रसगुल्ले ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा के रिश्तों में कड़वाहट क्यों घोल दी है? पश्चिम बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज़्ज़ाक मोल्लाह का कहना है कि वे ओडिशा को रसगुल्ला ईजाद करने का श्रेय नहीं लेने देंगे।
सुभाष चंद्र
बचपन में कभी बिस्कुट, कभी चॉकलेट तो कभी मिठाई के लिए लड़ते देखा। खुद भी लड़ों और पड़ोस की लड़ाई भी देखी। लेकिन मिठाई पर दो राज्य भी आमने-सामने लड़ाई करेंगे, यह कभी जेहन में नहीं आया। पश्चिम बंगाल और ओडिशा इस बात पर भिड़ गए हैं कि रसगुल्ला मेरा है, तो मेरा है। इसकी उत्पत्ति और प्रचार-प्रसार हमने किया। जाहिर है मिठाई भी जब रसगुल्ला हो, तो बात दूर तक जाएगी ही। मीठे रस से भरा रसगुल्ला इन दिनाें पश्चिम बंगाल और ओडिशा के रिश्तों में कड़वाहट घोल रहा है और कड़वाहट भी इस हद तक बढ़ चुकी है कि रसगुल्ले पर हक का मामला अदालत तक पहुंचने को तैयार हैं। ख़बरों के मुताबिक दोनों राज्यों के बीच लड़ाई इस बात को लेकर है कि रसगुल्ले की ईजाद कहां से हुई। पश्चिम बंगाल या ओडिशा से। पश्चिम बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज़्ज़ाक मोल्लाह कहते हैं, ‘रसगुल्ले का मूल बंगाल में है. यह पहली बार यहीं बनाया गया। इसीलिए हम ओडिशा को रसगुल्ले की ईजाद का श्रेय नहीं लेने देंगे। हमने फैसला किया है कि हम इस मामले को अदालत तक ले जाएंगे। अदालत ही अब इस पर फैसला करेगी।’
बेशक, रसगुल्ला शुद्ध दूध के छेना से बनता हो, चीनी के मीठे रस में सरोबार रहता है, लेकिन बंगाल और ओडिशा के बीच इसका स्वाद कसैला हो गया है। दोनों राज्य में फिलहाल यह मिठाई कड़वाहट दूर नहीं, बल्कि कड़वाहट बढ़ा रहा है। ओडिशा का दावा है कि रसगुल्ला का इतिहास उसके राज्य से जुड़ा है, तो पश्चिम बंगाल भी कहता है कि रसगुल्ला तो हमारा है।
रसगुल्ला बन चुका है राष्ट्रीय मिठाई
रसगुल्ले को मिठाइयों का राजा कहा जा सकता है। आपको बता दें कि रसगुल्ला को एक सर्वे के तहत राष्ट्रीय मिठाई के रूप में माना गया है। साल 2010 में एक एजेंसी ‘मुद्रा’ ने आउलुक पत्रिका के लिए सर्वे किया गया था। इस सर्वे के बाद रसगुल्ला की स्वीकारोक्ति और उपलब्धता सबसे अधिक थी। लिहाजा, इसे राष्ट्रीय मिठाई के रूप में माना गया।
ओडिशा में हुई शुरुआत ?
