शिक्षा के मंदिरों पर राजनीति ?

कमलेश भारतीय

नई दिल्ली। क्या हरियाणा में शिक्षा के मंदिरों पर राजनिति हो रही है ? क्या स्कूलों को बंद करने का फैसला सही है ? क्या छात्रों की कम गिनती होने के बावजूद स्कूलों को चलाये रखना उचित है ? क्या इस तरह स्कूलों के बंद होने से निर्धन परिवार के बच्चे शिक्षा से वंचित हो जायेंगे ? बहुत सारे सवाल हैं सबके मन में । कोई राजनेता नहीं । एक पत्रकार मात्र हूं । उससे भी पहले लगभग सत्रह साल शिक्षक भी रहा पंजाब के स्कूलों में । दो प्राइवेट तो एक सरकारी । जिसे गवर्नमेंट आदर्श सीनियर सेकेंडरी स्कूल कहा गया । खासतौर पर खोले गये थे ये सरकारी स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में ताकि सरकारी फीस पर गांवों के बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किये जा सकें ।

 

आज वयोवृद्ध नेता प्रकाश सिंह बादल की यह योजना थी सन् 1979 में और खुद बैठकर इन्टरव्यू लिये थे । मैं खुशकिस्मत रहा कि हिंदी प्राध्यापक चुना गया । आज भी पंजाब में ये छह आदर्श स्कूल चल रहे हैं । इस उदाहरण का इतना ही महत्त्व या प्रयोजन है कि ग्रामीण क्षेत्र के गरीब बच्चों को इन स्कूलों की बहुत जरूरत है । इन्हें बंद करते समय पुनर्विचार किया जाना चाहिए । यदि ये स्कूल बंद होते हैं तो यह बहुत बड़ी आशंका है कि इससे प्राइवेट स्कूलों को फायदा होना तय है । इन स्कूलों को बंद करने के फैसले पर राजनीति शुरू हो गयी है ।

सरकार ने संस्कृति माॅडल स्कूल खोले हैं , इसकी प्रशंसा करता हूं लेकिन अब स्कूलों को बंद करना कितना न्यायोचित है ? यह सरकार को सोचना है । स्कूलों का ढांचा सुधारने की जरूरत है न कि इन्हें बंद करने की । यह सोच रखकर इन्हें चलाये रखने की कोशिश की जानी चाहिए । शिक्षा हमारे मौलिक अधिकारों में से एक है । शिक्षा तो गुरुकलों में भी दी जाती रही और अब भी हरियाणा में कुछ गुरुकुल चल रहे हैं । इन्हें भी संजीवनी देने की जरूरत है । ये गुरुकुल गांव गांव से अनाज व चंदा इकट्ठा कर चलाये जा रहे हैं । यदि इनको भी आर्थिक सहायता दी जाये तो ये गुरुकुल भी पल्लवित व पुष्पित हो सकेंगे । इन गुरुकुलों के कोई बड़े बड़े विज्ञापन नहीं आते । बस । कभी कभार इनकी योग की क्रियायें करते बच्चों के अच्छे फोटोज देखने को मिल जाते हैं ।

गुरुकुलों की ओर ध्यान देने की जरूरत है । शिक्षा पर राजनीति करने की जरूरत नहीं । विरोध प्रदर्शन हो रहे है । निंदा और आलोचना भी स्वाभाविक है । इसके बावजूद यह सोचने का विषय है कि हम ग्रामीण छात्रों को कैसे शिक्षा से वंचित कर सकते हैं ? फिर ये स्कूलों के भवन किस काम के ? हमारे पंजाब के गवर्नमेंट आदर्श सीनियर स्कूलों के चौदह भवन बनाये गये थे लेकिन स्कूल चलाये मात्र छह और नये नये बने आठ भवन बन गये गोदाम । ऐसी स्थिति या नौबत न आ जाये । मेरा विनम्र आग्रह है कि राजनीति से ऊपर उठकर स्कूलों को चलाने को कोशिश की जाये जिससे छोटे वर्ग के बच्चे शिक्षा से वंचित न रह जायें यहां भी अंत्योदय यानी आखिरी बच्चे तक शिक्षा की सुविधा जरूरी बनाई जाये । ग्रामीण समितियां बनाई जायें जो इन स्कूलों के संचालन में न केवल मदद करें बल्कि आर्थिक सहयोग भी जुटायें । शायद मेरी आवाज सरकार तक पहुंच जाये ,,,

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