दरभंगा। विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित 47वें मिथिला विभूति पर्व समारोह के अंतिम दिन देर शाम शुरू हुआ रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम अगले दिन सुबह 10 बजे तक चलता रहा। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में दर्शक संगीत की लहरियों में गोते खाते रहे। एक के बाद एक कर मैथिली मंच के स्टार कलाकारों ने ऐसा समां बांधा कि पंडाल में हजारों की तादाद में उपस्थित दर्शक कभी आह तो कभी वाह करते तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल को गुंजायमान करते रहे।
विपिन कुमार मिश्र के शंख वादन से शुरू हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम के गायकी की पारी की शुरुआत दिल्ली की मशहूर गायिका सोनी चौधरी के गायन से हुआ। पारंपरिक लोक धुन पर जैसे ही उन्होंने ‘चलू चलू देखू सखिया दूल्हा कमाल रे…’ गीत पर अपनी स्वर लहरियां छेड़ी पूरी की पूरी दर्शक दीर्घा विभोर हो गई। उनकी अगली प्रस्तुति ‘मिथिला कुमारी सखी हे जनक दुलारी सुकुमारी छलखिन ना…’ को भी दर्शकों ने काफी पसंद किया। मिथिला के मुकेश नाम से विख्यात गायक अरविंद कुमार झा जहां सीमा पर तैनात जवानों को समर्पित गीत ‘जो रे जो रे चिट्ठी भैया जी के नाम…’ गाकर दर्शकों को देशभक्ति से ओतप्रोत करने में कामयाबी हासिल की। वहीं उनकी दूसरी प्रस्तुति ‘डिबिया में तेल बिना बाती जरै छै, अबियौ ना गाम पिया घरो चुबै छै…’ में निहित विरह के स्वर ने दर्शकों को आत्म विभोर कर दिया।
बिहार गौरव सम्मान से सम्मानित गायिका रंजना झा ने ‘सुनू सुनू रसिया…’ और ‘जेहने किशोरी मोरी…’ के साथ ही सामा गीत गाकर समां बांध दिया। वहीं मिथिला रत्न कुंज बिहारी मिश्र ने अपनी प्रस्तुति ‘मिथिला के मैथिल सब जागू, बाजू अपन मैथिली…’ और ‘मिथिला के मैथिल मस्त-मस्त…’ गाकर दर्शकों को झूमने पर मजबूर किया। असम से आई गायिका डॉली तालुकदार की प्रस्तुति ‘ब्राम्हण बाबू यौ …’ श्रोताओं के विशेष आकर्षण के केंद्र में रही।
रामबाबू झा ने मध्य रात्रि की अपनी प्रस्तुति ‘मुम्बई बसू कोलकाता वा आसाम, मैथिल भाई हमर प्रणाम…’ और ‘छीट वाली कनिया मोबाइल वाली कनिया, चाही हमरा स्टाइल वाली कनिया…’ गाकर श्रोताओं को ताजगी का एहसास कराया। वहीं युवा दिलों की धड़कन गायक माधव राय एवं जुली झा की एकल एवं युगल प्रस्तुतियों में मिथिला वर्णन एवं अन्य गीतों ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया। दुखी राम रसिया की महिला व पुरुष आवाज में एक साथ की गई गायकी ने दर्शकों के बीच रोमांच पैदा किया। जबकि रामसेवक ठाकुर, ज्योति मिश्रा, अरविंद सिंह, नवल-नंद, सूरवा लुलवा आदि की प्रस्तुतियों को भी दर्शकों ने काफी सराहा।
सुबह की बेला में आकाशवाणी के गायक दीपक कुमार झा, केदारनाथ कुमर, कंचन व पूजा की प्रस्तुतियां महफिल में जान फूंकने वाले साबित हुए। अमता घराना के मल्लिक बंधुओं की जुगलबंदी काबिले तारीफ रही।
फरमाइशी गीतों के अंतिम चरण में कुंज बिहारी मिश्र की गायकी का जादू एक बार फिर दर्शकों के सिर चढ़कर बोला और वे अंत तक डटे रहे। कंचन एवं पूजा द्वारा प्रस्तुत सोहर गीत के बाद केदारनाथ कुमर एवं जीव कांत मिश्र के गाए समदाउन के साथ कार्यक्रम स्थगन की घोषणा की गई।
सांस्कृतिक कार्यक्रम संयोजक पं कमला कांत झा और मोहन महान के संचालन में सजी सुरों की महफिल में गायन के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गायक सुरेश पंकज, नंद व रामबाबू को तथा मैथिली गीतों की उत्कृष्ट रचना के लिए नवल को मिथिला विभूति सम्मान से नवाजा गया।