भगवान शिव के तिलकोत्सव में शामिल होने मिथिला से रवाना हुआ पैदल कांवर यात्रियों का जत्था

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दरभंगा। मिथिला से कांवर लेकर पैदल यात्रा करते हुए माघ मास शुक्ल पक्ष की वसंत पंचमी तिथि को देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ को गंगाजल चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी रही है। इस परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए कछुआ चकौती कैंप के साथ सैकड़ों कमरथुआ (कांवर-यात्री) का जत्था सोमवार को शुभंकरपुर स्थित श्मशान काली मंदिर से रवाना हुआ। इस जत्था में मैथिली के चर्चित गीतकार एवं भारत निर्वाचन आयोग के आइकॉन मणिकांत झा भी शामिल हैं। विगत करीब 30 वर्षों से माघी कांवड़ यात्रा में शामिल हो रहे श्री झा बताते हैं कि मिथिला से माघ मास में कांवर यात्रा पर निकलने की परंपरा सदियों पुरानी है। जानकारों के अनुसार मिथिला के मधुबनी जिला अंतर्गत जरैल गांव से पहली कावड़ यात्रा स्वर्गीय दुर्मिल झा के नेतृत्व में शुरू की गई थी, जो परंपरा आज भी कायम है।

माघ मास की कांवड़ यात्रा के महत्व की चर्चा करते हुए मणिकांत झा ने बताया कि यह सर्वविदित है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एवं देवों के देव महादेव की मिथिला में दामाद के रूप में प्रसिद्धि है। भगवान शिव एवं पार्वती के विवाह का उत्सव मिथिला वासी जहां महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं वहीं इससे पहले वसंत पंचमी को भगवान शिव का तिलकोत्सव के रूप में मनाए जाने कि यहां मान्यता रही है। इसी मान्यता के अनुरूप फसल कटनी के बाद धान का शीश लेकर मिथिला वासी बाबा धाम की कांवड़ पर माघ मास में निकलते हैं और मौनी अमावस्या को सुल्तानगंज से जल लेकर पैदल कांवर यात्रा करते हुए वसंत पंचमी तिथि को बाबा बैद्यनाथ पर चढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि बाबा बैद्यनाथ की प्रसिद्धि कामना लिंग के रूप में भी है और लोगों के मन की मुराद पूरी होने के कारण भी यह यात्रा लोगों के खास आकर्षण के केंद्र में रहता आया है।

सोमवार को माघी कांवड़ यात्रा पर निकलने वाले श्रद्धालुओं में कछुआ चकौती के कामोद झा, अरुण झा, राजन यादव, धर्मवीर यादव, हीरा मिश्र, चंद्रमोहन ठाकुर, बाबू साहेब झा, सुधीर चौधरी, नाहस रुपौली के नीतीश सौरभ, अमरकांत झा, देवन मंडल, महेश ठाकुर, सचिन झा एवं शुभंकरपुर के मणिकांत झा व संतोष झा आदि के नाम शामिल हैं । कांवड़ यात्रा पर निकलने से पूर्व विद्यापति सेवा संस्थान के सचिव प्रो जीवकांत मिश्र, अनिल अग्रवाल, प्रवीण कुमार झा, विनोद कुमार झा, प्रो चंद्रशेखर झाबूढ़ा भाई, गंधर्व झा आदि ने मिथिला की परंपरा के अनुरूप दही व गुड़ खिलाकर कांवड़यों को विदा करते हुए उन्हें मंगलमय कांवड़ यात्रा की शुभकामनाएं दी।

 

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