नई दिल्ली। हिन्दू सिख एकता, महान सिख गुरुओं के प्रति सम्पूर्ण समाज की श्रद्धा, गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान तथा गुरु गोविंद सिंह जी महाराज द्वारा देश-धर्म की स्वाधीनता हेतु किए गए संघर्ष के आधार पर बनी है। इस साझा विरासत को हम किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने देंगे। ‘भारत की साझा विरासत व उनकी चुनौतियां’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में बोलते हुए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने यह भी कहा कि धर्म हमें जोड़ना सिखाता है न कि तोड़ना। भारत में जन्में प्रत्येक मत-पंथ-संप्रदायों की उपासना पद्धति चाहे भिन्न हो किंतु, उनका मूल तत्व एक ही है जो हम सबको एक अटूट बंधन से बांधे रखता है।
‘गोविंद सदन इंस्टिट्यूट फॉर एडवांसड स्टडीज इन कंप्रेटिव रिलीजन’ द्वारा आज दिल्ली के कंस्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पंचायती निर्मल अखाड़ा, हरिद्वार के पूज्य महंत संत ज्ञानदेव सिंह जी ने कहा कि अपनी तीन पीड़ियों को राष्ट्र धर्म संस्कृति व समाज की रक्षा हेतु बलिदान करने वाले महान गुरुओं की शिक्षाओं को जन-जन तक लेकर जाना हम सभी की जिम्मेदारी है।
केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने कहा कि बात चाहे सेवा की हो या संस्कारों की, धार्मिक निष्ठा की हो या उस के प्रति बलिदानी भाव की, सम्पूर्ण विश्व को पता है कि भारतीय समाज व उसकी धार्मिक निष्ठा सिर्फ स्वयं के लिए नहीं अपितु, सम्पूर्ण विश्व कल्याण के लिए है। हमें गर्व है कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश माँ भारती की पुण्य धरा से ही जाता है।
भारत सरकार के वाणिज्य व उद्योग राज्य मंत्री श्री सोमप्रकाश ने कहा कि. जब तक शमशान व गुरुद्वारे जाति-विरादरी के आधार पर बंटे रहेंगे, महा गुरुओं के समता मूलक समाज के निर्माण का उद्देश्य सफल नहीं होगा।
इस अवसर पर उपस्थित अन्य वक्ताओं में तख्त श्री पटना साहिब के जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, सरहाली वाले बाबा हकम सिंह, राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग के पूर्व सदस्य सरदार मंजीत सिंह राय, इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च के सदस्य डॉ सुरजीत कौर जौली सहित अनेक संस्थाओं के पदाधिकारी, विभिन्न मत पंथ संप्रदायों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।