नई दिल्ली। शहर में आयोजित 22वें क्रॉस कंट्री रन में भाग लेने के लिए देश भर के 55,000 से ज्यादा बच्चे नई दिल्ली के ब्रार स्क्वैयर पर खूबसूरत आर्मी इक्वीस्ट्रियन सेंटर में इकट्ठे हुए थे। देश भर के 1200 से ज्यादा स्कूलों के बच्चों ने इस मैराथन में हिस्सा लिया। इनकी अलग श्रेणियां थीं और इनके लिए दौड़ने की दूरी भी अलग रखी गई थी। यह इस प्रकार रही – 14 साल से कम की लड़कियां/लड़के (4.5 किमी), 16 साल से कम की लड़कियां/लड़के (6 किमी) और 18 साल से कम की लड़कियां/ लड़के (8 किमी)। इस साल की दौड़ में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के छात्रों की भागीदारी ज्यादा रही और यह दिल्ली एनसीआर के स्कूलों के अलावा है।
दृष्टिहीन और दिव्यांग बच्चों ने स्वयंसेवकों की सहायता से बेजोड़ उत्साह का प्रदर्शन किया और आज की पहली दौड़ में 4.5 किलोमीटर की दूरी तय की। लेफ्टि. जनरल अशोक अंब्रे, पीवीएसएम,** एसएम (क्वार्टर मास्टर जनरल, भारतीय सेना), मेजर जनरल राजेश सहाय, एवीएसएम, एसएम (चीफ ऑफ स्टाफ हेडक्वार्टर, दिल्ली एरिया) और श्री हरपाल सिंह (चेयरमैन-अमेरिटस, फोर्टिस) ने झंडी दिखाकर भिन्न दौड़ को रवाना किया। इन लोगों ने एक वाजिब प्रणाली के जरिए साफ-सुथरे खेल को बढ़ावा देने के आयोजकों के प्रयासों की प्रशंसा की। चिप टेक्नालॉजी और आयु की पुष्टि के लिए किए जाने वाले जांच कई वर्षों से हो रही है और इससे सुनिश्चित होता है कि बच्चों में इसका संदेश अच्छी तरह जाए। बच्चों के लिए यहां एक खास चीयरिंग स्क्वैड था जिसमें सोनी येय! के जय और वीरू भी थे। इनलोगों ने राष्ट्रीय राजधानी के बीच विशाल जंगल में प्रकृति के केंद्र में दौड़ने वाले बच्चों का उत्साहवर्धन किया।
इस मौके पर सलवान मैराथन के प्रवक्ता सम्राट दिवान ने कहा, “इस दौड़ को लेकर साल दर साल हम जो उत्साह, हिम्मत और उत्तेजना देख रहे हैं उससे हमें यह आश्वासन मिलता है कि दिल्ली शहर में हम प्रतिस्पर्धी खेल को प्रोत्साहन देने तथा एक-दूसरे का सम्मान करने और वाजिब रहने के अपने उद्देश्य को बढ़ावा देने में सफल रहेंगे। सलवान मैराथन में कुछ विजेता आज अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने संस्थानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और यह बहुत ही संतोषजनक है कि ये छात्र मौका मिलने पर बेहतर टाइमिंग के लिए दौड़ते हैं और अच्छी रफ्तार बनाते हैं। हम एकदम जमीनी स्तर पर अपनी कोशिश कर रहे हैं और यह उनकी संस्थाओं तथा खेल महासंघों पर है कि वे एक स्पोर्टिंग नेशन के लिए उनका आधार मजबूत करें।”
इस साल दौड़ का रूट ज्यादा चुनौतीपूर्ण था बच्चों को ऐसी जगहों और परिवेश से गुजरना पड़ा जिसका अनुभव उन्होंने दिल्ली में पहले कभी नहीं किया था। इनमें नालों के पार लंबी, घुमावदार पगडंडी शामिल है। विजेता ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र थे जिनका मुकाबला फिर से शहरी साथियों से था और इन्हें डोपिंग तथा गलत उम्र बताने से रोकने के लिए सख्त परीक्षणों से गुजरना पड़ा। सम्राट दिवान महसूस करते हैं, “इस मैराथन की सबसे प्रेरक बात यह है कि दृष्टिहीन और दिव्यांग श्रेणी की दौड़ में भागीदारी बढ़ रही है। इन छात्रों के साथ दौड़ने के लिए स्वयंसेवकों से भी हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। ये स्वयंसेवक समाज के सभी वर्गों के हैं और इनमें भारतीय सेना के लोग भी है। यह ना सिर्फ इनमें से कुछ बच्चों के लिए अपनी संभावना हासिल करने का एक मौका है बल्कि उनके लिए एक मंच भी है जिससे वे मुख्यधारा के भाग हो सकते हैं जिसमें 55,000 अन्य छात्र हैं। इन बच्चों की भावना स्वयंसेवकों की भवानाओं से मिलती-जुलती है जो विशेष आवश्यकता वाले इन बच्चों की सहायता करते हैं ताकि वे दौड़ पूरी कर सकें और इस दौरान वे गाइड रनर की भूमिका में रहते हैं। यह अपने आप में मानवता की जीत है।” आयोजन के दौरान ऐथलेटिक फेडरेशन ऑफ इंडिया, दिल्ली स्टेट अमैच्योर एथलेटिक्स एसोसिएशन और देश भर में फिजिकल इंस्ट्रक्टर्स ने प्रत्येक भागीदार की सुरक्षा सुनिश्चित की। सम्राट ने आगे कहा, “आयोजक के रूप में प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा सर्वोपरि है और हम सशस्त्र सेना, मार्शल और सभी स्वयंसेवकों तथा दिल्ली पुलिस को खासतौर से धन्यवाद देते हैं कि आप सबके समर्थन से यह एक सफल आयोजन बना।“ यह एक ऐसा आयोजन था जिसने बच्चों और अच्छा करने की उनकी भावना का सम्मान किया। दौड़ने के अलावा इस मौके पर मार्च पास्ट, पाइप्ड बैंड, भांगड़ा, मैजिक शो का भी आयोजन किया गया और यह सब बच्चों ने किया ताकि दौड़ने के समय मूड बना रहे। इस मौके पर एक विशेष स्मारिका काउंटर भी था जहां मैराथन के लिए सालवन पबलिक स्कूल, मयूर विहार के बच्चों के बनाए स्मृति चिन्ह / स्मारिका रखी थी। इनकी बिक्री से प्राप्त धन का उपयोग दृष्टिहीन बच्चों के लिए किया जाएगा।