प्रयागराज। खेत को अधिया या बंटाई पर देने की बात तो सभी जानते हैं, लेकिन यहां संगम नगरी में पंडों के ठिकानों पर दूसरे जिलों और प्रदेशों से आए नाई भी मुंडन और दाढ़ी बनाने का काम अधिया पर करते हैं। माघ मेला समाप्त होने पर ज्यादातर नाई अपने जिलों को चले गए। लेकिन कुछ लॉकडाउन में फंस गए और उनमें से एक राम सुमिरन (परिवर्तित नाम) ने पीटीआई-भाषा को बताया, “हम यहां अधिया पर काम करते हैं।”
मध्य प्रदेश के रीवा जिले के रहने वाले सुमिरन ने बताया, “लगभग सभी पंडों के अपने स्थायी नाई होते हैं जो उनकी गद्दी की रखवाली करने के साथ ही उनके घर का भी काम करते हैं। ये नाई बाहर से आने वाले नाइयों को अधिया पर काम देते हैं और जो बाल-दाढ़ी हम बनाते हैं, उसका आधा पैसा इनको जाता है।” उन्होंने बताया कि यद्यपि पंडे अपने यजमानों से 2100 रुपये से लेकर 10,001 रुपये तक दक्षिणा में लेते हैं, लेकिन उसमें नाइयों का कोई हिस्सा नहीं होता और ये अपने यजमानों से 50-100 रुपये प्रति व्यक्ति नाइयों को दिलवाते हैं जिसमें आधा पैसा स्थायी नाइयों को चला जाता है।
सुमिरन ने कहा कि हालांकि घाटों पर पंडों का कोई दखल नहीं होता। इसलिए पूरा का पूरा पैसा हमारा होता है। लेकिन घाटों पर प्रति दाढ़ी 15 रुपये और मुंडन का 20 रुपये मिलता है जो महंगाई के दौर में नाकाफी है। महीने में 3,000-4,000 रुपये कमा लेने वाले सुमिरन को संतोष है कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। उन्होंने मुसीबत की इस घड़ी में साथ देने के लिए पंडों का धन्यवाद दिया और कहा कि लॉकडाउन के बीच उन्हें सिर छुपाने के लिए पंडों ने अपनी झोपड़ियां दे रखी हैं जहां वे रह रहे हैं।
एक अन्य नाई सुरेश शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन में 4-6 नाई संगम के किनारे हैं और उन्हें घर जाने की कोई जल्दी नहीं है क्योंकि यहां इक्का दुक्का ग्राहक मिल ही जाते हैं। उन्होंने बताया कि कोई न कोई भोजन-पानी पहुंचा दे रहा है जिससे खाने की समस्या हल हो गयी है। उन्हें उम्मीद है कि लॉकडाउन खुलने पर फिर से संगम क्षेत्र गुलजार होगा।