By : कुमकुम झा
माता-पिता ने बड़े अरमानों के संग इंजीनियर से शादी कराया था। बेटी राज करेगी। सरकारी विभाग में बड़े अधिकारी बनेंगे दामाद। लेकिन यह क्या? पत्नी दिल्ली में बैठी है और पति जयपुर में। पत्नी पटना में और पति कोलकाता में। फलां-फलां। भले ही यह मजबूरी नौकरी की हो। ससुराल में रहने की हो। बच्चों की पढ़ाई के कारण हो या कोई और हो। कई बार सच यही होता है कि पति-पत्नी को अलग तो रहना पड़ ही रहा है। मजबूरी ही होती है, वरना चाहेगा कि दो दिल एक हो जाने के बाद अलग रहे।
अगर मजबूरी है, तो हालात के साथ सामंजस्य बिठाना ही पड़ेगा। साथ ही सामंजस्य को इस रूप में ढालना होगा कि आपकी मजबूरी छिप जाए। बच्चों को जितना हो सके कम डांटें। जिम्मेदारियां आपकी बढ़ी हैं, तो इसमें बच्चों का कसूर नहीं है। नियंत्रित रहिए। आपस में दोस्तों की तरह रहें, वक्त चुटकियों में व्यतीत होगा। पति-पत्नी जब मिलें, तो लड़ें नहीं। अगर किसी बात की नाराजगी भी हो, तो अकेले में वैमनस्य दूर करें। जब तक बच्चे समझदार न हों, उन्हें अपनी मुश्किलों में न घसीटें। अगर माता-पिता जिम्मेदार इंसान होते हैं, तो यह गुण बच्चों में भी स्वत: आ जाता है। पति-पत्नी तो महीनों बाद साथ मिले हैं, इसलिए बच्चों को टाल कर या नकार कर अकेलापन न तलाशें। इससे बच्चों के मन में आपके लिए द्वेष पैदा हो जाएगा।
बेहतर होगा। सुबह-सुबह मुबारकबाद सुनना, अच्छी खबर सुनना, पूरा दिन खुशियों से भर देता है। पत्नी अगर पति के रिश्तेदारों के करीब रहती है, तो उनसे जरूर मिलती रहें। बात-बात में पति का जिक्र, उनका नाम किसी के मुंह से सुनना, आपके मन को एक अजीब-सा आराम देगा। एक और अहम बात। दूरी शक को हवा देती है। शक होना जायज भी है, पर आप बेवजह इस पर अपनी स्वीकृति की मुहर न लगाएं। शक हमेशा घर तोड़ता है, विश्वास तोड़ता है। जिसे भी शक हो, वह अचानक बिना बताए छुट्टियां ले कर रहने चला जाए, दूसरे साथी के पास। साथी का व्यवहार, अफरा-तफरी, चेहरा, भाव, सब सच्चाई बयान कर देंगे। मजबूरी को अपनी शक्ति बना कर अकेले ही ढाल लेकर खड़े रहें। मजबूरियां, जिम्मेदारियां, तन्हाइयां इंसान को जल्दी परिपक्व बना देती हैं। अच्छा है, आप बहुत कुछ, बहुत जल्दी सीख जाएंगे।
‘धरती, ये नदिया, ये रैना और तुम़ ़ ़ बड़े अच्छे लगते हैं़ ़ ़’ यह गाना पुरानी फिल्म ‘बालिका वधू’ का है, जिसमें नायक-नायिका एक-दूसरे को बड़ी अदा से अच्छा कहते हैं। वास्तव में जब पति-पत्नी को एक-दूसरे में अच्छे गुण दिखते हैं, तो दिल से स्वत: ही शब्द फूट पड़ते हैं।
घर-गृहस्थी के कामों में तनाव के पल भी अक्सर आते ही रहते हैं। पत्नी छोटी-छोटी बातों पर गुस्से में मुंह पुष्ठलाने लग जाती है। ऐसे में भी पति महोदय बिल्कुल शांत बैठे रहते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। वो पहले कोई चुटकुला सुनाकर पत्नी को हंसाने की जुगत लगाते हैं फिर सामने आई समस्या पर गंभीरता से सोच-विचारकर उसका बेहतर समाधान सुझा डालते हैं। यह गुण परिवार में लड़ाई-झगड़े को रोकता है।
पत्नी को पढ़ाई के दिनों से ही संस्कृत का एक वाक्य याद है- ‘साहित्य संगीत कला विहीन: साक्षात पशु: पुच्छविषाणहीन:।’ पत्नी के मन को सुकून है कि उसके पति कविता, कहानी भी लिखते हैं, अच्छे सितारवादक भी हैं और पेंटिंग भी बना लेते हैं। वे कभी भी अपना खाली समय व्यर्थ नहीं गंवाते, बल्कि अपने इन कामों में डूबे हुए कुछ न कुछ नया करते ही रहते हैं। अपने पति में ये खास गुण देखकर पत्नी उनके सृजन की सराहना करती हुई गौरवान्वित यह गुण समाज में श्रेष्ठता का दर्जा दे सकेगा।
पत्नी किसी अच्छे काम को कठिन समझकर शुरुआत करने से घबरा रही है। पति महोदय उसका साहस बढ़ाते हैं। उस कार्य को स्टेप बाई स्टेप करने का सुझाव देते हैं। जैसे कि वह स्कूटी चलाना सीखना चाहती थी, पर कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए, इससे घबरा रही थी। पति ने उसके मन से भय को दूर करने के लिए नकारात्मक भावना को मिटाया और वह अब धड़ल्ले से भीड़-भाड़ में भी स्कूटी चला लेती है। अब हर पल पत्नी के मन में किसी भी काम के प्रति सकारात्मक सोच ही रहने लगी है। यह गुण जीवन में बड़ा काम करने और उसमें सफलता प्राप्त करने का मन में साहस पैदा करता है।