रसगुल्ला कहां से और कब बनना शुरू हुआ, इसको लेकर ओडिशा और बंगाल में ठन गई है। ओडिशा सरकार ने रसगुल्ला की भौगोलिक पहचान (जीआई) के लिए कदम उठाया है। उसका दावा है कि मिठाई का ताल्लुक उसी से है, जबकि पश्चिम बंगाल इसका विरोध कर रहा है। खानपान के विशेषज्ञों का कहना है कि कई ऐसे ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि रसगुल्ला ओडिशा की देन है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के अस्तित्व में आने के बाद रथयात्रा का शुभारंभ हुआ। तभी रसगुल्ला भी अस्तित्व में आया। सांस्कृतिक इतिहासकार असित मोहंती के अनुसार, भगवान जगन्नाथ द्वारा मां लक्ष्मी को रथयात्रा के समापन के समय रसगुल्ला भेंट करने की परंपरा 300 साल पुरानी है। बंगाल तो खुद ही मान रहा है कि उसका रसगुल्ला 150 साल पुराना है। ओडिशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान (जीआई) से जोड़ने में लगा हुआ है। दस्तावेज इकट्ठा किए जा रहे हैं, जो साबित करेंगे कि ‘पहला रसगुल्ला’ भुवनेश्वर और कटक के बीच अस्तित्व में आया था।
बंगाल ने पेश किए तथ्य
कई जानकार मानते हैं कि रसगुल्ला की खोज नवीन चंद्रा (इन्हें कोलंबस आॅफ रोसोगुल्ला भी कहा जाता है) ने 1868 में की थी। नोबिन चंद्रा के परपोते अनिमिख रॉय के अनुसार, रोसोगुल्ला के बारे में यह कहना कि 700 साल पहले ओडिशा में इसकी खोज हुई, गलत है। बंगाल में 18वीं सदी के दौरान डच और पुर्तगाली उपनिवेशवादियों ने छैने से मिठाई बनाने की तरकीब सिखाई और तभी से रसोगुल्ला का अस्तित्व मिलता है।
पश्चिम बंगाल सरकार रसोगुल्ला को अपना बताने के लिए ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाने में के.सी. दास प्राइवेट लिमिटेड की मदद ले रही है। यह मिठाई की दुकानों की श्रृंखला है जो नोबिन चंद्रा के वंशजों द्वारा संचालित की जा रही है। इसमें मुख्य रूप से 3 तर्क दिए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि छेना से रसगुल्ला बना, छेना बंगाल में ही अस्तित्व में आया, साथ ही रसोगुल्ला शब्द बांग्ला भाषा का है।
बंगाल में यह कथा है प्रचलित
साल 1858 की बात बतार्इं जाती है। कोलकाता में सुतापुट्टी के समीप एक हलवाई की दुकान पर नवीनचंद्र दास नाम का एक लड़का काम करता था। वेतन नहीं बढ़ाया तो उसने नौकरी छोड़ दी। फिर नवीनचंद्र ने कोलकाता के एक सुनसान से इलाके कालीघाट में अपनी ही दुकान खोल ली। दुकान में अक्सर छेना बच जाता था। नवीनचंद्र उस छेने के गोले बनाकर चाशनी में पका लेता, लेकिन उसकी यह मिठाई बिकती नहीं थी। कभी-कभार फ्री में लोगों को खिला देता था। मिठाई के न बिकने के कारण वह दुखी भी होता।
करीब 8 साल बाद यानी 1866 की घटना है। एक दिन उसकी दुकान के सामने एक सेठ की बग्घी आकर रुकी। सेठ का नौकर दुकान पर आया और बोला, छोटे बच्चों के लिए कोई नर्म-सी मिठाई दे दो। चूंकि, नाम लेकर तो मिठाई मांगी नहीं गई थी, इसलिए नवीनचंद्र ने उसे अपनी वही मिठाई दे दी। बच्चों को मिठाई बहुत पसंद आई। वे बहुत खुश हुए। सेठ की भी इच्छा हुई कि इस नई मिठाई का नाम जाना जाए, जिसे बच्चों ने इतना पसंद किया है। नौकर ने आकर नवीनचंद्र से मिठाई का नाम पूछा, तो वह घबरा गया। रस में गोला डालकर बनाता था मिठाई, इसलिए कह दिया, रस-गोला। नौकर ने कहा, सेठ जी अभी अपने बाग में जा रहे हैं, वापसी पर एक हांडी रस-गोला घर ले जाएंगे, तैयार रखना।
नवीनचंद्र दास रस-गोले की पहली बिक्री से बहुत प्रसन्न था। रस-गोले के पहले ग्राहक भारत के बहुत बड़े व्यापारी थे, नाम था भगवान दास बागला। इतने बड़े व्यापारी के ग्राहक बन जाने से ‘रस-गोला’ की बिक्री तेजी से बढ़ने लगी। समय के साथ ‘रस-गोला’ का नाम बिगड़कर रसगुल्ला हो गया।