बनारस

 

निवेदिता मिश्रा झा

क्रोधित क्यों महादेव
त्रिशुल पर अवस्थित
नगर में भी तो आत्मा होती है न
तीन नोक कुरेदती है आदतन
और समय उसमें मरहम लगाता गाहे बेगाहे

आप अभी यहीं या चले गये अनयत्र
फ़कीर औघढ रूकते कहाँ
और उसके मोह में पडे लोग
अपनी जिन्दगी सरेआम चौराहे पर
साधना हो या प्रेम
कलयुग में सब पर शक किया जाता है
गंगा कि तरह सब गूंगे नहीं
और न हीं घाटों की तरह बेजुबान

आज हमारी बारी है नाराज़गी कि
तुम इस शहर को ज़मी पर उतार दो
और तब जी लेगें हम अपने दम पर
जैसे बचे हुए और शहर जी रहे हैं यहाँ वहाँ

निवेदिता मिश्रा झा

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