कमलेश भारतीय
इधर कुछ समय से ऐसे विज्ञापन आम देखने को मिल रहे हैं -मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ! यह किया , वह किया ! उन्नति दी , तरक्की हुई ! किसी एक राज्य सरकार के नहीं , ऐसे विज्ञापन लगभग हर सरकार के देखने को मिलते हैं । सबसे मजेदार बात यह कि यहां राज्य की सीमा भी नहीं , दूर दराज के समाचार पत्रों में भी ये विज्ञापन दिखने लगे हैं । आखिर उस दूर दराज के राज्य में किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री के गुणगान के विज्ञापन किसलिये ? कैसी महत्त्वाकांक्षा है यह ? क्यों ? पहले दिल्ली के विज्ञापनों का शोर मचा । अब पंजाब के विज्ञापन भी उसी तर्ज पर आने लगे । संयोग से दोनों जगह आप पार्टी के मुख्यमंत्री शोभायमान हैं । ये विज्ञापन सिर्फ समाचारपत्रों में ही नहीं बड़े बड़े चैनलों में भी दिख जाते हैं ! वैसे उत्तरप्रदेश के विज्ञापन भी अन्य राज्यों में धूम मचाते दिख सकते हैं !
ये है विज्ञापनों का मायाजाल ! मीडिया को अप्रत्यक्ष रूप से नर्म रवैये के लिये मीठा सा न्योता है । कुछ नर्म राखिये कलम अपनी और कलम की नोंक बची ही कहां है ! स्याही बची ही कहां जो विरोध में कुछ लिख दे ! वैसे ऐसे विज्ञापनों का विरोध भी होता है कभी कभी लेकिन अपनी बारी आने पर सब इसी राह पर चल देते हैं पूरी निर्लज्जता से ! और जो मनमाना रवैया नहीं अपनाते उनके विज्ञापन हैं कट जाते ! हरियाणा में ऐसे उदाहरण हैं जब समाचारपत्रों को सरकार की कोपदृष्टि का सामना करना पड़ा !
अगर इन नेताओं को छोटी से छोटी समस्या भी बताओ तो जवाब होगा आर्थिक घाटे में चल रही है सरकार ! अभी बजट नहीं है । विकास के लिये बजट की कमी और प्रचार के लिये खुले हाथ ! यह है राजनीति का कमाल ! मुख्यमंत्री के नेतृत्व में विकास से ज्यादा प्रचार पर जोर क्यों ? वैसे कहते हैं कि हमारा काम बोलता है तो काम को बोलने दीजिए न ! खुद ही क्यों इतना शोर मचा रहे हो ?
कौन कौन कितने पानी में
सबकी है पहचान जनता को !
(पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी)