नई दिल्ली। आगामी 20 नवम्बर से आयोजित होने वाले किसान मुक्ति संसद की तैयारियों के मद्देनज़र स्वराज इंडिया के अध्यक्ष एवं जय किसान आंदोलन संस्थापक योगेंद्र यादव ने हरियाणा के मेवात की यात्रा की। इस किसान यात्रा का मक़सद किसानों से संवाद करना तथा उन्हें संसद में शामिल होने के लिए आमंत्रित करना है। आज मेवात के ताई, बड़ेला, नूह आदि गाँवों में किसानों की सभा सम्बोधित करते हुए योगेंद्र यादव ने देश भर में चल रहे किसान आन्दोलनों के बारे में जानकारी दी। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश भर के लगभग 180 किसान संगठन एकजुट हए हैं। जो किसानों की दो मांगें क़र्ज़ मुक्ति और फसल का ड्योढ़ा दाम को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इससे पहले “किसान मुक्ति यात्रा” कार्यक्रम के तहत जय किसान आंदोलन ने समन्वय समिति के साथ मिलकर देश भर के 16 राज्यों की यात्राएं की।
योगेंद्र यादव ने मेवात और पूरे हरियाणा के किसानों की दयनीय हालात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा की वर्तमान की खट्टर सरकार के पास किसानों को देने को कुछ नहीं है। सरकार और विपक्ष के आपसी खो-खो के खेल में किसान पीस रहा है। सरकार की नीति “कंपनियों को छूट, किसानों की लूट” की है। मेवात, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, हिसार, चरखी दादरी समेत अन्य जिलों में बाजरे की खेती करने वाले किसानों को बाजारों/मण्डियों में उपज के ठीक दाम नहीं मिलते। आलम यह है कि आज किसान उत्पादन लागत से कम दाम मिलने पर भी उपज बेचने को मजबूर है। और यह केवल मेवात की बात नहीं, हर जगह का किसान, चाहे वह कोई भी फ़सल उपजाता हो, उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल नहीं होता। कहाँ तो सरकार उसे उत्पादन की लागत में 50 फ़ीसदी जोड़कर दाम देने का वादा करती है।
अलग-अलग जगहों पर किसानों की सभाओं को सम्बोधित करते हुए योगेंद्र यादव ने 20 नवम्बर से शुरू हो रहे “किसान मुक्ति संसद” की रूप रेखा से किसानों को अवगत कराया। संसद के शीतकालीन सत्र के समान्तर दिल्ली में आयोजित हो रहे किसान मुक्ति संसद में देश भर के किसान भाग ले रहे हैं। इस संसद के माध्यम से पूरे देश के किसान मिल बैठकर खेती-किसानी की नीतियों पर चर्चा करेंगे। विमर्श के बाद कृषि नीतियों का एक मसौदा तैयार किया जायेगा और संसद को पारित करने के लिए भी भेजा जायेगा।
किसान मुक्ति यात्रा के अनुभवों से एक बात स्पष्ट है कि आज देश भर का किसान मुख्यतः चार तरह के संकटों आमद, खर्च, आपद और क़र्ज़ से घिरा है। बढ़ती इनपुट लागत के कारण किसानों के लाभ मार्जिन में लगातार गिरावट आई है। सरकार की नीतियों ने किसानों को कंपनियों का गुलाम बना दिया है। इनपुट मूल्यों का निर्णय कॉर्पोरेट्स द्वारा तय किया जाता है और उत्पादन मूल्य सरकार द्वारा तय किया जाता है। खेती-किसानी आज मुनाफे का धंधा नहीं है। आपद की समस्या ये है कि देश का कोई न कोई हिस्सा सूखे, बाढ़, या अन्य संकटों का सामना करता है। आमदनी न होने और इनपुट लगत के बढ़ने की वजह से किसानों पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में वृद्धि हुई है। इन चुनौतियों को देखते हुए किसान चेतना यात्रा लोगों से संवाद कर समाधान की तलाश करने की कोशिश है, जिसे लोगों का भरपूर सहयोग और समर्थन मिल रहा है।