नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री डाॅ कर्ण सिंह ने कहा कि मुझे हमेशा ही जैन समाज के कार्यक्रम में जाना अच्छा लगता है, क्योंकि जैन समाज का इतिहास और इनका कला-साहित्य-संस्कृति प्रेम सदियों पुराना रहा है। संख्या की दृष्टि से बेशक ये कम हों, लेकिन इनकी गुणवत्ता काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि चित्र कला संगम के संस्थापक वीरेंद्र प्रभाकर जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक आयोजन में उनकी उपस्थिति रहती थी। यही कारण है कि आज हम सब उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में एकत्र हुए हैं।
डाॅ कर्ण सिंह राजधानी के कांस्टीच्यूशनल क्लब में आयोजित पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर की स्मृति सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि मैंने 40 साल संसदीय जीवन में बिताए हैं। सार्वजनिक जीवन में 70 साल होने को है। लेकिन, जिस प्रकार से संसदीय भाषा में गिरावट आई है, वह चिंताजनक है। इसके लिए हमें जैन समाज से सीखना होगा, जिन्होंने इस देश और समाज को काफी दिया है। जैन समाज को सामाजिक मूल्यों के संवाहक के रूप में काम करना होगा।
इससे पूर्व चित्र कला संगम की ओर से अपूर्व जैन ने डाॅ कर्ण सिंह को शाॅल और गणेश जी की प्रतिमा देकर औपचारिक स्वागत किया। आज के सम्मान समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ शेरजंग गर्ग, हास्य कवि पद्मश्री डाॅ सुरेंद्र शर्मा, गांधी हिंदुस्तानी साहित्य कला संगम की अध्यक्ष कुसुम शाह जी, डाॅ सरोजिनी प्रीतम, लेखिका श्रीमती सविता चडढा, श्रीमती प्रभा किरण जैन, समाजसेवी श्री नरेंद्र कुमार नेताजी, कवि नत्थू सिंह बघेल, एडवोकेट अखिल प्रसाद, चित्रकला संगम के हरि सिंह पाल जी को सम्मानित किया गया। सभी सम्मानित अतिथियों को डाॅ कर्ण सिंह ने शाॅल ओढाकर और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
अपने संबोधन में हास्य कवि डाॅ सुरेंद्र शर्मा ने देश की वर्तमान स्थिति पर कटाक्ष किया और कहा कि देश की स्थिति ऐसी हो गई है कि संसद में नहीं, बल्कि संसद पर हंसा जा रहा है। इसलिए समाज के प्रबुध लोगों की जिम्मेदारी बढ जाती है। जैन समाज ने हमेशा ही एक नई दिशा देने का काम किया है। हम सबके लिए वीरेंद्र प्रभाकर जी के रूप में एक आदर्श है।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके और दीप प्रज्जविलत करके किया गया। चित्र कला संगम की ओर से अशोक जैन जी और रवि जैन जी ने आगत अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम की रूपरेखा हरि सिंह पाल जी ने रखी। ंधन्यवाद ज्ञापन विजय मोहन जी ने दिया।