भलाई में लगाओ।
अमृत दौलत वंडिए यानी लंगर मिटाता है जात-पात। नानक देव का जन्मदिन गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है। तीन दिन पहले से प्रभात फेरियां निकलनी आरंभ हो जाती हैं। इनके अनुयायी जगह-जगह भक्तिपूर्वक लोगों के लिए चाय-पानी, दूध और शरबत आदि की व्यवस्था करते हैं।
गुरू नानक साहिब जी द्वारा स्थापित सिख जीवन दर्शन का आधार मानवता की सेवा, कीर्तन, सत्संग एवं एक सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति विश्वास है। इस प्रकार उन्होंने सिख धर्म की आधारशिला रखी। नानक जी हर किसी को सचेत किया कि मूर्ति पूजन से कोई लाभ नहीं है। इस पत्थर की मूर्ति के आगे माथा रगड़ना महज जंगल में चिल्लाने जैसा है। इसके अलावा नानक जी ने अपने अनुयायियों को वहम, शगुन-अपशकुन, अन्धविश्वास के चक्कर में रहना, शादी-विवाह या दूसरे शुभ कार्य का मुहूर्त निकलवाना, जात-पात के चक्कर में फंसना, मूर्ति रखना, पितृ कर्म श्राद्ध करना, राखी बांधना और तिलक लगवाना, लोहड़ी जलाना, मौन व्रत रखना, पूजा के नाम पर नंगे या भूखे रहना अथवा नंगे पांव चलना सख्त मना किया है।
नानक देव ने लोगों को तीन बातों की शिक्षा दी- “पहला भगवान का स्मरण करो। दुसरा भगवान की भक्ति का मतलब कर्म से हटना नहीं है इसलिए भक्ति के साथ काम पर भी ध्यान दो। तीसरी बात इन्होंने सिखायी सिर्फ अपने लिए ही मत सोचो, जरूरतमंदों की मदद करो। सच तो यह है कि गुरु साहिब तो ज्ञान हैं, आलोक हैं, मार्गदर्शन हैं, ज्ञानचक्षु हैं, माता-पिता हैं, परमेश्वर हैं और आज भी “श्री गुरु ग्रन्थसाहिब” के रूप में हर पल, हर क्षण हमारे समीप हैं। उनके इन उपदेशों को अपना कर समाज को बदलने में योगदान दें।
गुरुनानक देव जी ने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएँ या सिद्धांत दिए थे। यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। ये हैं ईश्वर एक है। सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है। सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए। बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए। मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है। इस सच को कोई झुठला नहीं सकता कि गुरु साहिब तो ज्ञान हैं, आलोक हैं, मार्गदर्शन हैं, ज्ञानचक्षु हैं, माता-पिता हैं,परमेश्वर हैं और आज भी “श्री गुरु ग्रन्थसाहिब” के रूप में हरपल, हरक्षण हमारे समीप हैं।